हॉकिंग जैसा जीनियस बनने का सपना, मौत से पहले तीन परीक्षाओं में किया कमाल

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कहते हैं अगर इंसान में अगर हौंसला हो तो वो लाख परेशानियों के बावजूद अपनी मंजिल हासिल कर ही लेता है। 10वीं के छात्र विनायक में भी कुछ कर दिखाने का गजब की हिम्मत थी। उन्हें अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनना था, स्टीफन हॉकिंग उनके प्रिय वैज्ञानिक थे। इन्हीं सपनों को देखते हुए वह सीबीएसई की दसवीं की परीक्षा में शामिल हुआ, लेकिन तीन परीक्षाएं देने के दौरान ही मार्च में मृत्यु आडे़ आ गई। अब जब परिणाम आए हैं, तो बाकी परीक्षाओं में भले ही वह अनुपस्थित दर्शाए गए, लेकिन अंग्रेजी में 100, विज्ञान में 96 और संस्कृत 97 अंक उनकी बुद्धिमत्ता के सुबूत के तौर पर दर्ज होकर रह गए हैं।

विनायक श्रीधर नोएडा के एमिटी स्कूल में पढ़ते थे। उन्हें दो वर्ष की उम्र में डुशेन मस्क्युलर डायस्ट्रोफी (डीएमडी) जैसी गंभीर बीमारी ने घेर लिया। इस बीमारी में मांसपेशियों में कमजोरी आने लगती है जो समय के साथ बढ़ती जाती है। कुछ ऐसे जीन पीड़ित के शरीर पनपते हैं जिनकी वजह से वह मांसपेशियों को स्वस्थ रखने वाला प्रोटीन नहीं बना पाता। इन सब से जूझते हुए भी विनायक ने सामान्य बच्चों के वर्ग में दसवीं की परीक्षा दी।

खबरों के अनुसार विनायक की मां ममता ने बताया कि उनकी मांसपेशियों का मूवमेंट सीमित हो चुका था। इसकी वजह से वे तेजी से लिख भी नहीं पाते थे। इससे निपटने के लिए विज्ञान और इंग्लिश के पेपर में उसने स्क्राइब (लिखने वाले साथी) की मदद ली। लेकिन संस्कृत के पेपर में उसने खुद लिखना तय किया। शारीरिक चुनौतियों के लिए बने विशेष वर्ग के बच्चों के बजाय सामान्य वर्ग में परीक्षा दी। दो विषय कंप्यूटर विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की परीक्षाएं वह नहीं दे सके।

शरीर व्हीलचेयर पर, उड़ान आसमां की

विनायक का शरीर बीमारी से उपजी चुनौती की वजह से व्हीलचेयर पर सीमित हो चुका था। ममता ने बताया कि  विनायक का दिमाग बहुत तेज था। और महत्वकांक्षाएं उससे भी ऊंची। वे हमेशा कहते थे कि उन्हें अंतरिक्ष विज्ञानी बनना है। वे मानते थे कि अगर एएलएस से प्रभावित होने पर भी व्हीलचेयर पर सीमित हो चुके स्टीफन हॉकिंग ऑक्सफोर्ड जाकर कॉस्मोलॉजी में अपनी पहचान बना सकते हैं, तो विनायक भी अंतरिक्ष जरूर जा सकता है। हॉकिंग मोटर न्यूरोन बीमारी से पीड़ित थे और व्हीलचेयर पर रहते हुए उन्होंने आधुनिक विज्ञान को नई दिशा प्रदान की।

ममता बताती हैं कि परिवार विनायक को हमेशा प्रोत्साहित करता था, लेकिन खुद विनायक का आत्मविश्वास उन्हें भी हैरान कर देते थे। वे मानते थे कि वे टॉपर्स में शामिल होंगे। जिन तीन परीक्षाओं में वह शामिल हुआ, उसका परिणाम इस आत्मविश्वास को सही बताता है।

विनायक धूमने के शौक रखते थे। उन्होंने परीक्षा के बाद कन्याकुमारी के निकट रामेश्वरम मंदिर घूमने का प्लान बनाया था। इसके लिए पहले से तैयारी की थी। ममता ने बताया कि भले ही विनायक अब नहीं हैं, लेकिन वे खुद मंदिर पहुंच रहे हैं और उसका सपना पूरा कर रहे हैं। वे मंगलवार शाम ही रामेश्वरम पहुंचे।

हमारी ताकत थी वह इच्छाशक्ति

विनायक की मां ममता बताती हैं कि उनके परिवार में विनायक की इच्छाशक्ति सभी की ताकत थी। उसकी बहन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में पढ़ चुकी हैं और ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रही हैं। वहीं विनायक के पिता जीएमआर में उपाध्यक्ष हैं। ममता खुद होममेकर हैं। वे बताती हैं कि उन्हाेंने खुद होम मेकर बने रहना चुना। वे अपना सारा समय विनायक को देती थीं, उसे ब्रश कराने से लेकर खाना खिलाने तक की जिम्मेदारी उन्हाेंने अपने हाथ में ले रखी थी।

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