पहले झपटमारी की वारदातों को गंभीरता से लिया जाता था, अब नहीं

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नई दिल्ली, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)| 1980 के दशक में, दिल्ली में अगर झपटमारी की एक या दो घटनाएं भी हो जाती थीं तो पुलिस और सरकार इसे बहुत गंभीरता से लेती थी।

यहां तक कि, जब महीने में इस तरह की वारदातों की संख्या बढ़कर औसत चार से पांच हो गई तो दिल्ली पुलिस के तत्कालीन आयुक्त वेद मारवाह ने पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) वैनों की संख्या को लगभग 35 से बढ़ाकर 100 तक करने का आदेश दिया था।

उन दिनों झपटमारों के पास आजकल की तरह वाहन नहीं होते थे और वे अंधेरी व सुनसान सड़कों पर लोगों को निशाना बनाते थे और फिर पैदल ही भागकर करीबी गलियों या जंगल वाले इलाकों में छिप जाते थे।

कुछ दुर्लभ मामलों में, झपटमार चोरी किए गए स्कूटर का इस्तेमाल करते थे।

हालांकि, सख्त पुलिसिंग के साथ, झपटमारी करने वाले गिरोहों को समाप्त कर दिया गया और इस खतरे पर लगाम लगा दी गई।

इन अपराधों से निपटने के लिए कानून तब और अब एक ही हैं। लेकिन फर्क यह कि हाल के दिनों में इस तरह के अपराधों में तेजी देखी गई है।

आजकल झपटमार वारदात को अंजाम देने के लिए लोगों की हत्या करने में भी संकोच नहीं करते।

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के पहले डिप्टी कमिश्नर सुखदेव सिंह के अनुसार, जिन्होंने 1989 से 1992 तक यूनिट का नेतृत्व किया, “पुलिस फोर्स आजकल ‘अत्यधिक दबाव’ में काम कर रही है और उसके पास सही और गलत के बीच अंतर करने का समय नहीं है। झपटमार इस स्थिति का फायदा उठा रहे हैं और लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।”

सुखदेव सिंह, जिन्होंने 1957 से 1992 के बीच 35 वर्षों तक दिल्ली पुलिस की सेवा की, उन्होंने तीन हत्या के मामलों का सामना किया, जिनमें डकैत सुंदर सिंह की हत्या और हिरासत में हुई दो मौतों का मामला शामिल है।

सुंदर सिंह के मामले में, सुखदेव सिंह को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा गिरफ्तार किया गया था और अदालत के फैसले के बाद वहां से निकलने से पहले वह महीनों तक तिहाड़ जेल में रहे था।

आईएएनएस से बातचीत में सुखदेव सिंह ने कहा कि जब वह 1970 में पूर्वी दिल्ली के शाहदरा पुलिस स्टेशन में स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) थे, तो उन्होंने सभी कुख्यात अपराधियों को संदेश दिया था कि वे आत्मसमर्पण करें या मौत का सामना करने के लिए तैयार हो जाएं।

उन्होंने कहा, “मेरी तकनीक ने काम किया और सभी अपराधियों ने मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दिया।”

सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने कहा, “बाद में, मैंने अपने अधिकार क्षेत्र में झपटमारी या चोरी की एक भी घटना नहीं देखी। जनता, पुलिस और अपराधी उस समय शांति से रहते थे।”

यह पूछे जाने पर कि झपटमारी की वारदातें अब घातक रूप क्यों लेती जा रही हैं, तो उन्होंने कहा, “एक कारण यह है कि पुलिस किसी भी तरह अपराधियों के बीच भय पैदा नहीं कर सकी है और दूसरी बात है कि अधिकांश झपटमार बेरोजगार हैं और वे किसी भी तरह से पैसा कमाना चाहते हैं।”

पूर्व पुलिसकर्मी ने कहा कि झपटमार अब क्रूर हो गए हैं। उन्होंने कहा कि, “अपराध करते समय अधिकांश झपटमार नशे में होते हैं। उस स्थिति में वे बस अपना मकसद पूरा करना चाहते हैं और झपटमारी करते समय समय लोगों की जान लेने में भी संकोच नहीं करते।”

 

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