मोदी सरकार के अंतरिम बजट से पहले राहुल गांधी के न्यूनतम आय गांरटी के चुनावी वादे को एक बड़ी बढ़त के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसे में यह भी चर्चा चल रही है के क्या राहुल गांधी ने 1 फरवरी को आ रहे मोदी सरकार के अंतरिम बजट को पढ़ लिया है? 03 राज्यों में कर्जमाफी के ‘सफल’ चुनावी वादे के बाद न्यूनतम आय की गारंटी का दांव खेलकर राहुल ने बजट से पहले केंद्र सरकार को दवाब में ला दिया है। पिछले कुछ दिनों से बजट को लेकर चर्चा गर्म है कि मोदी सरकार अपने इस आखिरी बजट में गरीबों के लिए न्यूनतम आय गांरटी का ऐलान करने जा रही है। ऐसे में राहुल ने बजट से 3 दिन पहले ही यह चुनावी वादा कर नया पासा फेंका है।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) स्कीम-आर्थिक असमानता कम करने की कोशिश
दुनिया भर में बढ़ती आर्थिक असमानता ने कई तरह की चुनौतियों को जन्म दिया है। भारत में भी आर्थिक असमानता काफी तेजी से बढ़ रही है। लंदन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गाय ने गरीबी हटाने के लिए अमीर-गरीब, सबको निश्चित अंतराल पर तयशुदा रकम देने का विचार पेश किया। उनका मानना है कि इस स्कीम का लाभ लेने के लिए किसी भी व्यक्ति को अपनी कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति अथवा बेरोजगारी का सबूत नहीं देना पड़े।
आर्थिक सर्वे 2016-17 में कहा गया था कि भारत में केंद्र सरकार की तरफ से प्रायोजित कुल 950 स्कीम हैं और GDP बजट आवंटन में इनकी हिस्सेदारी करीब 5 फीसदी है। ऐसी ज्यादातर स्कीमें आवंटन के मामले में छोटी हैं और टॉप 11 स्कीमों की कुल बजट आवंटन में हिस्सेदारी 50 फीसदी है। इसे ध्यान में रखते हुए सर्वे में यूबीआई को मौजूदा स्कीमों के लाभार्थियों के लिए विकल्प के तौर पर पेश करने का प्रस्ताव दिया गया है। सर्वे के मुताबिक, ‘इस तरह से तैयार किए जाने पर यूबीआई न सिर्फ जीवन स्तर बेहतर कर सकता है, बल्कि मौजूदा स्कीमों का प्रशासनिक स्तर भी बेहतर कर सकता है।’
प्रयोग की सफलता ने बढ़ाई चर्चा
मध्य प्रदेश की एक पंचायत में पायलट प्रॉजेक्ट के तौर पर ऐसी स्कीम को लागू किया गया था जिसके बेहद सकारात्मक नतीजे आए थे। इंदौर के 8 गांवों की 6,000 की आबादी के बीच 2010 से 2016 के बीच इस स्कीम का प्रयोग किया। इसमें पुरुषों और महिलाओं को 500 और बच्चों को हर महीने 150 रुपये दिए गए। इन 5 सालों में इनमें अधिकतर ने इस स्कीम का लाभ मिलने के बाद अपनी आय बढ़ा ली।
कैसे होगा लागू?
देश में गरीबी रेखा के दायरे में कौन-कौन आता है, आकलन ठीक से नहीं हुआ है। तेंदुलकर कमेटी में 22 फीसदी आबादी को गरीब बताया गया था जबकि सी. रंगराजन कमेटी ने 29.5 आबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना था। इन उलझनों के बीच सरकार आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग को एक निश्चित रकम दे सकती है। इसके लिए सरकार 2011 में सामाजिक, आर्थिक, जातीय जनगणना के तहत जुटाए गए आंकड़ों का सहारा ले सकती है। हालांकि, यूबीआई लागू करने के लिहाज से जाति-धर्म का आंकड़ा नजरअंदाज किया जाए।
This post was last modified on January 29, 2019 7:23 AM
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