साल 1957 के बिहार विधानसभा चुनाव की बात है। इस चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार थे एक पहले से मुख्यमंत्री रहे श्रीकृष्ण सिन्हा उर्फ श्री बाबू और दूसरे थे अनुग्रह नारायण सिंह। हालांकि अनुग्रह नारायण सिंह श्री बाबु के बेहद खास माने जाते थे लेकिन वो इस चुनाव में अपने आप को मुख्यमंत्री पद के दावेदार की तरह पेश कर रहे थे।
अंतत: बाजी मारी श्रीकृष्ण सिन्हा ने। अनुग्रह सीएम के लिए श्री बाबू को चुनौती देकर हार गए थे। इसके बाद अनुग्रह नारायण श्री बाबू के घर पहुंचे थे और दोनों नेता गले मिलकर फूट-फूटकर रोए थे।
श्री बाबू और अनुग्रह नारायण सिंह ने आजादी की लड़ाई साथ-साथ लड़ी थी। अंग्रेजों के समय 1938 में जब बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी तो श्री बाबू पीएम (तब प्रधानमंत्री कहलाते थे) के मंत्रिमंडल में अनुग्रह नारायण सिंह भी शामिल हुए थे। दोनों में किसी भी तरह का मतभेद नहीं हुआ करता था। लेकिन खुद अनुग्रह ने यह बात मानी थी कि 1957 के बिहार विधानसभा चुनाव में बहकावे में आकर वो श्री बाबू के खिलाफ गए थे।
साल 1935 में अंग्रेजों ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट लाया था। इसके तहत राज्यों के प्रशासन में भारतीयों को हिस्सा देने की बात कही गई थी। उन दिनों राज्यों में प्रधानमंत्री हुआ करते थे। 1937 में बिहार का चुनाव होना था। इसके लिए मुख्यमंत्री पद (तब प्रधानमंत्री) का चेहरा तलाशा जा रहा था। इसी के संदर्भ में महात्मा गांधी ने देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को चिट्ठी लिखी।
इस चिट्ठी में गांधी जी ने अनुग्रह नारायण सिंह के मुख्यमंत्री (तब प्रधानमंत्री) बनने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन उनकी इस इच्छा का कुछ नेताओं ने विरोध किया और श्री बाबु को इसका दावेदार बताया। वजह था जातीय समीकरण। इस फैसले पर खुद अनुग्रह ने भी श्री बाबू के पक्ष में ही अपना फैसला कहा। इस तरह श्रीकृष्ण सिन्हा उर्फ श्री बाबू बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने।
श्री बाबु का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को बंगाल प्रेसीडेंसी मुंगेर जिले में एक भूमिहार ब्राम्हण परिवार में हुआ था। इन्हें ‘बिहार केसरी’ भी कहा जाता है। इन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एम.ए. और क़ानून की डिग्री ली और मुंगेर में वकालत करने लगे। गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन आरंभ करने पर इन्होंने वकालत छोड़ दी और बचा जीवन सार्वजानिक कार्यों में ही लगा दिया।
साइमन कमीशन के बहिष्कार और नमक सत्याग्रह में भाग लेने पर श्री बाबु गिरफ्तार भी किए गए थे। इनके कार्यकाल में जमींदारी प्रथा समाप्त की गई थी, सिंद्री का खाद कारखाना, बरौनी का तेल शोधक कारखाना, मोकाना में गंगा पर पुल जैसे कुछ बेहतरीन कार्य भी इनके नाम हैं।
This post was last modified on October 20, 2020 7:50 PM
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