Shradh 2019 Special: ‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ से बना है, यानी विशेष दिनों में अपने पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करना। वेद पुराणों में उल्लेखित है कि संकल्प से किए गए कर्म जीव तक अवश्य पहुंचता है और वे तृप्त होकर उन्हें आशीर्वाद भी देते हैं है। श्राद्ध का अधिकार सर्वप्रथम पुत्र को है। उसके पश्चात क्रमश: पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र, पत्नी, भाई, भतीजा, पिता, माता, पुत्रवधू, बहन, भानजा भी सगोत्री माने जाते हैं। पूरे कुटुंब द्वारा श्राद्ध क्रिया करने से सभी को यथेष्ट फलों की प्राप्ति होती है। इस बार यह 28 सितंबर शनिवार को है।
भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या तक का समय श्राद्ध अथवा पितृपक्ष कहलाता है। मान्यतानुसार इन 16 दिनों पितर भिन्न-भिन्न रूपों में पृथ्वी पर उतरते हैं और अपने परिजनों से विशेष मान-सम्मान की उम्मीद रखते हैं। श्राद्ध के इन सभी 16 दिनों में तिथि अनुसार पितरों तक भोजन पहुंचने के लिए पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटियों को खाद्य सामग्री परोसी जाती है। इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है। ज्यादातर जगहों पर खीर-पुड़ी खिलाई जाती है। कहीं-कहीं पितरों के पसंद के अनुसार व्यंजन (जीवित रहते जो उन्हें पसंद थे) भी परोसे जाते हैं। पंचबलि कर्म में कुतब बेला में निम्न पांच स्थानों पर भोजन रखे जाने का विधान है।
श्राद्ध का आदर्श समयः दिन 11.30 से 12.30 तक माना जाता है, इसे ही ‘कुतप बेला’ कहते हैं।
This post was last modified on September 27, 2019 4:02 PM
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