Sahir Ludhianvi Death anniversary: साहिर के गीत की पहली लाइन सुनकर गुरु दत्त गाउन में ही उनके घर पहुंच गए थे

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साहिर लुधियानवी का जिक्र हो और अमृता प्रीतम की बात न हो ऐसा कैसे हो सकता है। शायर और गीतकार साहिर अमृता पर अपनी जान छिड़कते थे। अमृता के साथ भी कुछ ऐसा ही था। अमृता और साहिर की प्रेम कहानी कुछ अलग ही थी।

अमृता वो साहिर जिनके लिए पाकिस्तान छोड़ आए थे। साहिर वो जिनकी बुझी हुई सिगरेट के अंश में अमृता प्रेम की तलाश में उसे सहेज कर रखती थीं। मोहब्बत इस कदर की अमृता के हमसफ़र को भी अमृता की साहिर के लिए मोहब्बत का इल्म था। कम उम्र में शादी भी मोहब्बत की उम्र में मोहब्बत को कैद नहीं कर पाई।

अमृता ने अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट मे लिखा था कि “वो चुपचाप मेरे कमरे में सिगरेट पिया करता। आधी पीने के बाद सिगरेट बुझा देता और नई सिगरेट सुलगा लेता। जब वो जाता तो कमरे में उसकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती। मैं उन सिगरेट के बटों को संभाल कर रखतीं और अकेले में उन बटों को दोबारा सुलगाती। जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता कि मैं साहिर के हाथों को छू रही हूँ। इस तरह मुझे सिगरेट पीने की लत लगी।”

साहिर और अमृता की प्रेम कहानी महज कहानी ही रह गई थी। धर्म अलग होने के कारण दोनों की शादी नहीं हो सकी थी। लेकिन उम्र भर न साहिर का प्यार अमृता के लिए कम हुआ और न ही अमृता का प्यार साहिर के लिए। अमृता की शादी तो कम उम्र में ही हो गई थी लेकिन साहिर ने ताउम्र बिना शादी के ही गुजार दिया।

साहिर का जन्म 8 मार्च 1921 को लुधियाना में हुआ था। साहिर की शिक्षा लुधियाना के खा़लसा हाई स्कूल में हुई। साल 1943 में साहिर लाहौर आ गये। यहां जाने के बाद उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह ‘ तल्खियाँ ‘ छपवाईं। यही वो कविता संग्रहा है जिससे उन्हें ख्याति प्राप्त हुई। साल 1945 में वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार (लाहौर) के सम्पादक बने। बाद में वे द्वैमासिक पत्रिका सवेरा के भी सम्पादक बने।

साहिर ने आना है तो आ, अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम, चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें, मन रे तु काहे न धीर धरे, मैं पल दो पल का शायर हूं, यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है और ईश्वर अल्लाह तेरे नाम जैसे कुछ बेहतरीन गानों को लिखा है। फिल्म प्यासा के गाने लिखने के बाद साहिर खूब फेमस हुए थे।

फिल्म प्यासा का एक बेहद मशहूर किस्सा है। इस फिल्म के दौरान एक बार साहिर ने गुरु दत्त को फोन किया और कहा कि मैंने एक गाना लिखा है क्या इसे फिल्म में जगह मिल सकती है? इस पर गुरु दत्त ने कहा फिल्म में अब एक भी गाने की जगह नहीं बची है। साहिर ने कहा एक बार सुन तो लीजिए। साहिर ने जैसे इस गाने की एक लाइन सुनाई गुरु दत्त फोन रखकर गाउन पहने हुए ही साहिर के घर चले गए। बाद में ये गाना काफी हिट हुआ। यह गाना था ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला।’

25 अक्टूबर 1980 को 59 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से साहिर लुधियानवी का निधन हो गया था।

This post was last modified on October 24, 2020 7:21 PM

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