पटना, 14 नवंबर (आईएएनएस)| शिक्षा के क्षेत्र में देश और दुनिया में बिहार का नाम रौशन करने वाले प्रख्यात गणितज्ञ डॉ़ वशिष्ठ नारायण सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके परिजनों को मलाल है कि प्रसिद्ध गणितज्ञ को जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह उन्हें नहीं मिल पाया। अंतिम समय में, मानसिक रोग के बावजूद उनकी दोस्ती कलम, डायरी और पेंसिल से रही।
बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर में 2 अप्रैल, 1942 को जन्मे डॉ़ सिंह ने गुरुवार को पटना में अंतिम सांस ली। उनके परिजनों के मुताबिक, अहले सुबह उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। आनन-फानन में उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उनके निधन की घोषणा की।
सिंह इन दिनों अपने छोटे भाई अयोध्या प्रसाद सिंह के पटना स्थित आवास पर ही रहते थे। अयोध्या प्रसाद ने आईएएनएस को बताया, “अंतिम समय तक उनके सबसे अच्छे दोस्त पेंसिल, पेन और डायरी ही रही। वे अक्सर कुछ न न कुछ लिखते रहते थे। दीवारों पर भी पेंसिल, कलम से लिखते रहते थे।”
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर से लेकर कैलिफोर्निया तक बिहार और भोजपुर का नाम रौशन करने वाले डॉ़ सिंह के परिजनों को उनके गुजर जाने के बाद भी यह मलाल है कि उन्हें बिहार में वैसा सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे।
परिजनों का कहना है कि डॉ. सिंह अपने राज्य और देश की खातिर विदेश से लौट आए थे। उनके भाई अयोध्या ने कहा, “वशिष्ठ बाबू का इतना नाम है। पटना विश्वविद्यालय से लेकर अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय तक चर्चा में रहे। उन्होंने आईआईटी में पढ़ाया। गणित की थ्योरी को लेकर दुनियाभर में चर्चा में रहे, मगर बिहार के लाल को यहां के लोग ही भूल गए। आज तक एक भी सम्मान नहीं मिला।”
उन्होंने बड़े अफसोस के साथ कहा, “अब कोई कुछ लाख कर ले, जिसे जाना था, वह तो चला गया।”
पटना के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने कहा, “डॉ़ वशिष्ठ के लिए पटना विश्वविद्यालय के नियम बदले गए थे। हमलोग तो अद्भुत प्रतिभा के धनी गणितज्ञ वशिष्ठ बाबू के जमाने के छात्र रहे थे और हम सभी उनसे प्रेरित होते थे।”
उन्होंने कहा, “उनके लिए पटना विश्वविद्यालय ने पहली बार नियम बदल कर जल्दी-जल्दी उन्हें स्नातकोत्तर (एम-एससी) करवा दी थी। वह शिक्षकों की गलती पर उन्हें टोक देते थे। पटना साइंस कॉलेज में शिक्षकों ने पाया कि ये तो ऊंची कक्षाओं के विषयों में भी पारंगत हैं।”
किशोर ने कहा, “उस समय साइंस कॉलेज के प्राचार्य एऩ एस़ नागेंद्रनाथ थे, जो खुद गणितज्ञ थे। उन्होंने तब वशिष्ठ की प्रतिभा की पहचान की थी।”
बिहार में उस समय के सबसे नामी नेतरहाट स्कूल में पढ़े सिंह ने सन् 1962 में हायर सेकेंड्री परीक्षा पास की थी और 1965 में ही उन्हें एम-एससीी डिग्री मिल गई। सन् 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की थी।
‘चक्रीय सदिश समष्टि’ सिद्धांत पर किए उनके शोध कार्य ने उन्हें भारत और विश्व में प्रसिद्धि दिलाई।
पढ़ाई खत्म करने के बाद कुछ समय के लिए वह भारत आए, मगर जल्द ही अमेरिका वापस चले गए और वाशिंगटन में उन्होंने गणित के प्रोफेसर के पद पर काम किया। उन्होंने नासा में भी काम किया। वर्ष 1971 में वह फिर भारत लौट आए। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर और कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यकीय संस्थान में काम किया था।
प्रख्यात गणितज्ञ कुछ ही साल बाद सिजोफ्रेनिया के मरीज हो गए। इसके बाद नेतरहाट के पूर्ववर्ती छात्रों के संगठन ‘नोवा’ ने इनकी मदद की और वर्षो तक उनकी सुविधा के लिए कई इंतजाम किए।
सिंह का विवाह 1973 में वंदना रानी के साथ हुआ था। इसके बाद 1974 में उन्हें मानसिक दौरे आने लगे। कुछ दिनों तक वह लापता भी रहे।
बिहार सरकार ने प्रख्यात गणितज्ञ की राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की घोषणा की है।
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