लखनऊ, 10 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की 7 सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम विपक्ष में कौन नम्बर वन है – सपा या बसपा। इसकी ताकत का भी पता चलेगा। सपा 2022 का लक्ष्य रखकर अपना कारवां बढ़ा रही है। चुनाव परिणाम दोनों पार्टियों के वोट प्रतिशत और हैसियत को तय करेंगे।
जिन सात सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, उनपर सपा और बसपा करीब एक जैसी ही दिखी है। दिलचस्प ये है कि 2017 में सात में से जिन 6 सीटों पर भाजपा का कब्जा था उनमें से 3 पर सपा और 3 पर ही बसपा दूसरे नंबर पर थी। अब इस उपचुनाव के परिणाम ये तय करेंगे कि ज्यादा से ज्यादा सीटों पर रनर-अप कौन रहता है। जो भी पार्टी ज्यादा सीटों पर नंबर दो पर रहेगी उसे ये कहने का हक हासिल होगा कि भाजपा से उसी की लड़ाई थी। आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए वही मुख्य विपक्षी है।
सात में से पांच सीट पर भाजपा लगातार बढ़त पर है। अब उपचुनाव के नतीजे साफ करेंगे कि प्रदेश में भाजपा के बाद कौन सी पार्टी है। नम्बर दो की दौड़ में सपा के साथ बसपा ट्रैक पर है। उप चुनाव वाली सात में से छह सीट भाजपा के पास पहले ही थी। सपा के पास परंपरागत मल्हनी सीट थी।
अब जो भी पार्टी ज्यादा सीटों पर नंबर दो पर रहेगी उसे यह कहने का हक मिलेगा कि 2022 में उसकी ही भाजपा से लड़ाई होगी और उप चुनाव में उनका दल ही भाजपा के साथ मुख्य लड़ाई में था।
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा देवरिया की सदर के साथ अमरोहा की नौगावां सादात और उन्नाव की बांगरमऊ सीट पर नंबर दो पर थी। बसपा फिरोजाबाद की टूंडला सुरक्षित, कानपुर की घाटमपुर सुरक्षित और बुलंदशहर की बुलंदशहर सदर में दूसरे स्थान पर थी।
उपचुनाव में ये स्थिति बदल सकती है। याद रहे कि चुनाव में वोटिंग से ठीक पहले सपा और बसपा में सियासी लड़ाई छिड़ी थी। मायावती के एमएलसी के चुनावों में सपा को हराने के लिए यदि उन्हें भाजपा का भी साथ देना पड़े तो देंगे। इस बयान ने काफी हलचल मचा रखी थी। मायावती के इस बयान के बाद यदि उपचुनाव में बसपा का प्रदर्शन 2017 के मुकाबले खराब हुआ तो इसके बड़े निहितार्थ निकाले जाएंगे। दूसरी ओर सपा इसे अपनी बढ़ती ताकत के रूप में प्रचारित करेगी।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि उपचुनाव हमेशा सत्ता पक्ष का माना जाता है। ऐसा ही रूझान भी दिख रहा है। वर्तमान जो समीकरण दिखे हैं उसका असर पर भी चुनाव पड़ता दिख रहा है। इसके अलावा यह चुनाव परिणाम सेमीफाइनल के तौर माना जा रहा है। यह 2022 की तस्वीर को तय करेगे। इसीलिए कहा जा रहा है कि भले ही यह उपचुनाव हो लेकिन, इसके अपनी गहरी छाप छोड़ेगें।
–आईएएनएस
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