नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| महात्मा गांधी के परपोते तुषार अरुण गांधी ने कहा कि सरदार पटेल का राष्ट्रपिता के साथ अनोखा रिश्ता था, इसके बावजूद सरदार पटेल ने कभी भी उनके नेतृत्व को आंख मूंदकर स्वीकार नहीं किया।
तुषार गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम के दो अग्रणी दिग्गजों के संबंध के बारे में चर्चा करते हुए आईएएनएस से कहा कि महात्मा गांधी प्रत्येक कदम पर पटेल को यकीन दिलाने की कोशिश करते थे और उसके बाद ही वह कुछ करते थे जिसकी उनसे उम्मीद होती थी।
पत्रकार अरुण मणिलाल गांधी के बेटे और मणिलाल गांधी के पोते तुषार गांधी ने कहा कि उनके परदादा और पटेल समकालिक थे और लगभग एक ही उम्र के थे।
उन्होंने उस समय के बारे में बताया जब मोहनदास करमचंद गांधी बैरिस्टर बनने के बाद लंदन से वापस आए और बंबई में प्रैक्टिस शुरू की।
उनका पहला मामला एक संपत्ति विवाद का था, जिसमें उन्होंने एक विधवा का प्रतिनिधित्व किया था।
तुषार गांधी ने कहा, “जिस दिन ‘बापू’ अदालत में पेश होने वाले थे, सभी कोई लंदन से आए बैरिस्टर को देखने के लिए उत्सुक थे। सरदार पटेल अदालत में थे और विलायती बैरिस्टर को उनके पहले दिन उन्हें देखने गए।”
गांधी अपने बक्से और कई किताबों के साथ अदालत में पेश हुए, जिसका वे उद्धरण देने वाले थे।
तुषार गांधी ने कहा, “जब उनके मामले की सुनवाई शुरू हुई। वह घबरा गए और कई प्रयासों के बाद एक शब्द भी नहीं बोल पाए। वह काफी डर गए और अदालत से भाग गए। सरदार के समक्ष यह गांधी की पहली छवि बनी थी।”
उन्होंने कहा, “कई वर्षो के बाद, ‘दक्षिण अफ्रीका के हीरो’ को अहमदाबाद क्लब में सम्मान दिया जाना था, जहां सरदार पटेल ब्रिज खेला करते थे।
तुषार गांधी ने कहा, “जब उन्होंने सुना कि गांधी को सम्मान दिया जाएगा और वह भाषण देंगे, सरदार यह देखने गए कि क्या गांधी इसबार बोलने में सक्षम होते हैं या एकबार फिर वह बेवकूफ बनेंगे।”
उन्होंने कहा कि बाद में सरदार ने गांधी के नेतृत्व को स्वीकार किया और उनके साथ काफी ईमानदार और लंबे समय तक चलने वाला संबंध विकसित किया।
तुषार ने कहा, “लेकिन सरदार ने कभी भी गांधी के नेतृत्व को आंख मूंदकर स्वीकार नहीं किया। प्रत्येक कदम पर, गांधी को सरदार को विश्वास दिलाने के लिए प्रयास करना पड़ता था। उसके बाद ही वह गांधी द्वारा उम्मीद किए गए कार्य को करते थे। दोनों में संबंध लंबे समय तक चलने वाला, आपसी विश्वास, सम्मान का था।”
गांधी के साथ नेहरू के संबंध पर, उन्होंने कहा कि यह ‘एक प्रकार का शिक्षक, शिष्य, मार्गदर्शक, अनुयायी, आदर्श और सेवक’ का संबंध था।
तुषार गांधी ने कहा कि नौजवान नेहरू गांधी के प्रति समर्पित थे और उन्हें पिता समान मानते थे।
उन्होंने कहा, “महात्मा गांधी भी उन्हें अपने बेटे की तरह मानते थे। नेहरू गांधी के काफी करीब थे, फिर भी उनकी अपनी विचारधारा थी और सिद्धांत थे जिसे वह मानते थे।”
तुषार ने कहा, “सरदार और गांधी वैसे वरिष्ठ दिग्गज थे जो भारतीय संस्कृति के प्रति ज्यादा केंद्रित थे जबकि नेहरू एक मॉडर्न और पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित व्यक्ति थे। लेकिन तीनों भारत से बहुत जुड़ाव रखते थे और पहले स्वतंत्रता की विचारधारा को लेकर चलते थे।”
तुषार गांधी ने कहा पटेल और नेहरू की उम्र में बहुत ज्यादा अंतर था लेकिन, ‘वह गांधी के साथ एकसाथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे।’
उन्होंने कहा, “दोनों नेहरू और पटेल गांधी और स्वतंत्रता के लिए अत्यधिक ईमानदार थे। उनके बीच मतभेद स्वतंत्रता और गांधी की निर्भरता खत्म होने के बाद उभरकर सामने आए।”
यह पूछे जाने पर कि कैसे पटेल और नेहरू गांधी पर निर्भर थे, पर तुषार ने कहा, “तीनों अलग-अलग स्तर पर उदार थे। तीनों में पंडित नेहरू सबसे ज्यादा उदार थे और सरदार दोनों की अपेक्षा कम उदार थे। लेकिन किसी में भी अतिवाद (रेडिक्लीजम) नहीं था।”
अर्थव्यवस्था पर गांधी के सिद्धांत पर प्रकाश डालते हुए तुषार ने कहा कि बापू का ढृढ़ता से मानना था कि सुधार और विकास तभी लंबे समय तक चल सकता है जब नीतियां गरीब से गरीब और कमजोर से कमजोर लोगों की जरूरतों को पूरा करे।
‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ किताब पर उन्होंने कहा कि यह बापू की निडर और ईमानदार आत्मकथा है।
नवीन शिक्षण पद्धतियों, अत्याधुनिक उद्यम व कौशल पाठ्यक्रम के माध्यम से, संस्थान ने अनगिनत छात्रों…
इतिहासकार प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ अहमद ने बिहार के इतिहास पर रौशनी डालते हुए बताया कि बिहार…
अब आवेदन की तारीख 15 जुलाई से 19 जुलाई तक बढ़ा दी गई है।
पूरे दिल्ली-NCR में सर्विस शुरु करने वाला पहला ऑपरेटर बना
KBC 14 Play Along 23 September, Kaun Banega Crorepati 14, Episode 36: प्रसिद्ध डिजाइनर्स चार्ल्स…
राहुल द्रविड़ की अगुवाई में टीम इंडिया ने 1-0 से 2007 में सीरीज़ अपने नाम…