राजू बंधुआ मजदूर से बन गया ‘जमीन का मालिक’

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मदुरै, 2 नवंबर (आईएएनएस)| पी.राजू के चेहरे पर खिली चमक उनकी खुशहाली की कहानी बयां कर जाती है। राजू कभी बुंदेलखंड में बंधुआ मजदूर हुआ करते थे मगर आज पैरंबलोर में साढ़े चार एकड़ जमीन का मालिक हैं।

राजू (61) की कहानी बड़ी दिलचस्प है, वह जब तीन साल के थे, तब उनके पिता पी. पालनीस्वामी वर्ष 1961 में अपने साथ काम पर बुंदेलखंड ले गए। बालक राजू झांसी के आसपास के इलाके में जवान हुआ, उसने वहां पत्थर काटने का काम किया। राजू के जीवन के 27 साल वहीं बीते, मगर विवाह तामिलनाडु में ही किया।

राजू बताते हैं कि उनके जीवन में बड़ा बदलाव लाने वाला दिन 28 सितंबर, 1988 था, जब वह ठेकेदारों के चंगुल से पूरी तरह मुक्त हुए। पी.वी. राजगोपाल का वहां पहुंचना हुआ, राजगोपाल उन दिनों सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बंधुआ मुक्ति अभियान के आयुक्त नियुक्त किए गए थे।

बुंदेलखंड के अनुभवों को साझा करते हुए राजू कहते हैं कि वहां पत्थर काटने का काम तामिलनाडु के मजदूर ही किया करते हैं, क्योंकि तामिलनाडु के मजदूरों में पत्थर काटने का हुनर है और वे मेहनती भी ज्यादा हैं। राजू स्वयं एक दिन में 100 पत्थर तक काट लिया करते थे।

राजू वहां के ठेकेदारों की कार्यशैली से अब भी नाराज हैं, भले ही उन्हें वहां से लौटे तीन दशक बीत गए हों। वह बताते हैं कि ठेकेदार 1000 रुपये पेशगी के तौर पर देकर अपने जाल में फंसा लेते हैं और उसके बाद मजदूरी की रकम में से पेशगी की किस्त के तौर पर काटते हैं, जब भी काम छोड़ने की बात करो, धमकाते हैं।

राजू बताते हैं कि जो भी मजदूर काम छोड़कर दूसरे स्थान पर जाने की बात जैसे ही करता है, ठेकेदार धौंस जमाता है। पहले तो पेशगी में दी गई रकम को दोगुनी से ज्यादा बताकर वापस मांगता है। मजदूर के पास उतनी रकम होती नहीं, उसके बाद भी मजदूर जाने की जिद करता है तो उससे मारपीट तक की जाती है।

बुंदेलखंड में पत्थर के कारोबार में सक्रिय कई ठेकेदारों और दबंगों के नाम अब भी राजू को याद है। वह कहते हैं कि पी.वी. राजगोपाल ने झांसी जिले के कस्बे मोंठ के पास स्थित दासना व अन्य गांव से एक दिन में ढाई सौ से ज्यादा परिवारों को मुक्त कराया था। प्रशासन के सहयोग के चलते मजदूरों के गिरवी रखे गहने भी सूदखोर ने लौटा दिए थे।

राजू इस समय साढ़े चार एकड़ जमीन के मालिक हैं। उनके तीन बेटे और एक बेटी है। बेटी की शादी हो चुकी है। राजू अब पूरी तरह निश्चिंत हैं। उनका कहना है कि कभी भी दिहाड़ी के लिए परेशान न होकर स्थायी आमदनी का जरिया खोजना चाहिए।

 

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