नई दिल्ली। कभी देश के सबसे ताकतवर पुलिस अधिकारी माने जाने वाले केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) समेत अपने सेवानिवृत्ति लाभ के लिए पिछले कुछ महीनों से दर-दर भटक रहे हैं। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1979 बैच के अधिकारी वर्मा की पिछली पूरी सेवा अवधि पर उस समय रोक लगा दी गई जब सरकार द्वारा उन्हें प्रतिष्ठित सीबीआई निदेशक पद से हटाने के फैसले को उन्होंने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए चुनौती दी।
गृह मंत्रालय द्वारा 14 अक्टूबर को लिखे गए गोपनीय पत्र को देखने के बाद आईएएनएस को पता चला कि वर्मा के जीपीएफ व अन्य लाभ पर रोक लगा दी गई है क्योंकि वह अनधिकृत अवकाश पर चले गए, जिसे सरकारी सेवा भंग करने का गंभीर मामला माना जाता है।
गृह मंत्रालय के पत्र संख्या 45020/4/2019 के अनुसार, “वर्मा के मामले की मंत्रालय द्वारा जांच करने के बाद आलोक वर्मा की 11.01.2019 से लेकर 31.01.2019 की गैरहाजिरी की अवधि को बिना जवाबदेही के रूप में मानने का फैसला लिया गया।”
आसान शब्दों में कहें तो वर्मा के अनधिकृत अवकाश को सेवा में विराम माना गया है जिससे वह अपने सेवानिवृत्ति लाभ से वंचित हो गए हैं।
वर्मा और उनके सीबीआई में अधीनस्थों के साथ उनके काफी चर्चित विवाद के कारण दो विरोधी गुटों के अधिकारियों ने एक दूसरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाए थे जिसे गृह मंत्रालय ने गंभीरता से लिया।
जीपीएफ रोकने के संबंध में मंत्रालय ने वर्मा के खिलाफ दो अलग-अलग अनुशासनात्मक कार्यवाही के मामले (दिनांक 31/01/2019 और 18/04/2019) का जिक्र किया है जिसमें उनको कटघरे में खड़ा किया गया है।
बताया जाता है कि वर्मा ने अपने अधीनस्थ सीबीआई के तत्कालीन विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ गलत एफआईआर दर्ज करवाने में कथित तौर पर अपने पद का दुरुपयोग किया।अस्थाना ने इस पर वर्मा पर भ्रष्टाचार के कुछ अहम मामलों की लीपापोती करने का आरोप लगाया था।
उधर, वर्मा के नजदीकी अधिकारियों के गुट का कहना है कि अगर कोई कर्मचारी किसी विवादास्पद मामले या जांच के घेरे में हो तो भी उसके जीपीएफ पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।उनके अनुसार, जीपीएफ एक ऐसी निधि है जिसमें सरकारी कर्मचारी अपने वेतन का एक निश्चित प्रतिशत योगदान देता है और संग्रहित राशि का भुगतान कर्मचारी को उसकी सेवानिवृत्ति पर किया जाता है।
सूत्रों ने बताया कि इस आधार पर वर्मा ने पिछले 27 जुलाई को सरकार को एक पत्र लिखकर जीपीएफ का अंतिम भुगतान जारी करने की मांग की है।गृह मंत्रालय ने इस संबंध में कानूनी मामलों के विभाग से राय मांगी है कि क्या वर्मा को जीपीएफ का भुगतान किया जा सकता है।
स्पष्ट राय देने के बजाय कानून विभाग का सुझाव है कि गृह मंत्रालय को इस मामले में श्रम मंत्रालय और व्यय विभाग (वित्त मंत्रालय) से संपर्क करना चाहिए।गृह मंत्रालय ने अब श्रम मंत्रालय से इस संबंध में राय मांगी है। साथ ही, वित्त मंत्रालय से वर्मा को जीपीएफ का भुगतान किए जाने के संबंध में सुझाव मांगा गया है।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि वर्मा को जीपीएफ व अन्य लाभ देने से संबद्ध मसले पर फैसला इस समय संबंधित मंत्रालय में लंबित है।
This post was last modified on October 26, 2019 11:11 AM
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