सुहागिनों के लिए वट सावित्री व्रत बहुत महत्व होता है। मंगलवार के दिन सुहागिनें वट सावित्री की पूजा कर पति की दीर्घायु और परिवार की सुख शांति की कामना करती हैं। इस बार वट सावित्री व्रत 3 जून को मनाया जायेगा।
हिन्दू मान्यता के अनुसार इस व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का बहुत महत्व होता है। दरअसल, पुराणों के अनुसार पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं साथ ही सारे दुःख दूर हो जाते हैं।
वट सावित्री व्रत के अवसर पर सुहागिनें बरगद के पेड़ के चारों ओर घूमती हैं और रक्षा सूत्र बांध कर आशीर्वाद लेती हैं। इसके अलावा वे एक-दूसरे को सिंदूर भी लगाती हैं। साथ ही पुजारी से सत्यवान और सावित्री की कथा सुनती हैं। नवविवाहिता सुहागिनों के लिए भी इस व्रत का बहुत महत्व है।
क्यों किया जाता है वट सावित्री व्रत?
वट सावित्री व्रत में वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि वट के वृक्ष ने सावित्री के पति सत्यवान के मृत शरीर को को अपनी जटाओं के घेरे में सुरक्षित रखा ताकि जंगली जानवर शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा सके। ज्योतिषों के अनुसार, वट के वृक्ष में ब्रह्मा, बिष्णु और महेश तीनों का निवास होता है इसलिए भी महिलाएं इस वृक्ष की पूजा करती हैं।
कैसे करें वट सावित्री का व्रत?
वट सावित्री व्रत के अवसर पर सुहागिनों को बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करनी चाहिए। साथ ही कथा सुननी चाहिए। ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वट वृक्ष के फायदों की बात करें तो, इस वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है। वट का वृक्ष रोग नाशक होता है। वट का दूध कई बीमारियों से हमारी रक्षा करता है।
पौराणिक कथा
राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री बहुत गुणवान और रूपवान थी। लेकिन उसके अनुरूप योग्य वर न मिलने के कारण सावित्री के पिता दुखी रहा करते थे। इसलिए उन्होंने अपनी कन्या को स्वयं अपना वर तलाश करने भेज दिया और इस तलाश में एक दिन वन में सावित्री ने सत्यवान को देखा और उसके गुणों के कारण मन में ही उसे वर के रूप में वरण कर लिया। सत्यवान साल्व देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे।
सत्यवान व सावित्री के विवाह से पूर्व ही नारद मुनि ने यह सत्य सावित्री को बता दिया था कि सत्यवान अल्पायु है, अतः वह उससे विवाह न करे। यह जानते हुए भी सावित्री ने सत्यवान से विवाह करने का निश्चय किया।
जब सत्यवान के प्राण हरने लिए यमराज आए तो सावित्री भी उनके साथ चलने लगी। यमराज के बहुत समझाने पर भी वह वापस लौटने को तैयार नहीं हुई। तब यमराज ने उससे सत्यवान के जीवन को छोड़कर अन्य कोई भी वर मांगने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी। उसकी अटल पतिभक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने जब पुनः उससे वर मांगने को कहा तो उसने सत्यवान के पुत्रों की मां बनने का बुद्धिमत्तापूर्ण वर माँगा, यमराज के तथास्तु कहते ही मृत्युपाश से मुक्त होकर वटवृक्ष के नीचे पड़ा हुआ सत्यवान का मृत शरीर जीवित हो उठा। तब से अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए इस व्रत की परंपरा आरंभ हो गयी और इस व्रत में वटवृक्ष व यमदेव की पूजा का विधान बन गया।
दूसरी कथा की मानें तो मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव के वरदान से वट वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए थे, तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
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