पणजी, 19 मार्च (आईएएनएस)| गोवा के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर सोमवार देर रात को शपथ लेने वाले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के युवा नेता और गोवा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद सावंत इससे पहले राज्य के मंत्रिमंडल में कभी जगह नहीं बनाने के बावजूद राज्य के सर्वोच्च राजनीतिक पद पर पहुंच गए हैं। बहुत हद तक सावंत की तरह ही उनके पूर्ववर्ती तथा दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर भी 2000 में मुख्मंत्री बनने से पहले कभी मंत्री नहीं बने थे।
महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिला में स्थित गंगा आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज से आयुर्वेदिक मेडिसन में स्नातक की डिग्री लेने वाले सावंत (45) गोवा में वैकल्पिक चिकित्सा के डॉक्टर के तौर पर काम चुके हैं। उन्होंने अपनी समाज कल्याण में परास्नातक (एमएसडब्ल्यू) की पढ़ाई पुणे की एक डीम्ड यूनिवर्सिटी तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ से पूरी की।
सावंत संकेलिम विधानसभा सीट से दो बार (2012 और 2017) विधायक चुने जा चुके हैं।
जाति से मराठा सावंत ने 2017 से विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर भी काम किया।
गोवा भाजपा के प्रवक्ता दत्ताप्रसाद नाइक ने आईएएनएस से बात करते हुए नए मुख्मयंत्री को विनम्र तथा जमीन से जुड़ा इंसान बताया जो युवाओं की आकांक्षाओं को समझता है। सावंत जब भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष थे तब नाइक उनके नेतृत्व में काम कर चुके हैं।
नाइक ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि लोग पर्रिकर की शख्सियत से उनकी तुलना नहीं करेंगे। लोगों को उन्हें अपनी योग्यता साबित करने के लिए समय देना चाहिए।”
सावंत की पत्नी सुलक्षणा वर्तमान में भाजपा की महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष हैं और उनकी बेटी कक्षा छह की छात्रा है।
सावंत अपने राजनीतिक करियर में विवादों से दूर ही रहे हैं और पर्रिकर ने उन्हें 2017 में विधानसभा अध्यक्ष बनाया था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता सावंत संकेलिम विधानसभा से आते हैं जो उत्तरी गोवा की खनन पट्टी के मुख्य क्षेत्रों में से एक है जहां भाजपा की हालिया समय में लोकप्रियता कम हुई है, विशेष रूप से तब, जब सरकार खनन कार्यो को बहाल करने में नाकाम रही है जिसे पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिबंधित कर दिया था।
मुख्यमंत्री चयन प्रक्रिया में शामिल एक भाजपा नेता ने कहा कि पर्रिकर से नजदीकी और लंबे समय से भाजपा के सदस्य रहने के अतिरिक्त सावंत का खनन पट्टी से होना भी उन्हें मुख्यमंत्री के लिए चुने जाने के पीछे बहुत बड़ा कारण है।
यह शायद एक विडंबना ही है कि वैकल्पिक चिकित्सा के पेशे से संबंधित सावंत पर्रिकर के उत्तराधिकारी बने हैं, जिनका पिछले एक साल से कैंसर से जूझने के बाद रविवार को निधन हो गया था।
क्या वे पर्रिकर के निधन से पैदा हुई रिक्तता को भरने में सक्षम होंगे यह देखना दिलचस्प होगा।
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