नई दिल्ली, 6 नवंबर (आईएएनएस)| राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सड़कों पर पिछले चार दिनों से पुलिस और वकीलों के बीच जारी युद्ध में न सिर्फ शहर के नागरिक, बल्कि इन दोनों विभागों से जुड़े लोग भी उलझन में हैं।
राष्ट्रीय राजधानी में कानून-व्यवस्था के अभूतपूर्व तरीके से भंग होने और रक्षकों द्वारा ही खुद को पीड़ित बताए जाने के बाद लोग असमंजस में हैं कि वे मदद के लिए किसे बुलाएं।
दिल्ली पुलिस में एक उपायुक्त (डीसीपी, आईपीएस) के बेटे अधिवक्ता ध्रुव भगत के लिए तो दुविधा और बढ़ जाती है। उन्हें किसका समर्थन करना चाहिए? पुलिस का, जिन्हें वायरल वीडियोज में पिटता हुआ देखा जा रहा है, या अपने वकील समुदाय का।
शायद इसी असमंजस के कारण भगत को दोनों पक्षों से शनिवार को तीस हजारी कोर्ट परिसर में हुई हिंसा में उनके व्यवहार पर सवाल करने के लिए एक ओपन लेटर (सार्वजनिक पत्र) लिखने के लिए बाध्य होना पड़ा। हिंसा में कई लोग घायल हो गए और दर्जनों वाहन क्षतिग्रस्त कर दिए गए थे।
भगत ने अपने पत्र में वकीलों और पुलिस से काम पर लौटने और मामले की न्यायिक रिपोर्ट का इंतजार करने का आग्रह किया है, जिससे आम जनता को और दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
भगत ने अपने पत्र में सवाल किया, “क्या वकील को लॉक-अप के ठीक बाहर कार पार्क करना सही था? जहां अधिकारियों की कारों समेत कैदियों को जेल से अदालत लाने-ले जाने वाली दिल्ली पुलिस तीसरी वाहनी की बसें पार्क होती हैं? क्या पुलिसकर्मियों द्वारा सुरक्षा का हवाला देकर आपत्ति जताने के बावजूद वहां कार पार्क करना उचित था?”
पत्र में हिंसा की शुरुआत पर भी सवाल उठाया गया है।
उन्होंने लिखा, “दोनों पक्षों में हिंसा भड़कने के बाद वकीलों के चैंबर्स को नष्ट करने की पुलिसकर्मियों का क्या सही है? क्या पुलिसकर्मियों द्वारा पिस्तौल से गोली दागने की घटना सही है?”
वे आगे पूछते हैं, “क्या घटना के बाद वकीलों का समूह बनाकर सरकारी और निजी वाहनों को नष्ट करना तर्कसंगत कार्य है? क्या वकीलों द्वारा समूचे कोर्ट परिसर को सील करना और वादियों, कोर्ट स्टाफ तथा यहां तक कि न्यायिक अधिकारियों का उत्पीड़न करना सही है? क्या अगले दिन प्रदर्शन कर रहे वकीलों द्वारा खुले में एक पुलिसकर्मी को पीटने की घटना सही है?”
उन्होंने कहा, “अगर ऊपर पूछे गए सभी सवालों का जवाब ना है तो आरोप-प्रत्यारोप का खेल बंद करें, कानून अपने हाथों में लेना बंद करें और न्यायिक रिपोर्ट के आने का इंतजार करें। न्यायिक कार्य होने दें और वकीलों और पुलिस के बीच अहं की अनावश्यक लड़ाई को बंद कर वादियों को परेशान न करें।”
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