Periyar Birth anniversary: जातियों के हिसाब से बैठने की व्यवस्था देखी और कांग्रेस छोड़ दिया

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Periyar Birth anniversary: बीसवीं सदी (20th centuary) में एक आंदोलन हुआ था जिसे गैर ब्राम्हण आंदोलन का नाम दिया गया। इसे उन गैर ब्राम्हण जातियों ने शुरू किया था जिन्हें शिक्षा, धन और प्रभाव सब हासिल था। इन जातियों का ये कहना था कि ब्राम्हण तो उत्तर दिशा से आये आर्य आक्रमणकारियों के वंशज हैं। इन्हीं लोगों ने देसी द्रविड़ नस्लों जो कि यहां के मूल निवासी हुआ करते थे को हराकर दक्षिण भूभाग पर जीत हासिल की थी।

इरोड वेंकट नायकर रामासामी (Periyar E. V. Ramasamy) का जन्म 17 सितम्बर 1879 को मद्रास (Chennai) में हुआ था। पेरियार एक मध्यवर्गीय परिवार में पले बढ़े थे। शुरूआत से ही वो सन्यासी रहे और संस्कृत शास्त्रों का गंभीरता से अध्ययन किया। कुछ साल बाद वो कांग्रेस के सदस्य बन गए।

एक बार पेरियार राष्ट्रवादियों द्वारा आयोजित एक भोज में गए लेकिन उन्होंने देखा कि वहां बैठने की व्यवस्था जातियों के अनुसार की गई है। उन्हें ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई और उन्होंने पार्टी छोड़ दी। उन्होंने  सोचा कि अछूतों को अपने स्वाभिमान के लिए खुद ही लड़ना पड़ेगा।

बाद में उन्होंने स्वाभिमान आंदोलन भी शुरू किया। वो तमिल और द्रविड़ संस्कृति के असली वाहक अछूतों को ही मानते थे। पेरियार हिन्दू वेद पुराणों के कट्टर आलोचक माने जाते थे। वे सबसे ज्यादा आलोचक रमायण, भगवदगीता और मनुस्मृति के थे।

पेरियार ने कभी भी रामायण (Ramayan) को नहीं माना। लेकिन उन्होंने रामायण का हर एक अनुवाद पढ़ा था। उन्होंने 1944 में तमिल भाषा में एक पुस्तक लिखी ‘रामायण पादीरंगल।’ 1968 में इसका हिंदी अनुवाद ‘सच्ची रामायण’ नाम से प्रकाशित किया गया। यह किताब कफी ज्यादा विवादों से घिरी हुई थी। उत्तर प्रदेश में इसे बैन भी कर दिया गया था।

पेरियार की किताब ‘सच्ची रामायण’ का प्रस्तावना

रामायण किसी ऐतिहासिक तथ्य पर आधारित नहीं है। यह एक कल्पना है। रामायण के अनुसार, राम न तो तमिल था और न ही तमिलनाडु का रहने वाला था। वह उत्तर भारतीय था। रावण लंका यानी दक्षिण यानी तमिलनाडु के राजा थे; जिनकी हत्या राम ने की। राम में तमिल-सभ्यता (कुरल संस्कृति) का लेश मात्र भी नहीं है। उसकी पत्नी सीता भी उत्तर भारतीय चरित्र की है। तमिल विशेषताओं से रहित है। वह उत्तरी भारत की रहने वाली थी। रामायण में तमिलनाडु के पुरुषों और महिलाओं को बंदर और राक्षस कहकर उनका उपहास किया गया है।

रामायण में जिस लड़ाई का वर्णन है, उसमें उत्तर का रहने वाला कोई भी (ब्राह्मण) या आर्य (देव) नहीं मारा गया। एक आर्य-पुत्र के बीमारी के कारण मर जाने की कीमत रामायण में एक शूद्र को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। वे सारे लोग, जो इस युद्ध में मारे गए; वे तमिल थे। जिन्हें राक्षस कहा गया।

रावण राम की पत्नी सीता को हर ले गया। क्योंकि, राम ने उसकी बहन ‘सूर्पनखा’ का अंग-भंग किया व उसका रूप बिगाड़ दिया था। रावण के इस काम के कारण लंका क्यों जलाई गई? लंका निवासी क्यों मारे गए? रामायण की कथा का उद्देश्य तमिलों को नीचा दिखाना है। तमिलनाडु में इस कथा के प्रति सम्मान जताना तमिल समुदाय और देश के आत्मसम्मान के लिए खतरनाक और अपमानजनक है। राम या सीता के चरित्र में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे दैवीय कहा जाए।

जिस तरह तथाकथित आजादी(1947) मिलने के बाद गोरे लोगों की मूर्तियों को हटा दिया गया और उनके नामों पर रखे गए स्थानों के नामों को मिटा दिया गया तथा उनकी जगह भारतीय नाम रख दिए गए। उसी तरह आर्य देवताओं और उनकी महत्ता बताने वाली हर बात को मिटा देना चाहिए; जो तमिलों के प्रति आदर और सम्मान की भावनाओं को आघात पहुंचाते हैं। हर तमिल, जिसकी नसों में शुद्ध द्रविड़ खून बहता है; उसको इसे अपना कर्तव्य समझकर ऐसा करने का शपथ लेनी है।

– पेरियार ई.वी. रामासामी

उनका मानना था कि ब्राम्हणों ने निचली जातियों पर अपनी सत्ता और महिलाओं पर पुरुषों का अधिकार स्थापित करने के लिए इन किताबों का सहारा लिया है। पेरियार ने आगे चल कर जस्टिस पार्टी की स्थापना की। 24 दिसंबर 1973 को उनकी मृत्यु हो गई थी।

महिलाओं के बारे में पेरियार ने लिखा था कि ” तारा मुकुर्तम जैसे शब्दों के आगमन के बाद हमारी महिलाएं अपने पतियों के हाथों की कठपुतली बन गई थीं। हमें ऐसे पिताओं के संरक्षण में जीना पड़ा जो अपनी बेटियों को सलाह देते हैं कि उन्हें पतियों को उपहार में दिया जा चुका है और अब वे अपने पति के घर का हिस्सा हैं। यह संस्कृत के साथ हमारी घनिष्ठता का परिणाम है।

This post was last modified on September 16, 2020 10:04 PM

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