लखनऊ, 21 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के सियासी समर में करीब डेढ़ साल का वक्त बाकी है। लेकिन यहां पर राजनीतिक तापमान चढ़ने लगा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी के यूपी से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद राजनीतिक हलकों में पार्टियों के नफा-नुकसान की चर्चा होने लगी है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा, बसपा और कांग्रेस पार्टी सोशल मीडिया के जरिए राजनीति कर रही हैं। इससे धरातल पर विपक्ष का एक जगह खाली सी हो गई है। उसका फायदा आम आदमी पार्टी (आप) को मिल रहा है। इसी कारण वह चर्चा में बनी हुई है।
भाजपा ने आप की चुनाव लड़ने की घोषणा पर जिस प्रकार की प्रतिक्रिया दी है, उससे उसकी चिताएं साफ झलकती नजर आ रही हैं। आप के मुखिया केजरीवाल की कार्यशैली खासतौर पर सस्ती बिजली, राशन और मुहल्ला क्लीनिक जैसे लोकलुभावन घोषणाएं मध्यवर्गीय और शहरी मतदताओं को रिझा सकती है। लेकिन उत्तर प्रदेश में जतीय समीकरण हर चुनाव में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
आप पंचायत चुनाव के जरिए गांव-गांव में अपनी पैठ बनाने में जुटी है। भाजपा इसे समझ रही है। इसी कारण उसने तुरंत पलटवार किया है। हालांकि आप के सामने अभी भाजपा जैसी पार्टी से लड़ने के लिए इतनी जल्दी मजबूत संगठन खड़ा कर पाना आसान नहीं है। ऐसे में केजरीवाल को भाजपा विरोधी वोटों की ही आस है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि उत्तर प्रदेश भारत की राजनीति धुरी है। इसीलिए हर पार्टी यहां पर अपने पांव जमाने का प्रयास करती है। यहां की बड़ी आबादी के कारण लोग आकर्षित होती है। यहां पर छोटी पार्टियों के अच्छा प्रदर्शन से मोलभाव करने में आसानी होती है। आप के यहां आने से शहरी वोटों में सेंधमारी कर सकती है, बशर्ते यहां पर उनका संगठन खड़ा हो जाए।
उन्होंने कहा कि भाजपा को दिल्ली में आप से लगातार शिकस्त मिलती रही है। आप के आने से भाजपा पर नैतिक दबाव होगा। चूंकि अरविंद केजरीवाल की राजनीति मुस्लिम वोटरों की रिझाने की होती है। अगर उन्हें यूपी में राजनीति करनी है, जहां मुस्लिमों की रहनुमाई करने वाले दलों की संख्या ज्यादा है, जैसे सपा, बसपा, एआईएमआई, रालोद वगैरह तो आप को अल्पसंख्यक एजेंडे को लेकर चलना होगा।
श्रीवास्तव ने कहा कि भाजपा के लिए यह मुफीद नहीं होगा, क्योंकि ये पार्टियां मुस्लिम के अलावा अन्य जातियों के वोट पा लेती हैं और नुकसान भाजपा को होता है। हालांकि आप मुद्दों के अलावा जातियों की राजनीति भी कर सकती है। इस समय विपक्ष लगभग शून्य है। अगर विपक्ष मजबूत होता है और उसका वोट बैंक बंटता है, तब भाजपा को फायदा होता है। यूपी में आप की एंट्री का आकलन अभी बहुत जल्दबाजी होगी, क्योंकि यहां पर इस संगठन और इसके नेता का अता-पता नहीं है। आप कैसी मंशा के साथ चुनाव लड़ती है, नफा-नुकसान उस पर निर्भर करता है।
एक अन्य विश्लेषक पी.एन. द्विवेदी का कहना है कि यूपी का मिजाज व समीकरण दिल्ली से बिल्कुल अलग है। प्रदेश में ज्यादातर सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबले का समीकरण है। ऐसे में पांचवीं पार्टी के रूप में आकर आप सवा साल में दिल्ली जैसा करिश्मा कर देगी, ऐसा संभव नहीं लगता। अभी प्रतीत हो रहा है कि आप विपक्ष के वोटों में ही सेंधमारी कर पाएगी, क्योंकि दिल्ली में आप के सामने भाजपा और कांग्रेस थी। जबकि यहां पर सपा, बसपा और कांग्रेस है जिनका अपना-अपना एक मजबूत वोट बैंक भी है। अभी हाल में हुए उपचुनाव में नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ कोई लहर नहीं है।
आप के प्रवक्ता वैभव महेश्वरी कहते हैं कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में आम लोगों की सुविधाओं का एक मॉडल पेश किया है, इसीलिए यूपी के शहरी मतदाताओं के आप के प्रति आकर्षित होने की अधिक संभावना है। यहां बिजली, पानी और कानून व्यवस्था की हालत बिगड़ी हुई है। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर अगर केजरीवाल की पार्टी यूपी में चुनाव लड़ेगी तो सफलता मिल भी सकती है। यूपी के लोगों को 2014 के लोकसभा चुनाव में केजरीवाल का बनारस क्षेत्र से नरेंद्र मोदी खिलाफ मैदान में उतरना और आमजन से जुड़कर प्रचार करने की शैली याद है।
–आईएएनएस
वीकेटी/एसजीके
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