पुण्यतिथि विशेष : कभी खुद शिकारी रहे जिम कॉर्बेट, बाद में बाघों को शिकार से बचाने लगे

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जिम कॉर्बेट के गुजरने के 18 साल बाद भारत सरकार ने अप्रैल 1973 को कॉर्बेट नेशनल पार्क में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के देश में आरंभ होने की औपचारिक और ऐतिहासिक घोषणा की।

तीन पीढ़ियों पहले जिम के पूर्वज आयरलैंड के हरित चारागाहों को छोड़कर हिंदुस्तान आ बसे थे। वह सभी इस देश की मिट्टी में कब्रनशीं हुए लेकिन जिम ने अपने जीवन की गोधूलि-बेला के लिए केन्या के जंगल चुने। 19 अप्रैल 1955 को केन्या की नएरी नदी के पास बने सेंट पीटर चर्च में लॉर्ड बेडेन-पॉवेल की कब्र के पास उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया। यह जगह उस ‘छोटी हल्द्वानी’ से बहुत दूर थी जिसकी सुगंधि ने जिम कॉर्बेट को कभी तन्हा न छोड़ा था।

25 जुलाई, 1885 को क्रिस्टोफर कॉर्बेट के घर जन्मे जिम 16 भाई-बहनों में आठवें नंबर पर थे। शुरू से ही पहाड़ों और जंगलों में रहने के कारण इन्हें जानवरों और जंगलों से ख़ास लगाव था जो आखिरी समय तक बना रहा। अपने बचपन में इनकी जानवरों से इतनी अच्छी दोस्ती थी कि उन्हें आवाज़ से पहचान लेते थे। जब 6 साल के थे, तब पिता की मौत हो गई। स्कूल तो जाते लेकिन पढाई-लिखाई में ज्यादा मन नहीं लगता था। 19 की उम्र में पढ़ाई छोड़कर रेलवे में नौकरी करने लगे।

जिम कॉर्बेट ऐसे आदमी थे  जो कभी खुद शिकारी हुआ करते थे फिर वही जानवरों को बचाने लगे और आगे चलकर जानवरों पर ही किताबें लिखने लगे। उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम भी इनके नाम पर ही है। क्योंकि जिम कॉर्बेट को जानवरों से बहुत लगाव था, वे जो भी करते, वो जानवरों और जंगल से जुड़ा होता था। इनका नाम इतना खास इसलिए है क्योंकि पहले ये इंसानों को बाघों से बचाते थे। लेकिन बाद में बाघों को इंसानों से बचाने लगे।

ब्रिटिश आर्मी में कर्नल के रैंक पर रहे जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट उर्फ़ जिम कॉर्बेट को यूनाइटेड प्रोविंस में ख़ासतौर से बुलाया गया था। सिर्फ बाघ और दूसरी तरह के आदमखोर जानवरों को मारने के लिए। इतने बड़े शिकारी थे कि साल 1907 से 1938 के बीच 19 बाघों और 14 चीतों का शिकार किया।

यूनाइटेड प्रोविंस (अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) के लोग जानवरों खासकर बाघ और चीतों से बहुत परेशान थे। उस इलाके में ये जानवर इंसानों पर काफी अटैक करते थे। तब तक इनके हत्थे तक़रीबन 1200 लोग चढ़ चुके थे। उस वक़्त जिम कॉर्बेट की गिनती सबसे अच्छे शिकारियों में होती थी, इसलिए इन्हें शिकार के लिए बुला लिया गया। जब यहां आकर उन्होंने हालात का जायज़ा लिया तो सच में मामला गंभीर निकला। जिम के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने उन्हीं जानवरों का शिकार किया था, जिनके आदमखोर होने की बात कन्फर्म थी। लेकिन सरकारी आंकड़ों में इसे गलत बताया गया है। सरकारी कागज़ात के मुताबिक़ जिम ने चंपावत बाघिन, चावगढ़ बाघिन के साथ उसके बच्चे, पनार चीता, रुद्रप्रयाग का आदमखोर चीता, मोहन आदमखोर चीता, ठक आदमखोर चीता और चूका बाघिन का शिकार किया। लेकिन उन्होंने बैचलर ऑफ़ पॉवलगढ़ का भी शिकार किया जिसके खिलाफ आदमखोर होने का कोई सबूत नहीं मिला था। इस पर जिम विवादों में भी आए।

