पुलवामा से कश्मीर घाटी में बढ़ते ई-जेहाद का पता चला

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 नई दिल्ली, 20 फरवरी (आईएएनएस)| पुलवामा में हुए आतंकी हमले से घाटी में इंटरनेट के माध्यम से कट्टरपंथ को हवा देने की बात उजागर हुई है, जिससे युवा ऐसे आत्मघाती बम धमाके करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।

  आतंकी पूरी दुनिया में अपनी करतूतों को अंजाम देने के लिए इसका सहारा लेते हैं।

अधिकारियों ने बताया कि पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की बस में धमाका करने से पहले आदिल अहमद डार रिकॉड किए गए वीडियो कॉलिंग के जरिए कश्मीरी युवाओं को भारत के विरुद्ध जंग के लिए उकसा रहा था। वह ई-जेहाद का उत्पाद था, जो दावानल की तरह फैल रहा है।

2016 में बुरहान वानी को मार गिराए जाने के बाद पहली बार आतंकवाद का आकर्षण पैदा करने में इंटरनेट की भूमिका उजागर हुई। वानी की हत्या के बाद उसको सोशल मीडिया पर उभारा गया जिसके बाद वह मशहूर हो गया और अनेक युवाओं को हथियार उठाने को प्रेरित करने के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।

युवाओं के आतंकी बनने की प्रवृति के मद्देनजर 15 कोर कमांडर कंवल जीत सिंह ढिल्लों ने घाटी में माताओं को चेताया कि वे अपने बेटों को हथियार नहीं उठाने दें क्योंकि सेना उनको मार गिराएगी।

सुरक्षा बलों का डर है कि पुलवामा की घटना से सिलसिलेवार प्रतिक्रिया हो सकती है जिसमें आत्मघाती बम धमाका एक पद्धति बन सकता है। अक्सर संघर्षरत क्षेत्रों में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति देखी जाती है।

बीते साल जितने आतंकवादी मार गिराए गए उतने हाल वर्षो में कभी नहीं मारे गए थे, लेकिन आम नागरिकों के हताहत होने और सुरक्षा बलों के शहीद होने की तादाद भी काफी बढ़ गई। सुरक्षा बलों के दबाव से युवाओं का आतंकी संगठनों में शामिल होना नहीं रुक रहा है।

अधिकारियों ने बताया कि वैश्विक इस्लामिक साहित्य आसानी से उपलब्ध हो रहा है। एजेंसियां एक दर्जन से अधिक ऐसी वेबसाइट का अनुसरण कर रही हैं जिनपर घाटी में काफी अधिक लोग संपर्क करते हैं। अक्सर देखा जाता है कि शहादत की सांस्कृतिक परंपरा का गुणगान किया जाता है जो उन्माद तक ले जाता है। धार्मिक आतंकवाद का सक्रियता से प्रचार करने वाली पाकिस्तानी खुफिया संस्था आईएसआई भावनाओं को भड़काती है।

आतंकवाद का अड्डा माने जाने वाले पूरे दक्षिण कश्मीर में कट्टरता की लहर चल रही है, स्मार्टफोन रखने वाले युवाओं की नई पीढ़ी सेना पर पत्थरबाजी करने या हथियार उठाने को प्रेरित हो रही है।

पूरे क्षेत्र में मदरसे भी खुल गए हैं जहां स्थानीय कश्मीरियों के बजाए देवबंद के शिक्षक धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं।

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