20 अप्रैल को मनाई जाएगी शब-ए-बारात, जानें क्यों कहते हैं इसे इबादत की रात

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20 अप्रैल को इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए एक बड़ा दिन है। इस साल ‘शब-ए-बारात’ 20 अप्रैल को मनाई जायेगी। मुसलमानों के लिए यह रात बेहद महत्वपूर्ण रात मानी जाती है। इस रात दुनिया के सारे मुस्लिम समाज के लोग खुदा की इबादत करते हैं। वे अल्लाह से दुआएं मांगते हैं और अपने गुनाहों के लिए माफ़ी मांगते हैं।

इस्लामी कैलेंडर के अनुसार शाबान माह की 14 तारीख को सूरज डूबने के बाद शब-ए-बारात मनाई जाती ।है इस त्यौहार में इस्लाम धर्म को मानने वाले पूरी रात जाग कर अपने खुदा की इबादत करते हैं। ‘शब्-ए- बारात’ की इस रात में मुस्लिम समाज के लोग खुदा से उन लोगों की रूह की शांति की प्रार्थन करते हैं, जो इस दुनिया से जा चुके हैं।

क्या है ‘शब-ए-बारात’ का मतलब?

‘शब-ए-बारात’ अरबी के दो शब्दों ‘शब’ और ‘बारात’ से मिलकर बना है। ‘शब’ का मतलब रात और ‘बारात’का मतलब निजात होता है। इसे लैलतुल बराअत भी कहा जाता है, जिसका मतलब है ‘मगफिरत’ यानी ‘गुनाहों से माफी और निजात की रात’। इसके मायने की तरह इस रात में खुदा से गुनाहों की माफ़ी मांगने के लिए उसकी इबादत की जाती है।

वे मुकद्दस रातें

‘शब-ए-बारात’ इस्लाम की चार मुकद्दस रातों में से एक है। इसमें पहली रात शब-ए-मेराज, दूसरी शब-ए-बरआत और तीसरी यानी अंतिम शब-ए-कद्र होती होती है।

क्यों है शब-ए-बारात’ का इतना महत्त्व

इस्लाम प्रवर्तक हजरत मुहम्मद ने इसे ‘रहमत की रात’ बताया है। इस्लाम धर्म में मान्यता है कि ‘शब-ए-बारात’ हर इंसान की की जिंदगी के लिए उम्र, असबाब, यश, कीर्ति आदि सब कुछ तय की जाती है। अल्लाह इस पाक रात में हर इंसान की ज़िन्दगी को तय करता है। कहा जाता है कि इस रात खुदा से सच्चे मन से जो भी और जितना भी माँगा जाए, अल्लाह सबकी दुआ क़ुबूल करता है। यही वजह है कि मुस्लिम समाज के लोग इस रात में अल्लाह से अपनों के गलत कर्मों के लिए माफी मांगते हैं और दुआ करते हैं कि उन्हें और उनके करीबियों को जन्नत में जगह मिले। इस रात शिया और सुन्नी दोनों कौम के लोग रात भर खुदा की इबादत करते हैं। कुछ लोग कब्रिस्तान में जाकर अपने पूर्वजों की कब्र पर फूल-मालाएं और अगरबत्तियां चढ़ाते हैं और वहीं पूरी रात जागकर नमाज एवं कुरआन की आयतें पढ़कर अपनों को बक्शने की दुआ मांगते हैं। तो कुछ लोग मस्जिदों में खुदा की इबादत करते हैं। मुस्लिम समाज की औरतें घर पर ही नमाज़ और कुरआन पढ़ खुदा की इबादत करती हैं।

रुखसत हो चुके अपनों के लिए करते हैं दुआएं

इस दिन रुखसत हो चुके अपनों के नाम फातिहा करवाकर गरीबों को खाना खिलाने का प्रचलन है, ताकि जरूरतमंदों के दिलों से निकली सच्ची दुआओं से मरने वालों के गुनाह माफ हो सकें। इसके अलावा खुदा की इबादत कर गुज़रे वक्त के गुनाहों के लिए माफ़ी मांगी जाती है और आने वाले वक़्त के लिए दुआएं, क्योंकि इसी रात में किये गये कर्मों का लेखा-जोखा तैयार किया जाता है और आने वाले वक़्त की तकदीर तय की जाती है।

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