कॉर्बेट बाघों और अन्य जानवरों के शरीर को अपने घर ले जाकर उसकी जांच-पड़ताल करते थे। उसके बाद उनके सिर और खालों को दीवारों पर सजा देते थे। ऐसी ही एक जांच के दौरान उन्हें एक बड़ी अजीब जानकारी हाथ लगी, जिसने उनकी सोच और आदत दोनों बदल दी।

एक बार जब जिम ऐसे ही शिकार किए बाघों की जांच कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि कई के शरीर में पहले से ही दो-तीन घाव मौजूद थे। जिनमें से कुछ गोली और तीर के घाव थे तो कुछ उनकी वजह से सेप्टिक हो जाने के कारण थे। जिम ने ये पाया कि इन्हीं घावों और जख्मों के चलते वो आदमखोर बन जाते हैं। वो आदमियों को देखकर ही चिढ़ और भड़क जाते और उन पर हमला कर देते थे।

ये सब देखकर जिम को एहसास हुआ कि सुरक्षा इंसानों को बाघों से नहीं, बल्कि बाघों को इंसानों से चाहिए। इसी कड़ी में उन्होंने यूनाइटेड प्रोविंस में अपनी पहचान और सिफारिश लगाकर एक ऐसे पार्क का बनवाया, जहां ये जीव सुरक्षित रह सकें। उसका नाम था हेली नेशनल पार्क। बाद में उस पार्क का नाम बदलकर जिम कॉर्बेट के ऊपर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया। 1968 में इंडो-चाइना मूल के बाघ की एक प्रजाति का नाम ‘पंठेरा टिगरिस कॉर्बेटी’ भी कॉर्बेट के नाम पर ही रखा गया। उसे कॉर्बेट टाइगर भी कहा जाता था।

जिम अपने अनुभवों को सहेजकर या तो किताबें लिखते या फिर एक और ब्रिटिश वन-अधिकारी एफडब्लू चैम्पियन से प्रभावित होकर उनकी फोटोग्राफी करने लगे थे। उन्होंने अपनी जिंदगी के अनुभवों को कई किताबों में हमारे साथ साझा किया है। उनकी मुख्य किताबें हैं ‘मैन-ईटर्स ऑफ़ कुमाऊं’, ‘माय इंडिया’, ‘जंगल लोर’, ‘जिम कॉर्बेट्स इंडिया’ और ‘माय कुमाऊं’. उनकी किताब ‘जंगल लोर’ को ऑटोबायोग्रफी माना जाता है। वो बच्चों के लिए भी एक तरह की क्लासेज चलाते थे जहां उन्हें अपनी नेचुरल हेरिटेज को बचाने और उसके संरक्षण की बातें सिखाते थे।

भारत की आज़ादी के पहले जिम अपनी बहन मैगी के साथ नैनीताल के ‘गर्नी हाउस’ में रहते थे। भारत की आज़ादी के बाद 1947 में जिम केन्या शिफ्ट हो गए। वो वहां पेड़ों पर झोपड़ी बनाकर रहते थे। उनके ट्री हाउस में एक बार ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ भी घूमने आई थीं। ये बात है साल 1952 की, जिस साल किंग जॉर्ज 6 की मौत हुई थी। हालांकि यहां भी उन्होंने अपना लेखन जारी रखा था। उनके योगदान के लिए उन्हें 1928 में ‘कैसर-ए-हिंद’ मेडल से सम्मानित किया गया। उनके जीवन पर ढेरों फ़िल्में बनीं, जिनमें बीबीसी द्वारा बनाई गई डॉक्यूड्रॉमा ‘मैन ईटर्स ऑफ़ इंडिया’ और आईमैक्स मूवी ‘इंडिया- किंगडम ऑफ़ टाइगर’ भी शामिल हैं।

उनके पीछे उनकी किताबें, उनकी यादें, उनकी बंदूक, उनका ट्री हाउस, उनके नाम पर बना टाइगर रिज़र्व रह गया। आखिरी और छठी किताब ट्री टॉप्स नाम से आई। उनके आस-पास के लोग बताते हैं कि वो ऐसे जी रहे थे, मानो अपनी किताब ख़त्म करने के लिए जी रहे हों।

This post was last modified on April 18, 2019 7:28 PM

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