जानें किस खास तकनीक से बनी है पूर्वा एक्‍सप्रेस, जिसके बेपटरी होने के बाद भी नहीं गयी किसी की जान

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हावड़ा से नयी दिल्ली जा रही पूर्वा एक्सप्रेस के 12 डिब्बे आज कानपुर के पास पटरी से उतर गए। लेकिन इस के बाद भी न तो किसी यात्री की जान गयी और न ही अधिक यात्री घायल हुये जबकि किसी भी पुराने ट्रेन हादसों को देखें तो प्रत्येक ट्रेन हादसे में जान-मान का नुकसान तो होता ही है।

जानकारी के अनुसार ”पूर्वा ट्रेन” में देश में ही निर्मित अत्याधुनिक लिंक हॉफमेन बुश:एलएचबी: कोच लगे हुये थे जो मजबूत स्टेनलेस स्टील के बने होते है हल्के होते है और ट्रेन के पटरी से उतरने या टक्कर होने पर यह कोच एक दूसरे पर चढ़ते नहीं हैं। जबकि ट्रेनों के पुराने कोच:सीवीसी: पटरी से उतरने पर या दूसरी ट्रेन से टकराने से डिब्बे एक दूसरे पर चढ़ जाते थे और भारी जान माल का नुकसान उठाना पड़ता था।

स्टेनलेस स्टील से बने कोच

आपको बता दें कि स्‍टेनलेस स्‍टील से बने कोच में इंटीरियर डिजाइन एल्‍यूमीनियम से की जाती है। जिससे कि यह कोच पहले की तुलना में थोड़े हल्‍के होते हैं। इन कोचों में डिस्क ब्रेक कम समय व कम दूरी में अच्छे ढंग से ब्रेक लगा देते है। कोचों में लगे शाक एब्जॉवर की वजह से झटकों का अनुभव कम होगा। इन कोच के निर्माण में एन्टी टेलीस्कोपिक और एंटी क्लाइंबिग तकनीक का इस्तेमाल होता है । जिसकी वजह से यह कोई भी दुर्घटना होने पर यह डिब्बे एक दूसरे पर चढ़ते नही है । एलएचबी डिब्‍बों में सीबीसी कपलिंग लगाई जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि अगर ट्रेन पटरी से उतरती भी है तो कपलिंग के टूटने की आशंका नहीं होती है, जबकि स्क्रू कपलिंग वाले कोचों के पटरी से उतरने पर उसके टूटने का डर बना रहता है।

उत्तर प्रदेश में हुए रेल हादसे

उप्र में अक्टूबर 2018 में न्यू फरक्का एक्सप्रेस के नौ डिब्बे रायबरेली के पास पटरी से उतरे और सात यात्रियों की मौत हुई तथा कई घायल हुए। अगस्त 2017 में औरैया में पटरी से डिब्बे उतरने से 100 यात्री घायल हुये थे। रायबरेली में मार्च 2015 में जनता एक्सप्रेस के हादसे में 58 यात्रियों की मौत हुई थी तथा 100 यात्री घायल हुए थे। जुलाई 2011 में फतेहपुर के पास कालका एक्सप्रेस हादसे में 70 की मौत हुई थी तथा 300 यात्री घायल हुए थे। उत्तर मध्य रेलवे  (एनसीआर) के महाप्रबंधक (जीएम) राजीव चौधरी ने पूर्वा एक्सप्रेस के पटरी से उतरने के बाद बताया कि’ देश में चलने वाली 70 प्रतिशत ट्रेनों में अभी भी पुरानी तकनीक वाले कन्‍वेंशनल कोच लगे हैं जिसकी वजह से हादसे के दौरान ज्‍यादा मौतें होती हैं।

इंडियन रेलवे ने इससे छुटकारा पाने के लिए लिंक हॉफमेन बुश कोच का निर्माण किया है। रिसर्च डिजाइन्स ऐंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) ने ऐसे कोच बनाये है, जो आपस में टकरा न सकें। इन्‍हें लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच नाम दिया गया। एलएचबी कोचों और सीबीसी कपलिंग होने से ट्रेन के कोचों के पलटने और एक दूसरे पर चढ़ने की गुंजाइश नहीं रहती है। यह अत्याधुनिक कोच फिलहाल देश की 30 प्रतिशत वीआईपी ट्रेनों में ही लगे हैं।’ पहले यह कोच जर्मनी से मंगवाये जाते थे लेकिन अब देश की कई रेल कोच फैक्ट्रियों में इन आधुनिक एलएचबी कोच का निर्माण हो रहा है। इनमें रायबरेली, चेन्नई,कपूरथला के कारखाने प्रमुख है।

 

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