नई दिल्ली, 26 जुलाई (आईएएनएस)| सरकार के विधेयकों को ‘जल्दी’ में बिना संसदीय जांच के पारित करने को लेकर चिंता जाहिर करते हुए 17 विपक्षी पार्टियों ने राज्यसभा सभापति को लिखे एक पत्र में कहा है कि यह स्थापित परंपरा व कानून बनाने की स्वस्थ परंपरा से अलग होना है।
सदस्यों ने कहा है कि लोकसभा चुनावों के बाद से पहले सत्र में पहले ही 14 विधेयक पारित हो चुके हैं और इसमें से किसी को भी स्थायी समिति या प्रवर समिति को विधायी जांच के लिए नहीं भेजा गया है।
उन्होंने कहा कि 11 और विधेयकों को पेश करने, विचार व आने वाले दिनों में पारित करने लिए सूचीबद्ध किया गया है।
इस संयुक्त पत्र पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी, माकपा और भाकपा व अन्य दलों के नेताओं ने हस्ताक्षर किया है। इन दलों के नेताओं ने कहा कि 14वीं लोकसभा में 60 फीसदी विधेयकों को संसदीय समिति की जांच के लिए भेजा गया।
उन्होंने कहा कि 15वीं लोकसभा में 71 फीसदी विधेयकों को जांच के लिए भेजा गया। लेकिन 16वीं लोकसभा में इसमें तेजी से गिरावट आई और सिर्फ 26 फीसदी को जांच के लिए भेजा गया।
सदस्यों ने जोर देते हुए कहा, “हम अपनी जिम्मेदारी व कानून बनाने की जरूरत को समझते हैं, सदस्यों के अधिकारों को कमजोर करने का सरकार का कोई प्रयास, नियमों व स्थापित परंपराओं व राज्यसभा की भूमिका को कमतर करेगी।”
सदस्यों ने शिकायत की कि उन्हें मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 में संशोधन नोटिस दाखिल करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया।
इसमें अल्पकालिक चर्चा का मुद्दा भी उठाया गया। संयुक्त पत्र में कहा गया कि बजट सत्र के चार सप्ताह में सिर्फ दो अल्पकालिक चर्चाओं की अनुमति दी गई।
सदस्यों ने सभापति से आग्रह किया, “हम आप से यह सुनिश्चित करने का आग्रह करते है कि विपक्ष की आवाज को राज्यसभा में नहीं दबाया जाए।”
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