पन्ना की एनएमडीसी खदान बंद होने का दोषी कौन?

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भोपाल/पन्ना, 15 जनवरी (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की देश और दुनिया में पहचान हीरा के कारण है, लेकिन यहां की एनएमडीसी खदान पर एक बार फिर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, क्योंकि वन्य प्राणी बोर्ड की अनुमति समय पर न मिलने के कारण यह खदान 31 दिसंबर 2020 से बंद चल रही हैं। राज्य सरकार इन्हे चालू कराने के दावे कर रही है, मगर सवाल उठ रहा है कि आखिर खदान बंद होने के लिए दोषी है कौन।

पन्ना की एनएमडीसी खदान को वन्य प्राणी बोर्ड ने 31 दिसंबर 2020 तक संचालन की अनुमति दी थी, इस तारीख के करीब आने से कई माह पहले से ही एनएमडीसी प्रबंधन राज्य सरकार से बोर्ड की बैठक कर अनुमति बढ़ाए जाने की मांग करता आ रहा था, मगर बोर्ड की अनुमति नहीं मिली तो पन्ना टाईगर रिजर्व ने इस खदान को एक जनवरी 2021 को बंद करने के निर्देष दिए। उसके बाद से यह खदान बंद चल रही हैं।

इस खदान के बंद होने की बात सामने आने पर क्षेत्रीय सांसद विष्णु दत्त शर्मा ने खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस खदान को चालू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने का अनुरोध किया था, जिस पर चौहान ने खदान को चालू करने का भरोसा दिलाया था।

हीरा खदान से जुड़े समर बहादुर सिंह का कहना है कि, खदान को जारी रखने की वन्य प्राणी बोर्ड की अनुमति 31 दिसंबर तक थी, उसे बढ़ाए जाने के लिए लगातार एनएमडीसी प्रबंधन द्वारा प्रयास किए जा रहे थे, मगर सरकार ने वन्य प्राणी बोर्ड की बैठक ही नहीं बुलाई। परिणाम स्वरुप अनुमति की तारीख निकल गई और खदान को बंद करना पड़ा।

सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ, बोर्ड की बैठक क्यों नहीं हुई, इस बोर्ड के अध्यक्ष खुद मुख्यमंत्री हैं। एनएमडीसी प्रबंधन की तरफ से लगातार अनुमति के लिए प्रयास किए जाते रहे, मगर किसी ने गौर नहीं किया। क्या सरकार ऐसे लोगों पर कार्रवाई करेगी, जो खदान के बंद होने के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रुप से जिम्मेदार हैं।

सूत्रों का कहना है कि एनएमडीसी से राज्य सरकार को लगभग एक हजार करोड़ रुपये का राजस्व हर साल प्राप्त होता है। उसके बावजूद इसे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। यही कारण रहा कि कई माह की जद्दोजहद के बाद वन्य प्राणी बोर्ड की बैठक ही नहीं हो पाई और अनुमति नहीं दी गई। मुख्यमंत्री चौहान की अध्यक्षता में बोर्ड की गुरुवार को बैठक हुई। जिसमें खदान को चालू रखने पर सहमति बनी। इसके बाद केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी मिलेगी और उसके बाद ही खदान चालू हो पाएगी।

इस खदान पर संकट मंडराने का एक और कारण भी है, क्योंकि पन्ना टाईगर रिजर्व को यूनेस्को ने नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व सूची में शामिल किया है। अगर एनएमडीसी खदान का हिस्सा भी इस हिस्से में आ जाता है, तो फिर खदान को चालू रखने की मंजूरी और भी कठिन हो जाएगी।

सामाजिक कार्यकर्ता राजीव खरे का कहना है कि, हीरा पन्ना की पहचान है, एनएमडीसी की खदान बंद हुई तो पन्ना का अस्तित्व कहीं खत्म हो जाएगा, वहीं अवैध खनन जोर पकड़ लेगा। इससे जहां लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा, वहीं राज्य सरकार को राजस्व की हानि होगी। सवाल उठता है कि जब केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए बैठक बुलाई जा सकती है, तो इस गंभीर मसले पर हीलाहवाली क्यों की गई।

गौरतलब है कि एशिया की इकलौती मैकेनाइज्ड एनएमडीसी खदान में साल 1968 से लेकर अब तक लगभग 13 लाख कैरेट हीरों का उत्पादन किया जा चुका है। अभी यहां से साढ़े आठ लाख कैरेट हीरों का उत्पादन होना शेष है। ऐसे में अगर संचालन की अनुमति नहीं मिली तो अरबों रुपये के हीरे जमीन के अंदर ही रह जाएंगे। यह खदान बंद होने का यह दूसरा मामला है, इससे पहले खदान वर्ष 2005 में बंद हुई थी और सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद वर्ष 2009 में फिर चालू हो पाई थी, कुल मिलाकर चार साल खदान बंद रही थी।

पन्ना जिले के गंगऊ अभ्यारण्य में एनएमडीसी 275 हेक्टेयर में हीरा खनन करता है। इस खदान से लगभग डेढ़ हजार परिवारों का जीवन चलता है, वहीं राज्य सरकार को भी इससे राजस्व की प्राप्ति हेाती है। कुल मिलाकर यह खदान यहां की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के साथ रोजगार का भी बड़ा जरिया है।

–आईएएनएस

एसएनपी/एएनएम

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