क्या है नक्सलवाद और माओवाद में फर्क? जानें इसके बारे में

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अमरिकी विदेश मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) को दुनिया का छठा सबसे खतरनाक संगठन बताया गया है। अमरीकी विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में भाकपा (माओवादी) पर 2018 में 177 घटनाओं में 311 लोगों की जान लेने का आरोप लगाया है। वहीं भारत के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक माओवादियों ने 240 हत्याओं और 833 हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया था।

अमेरिका के इस रिपोर्ट के बाद CPI (Maoist) एक बार फिर चर्चा में आ गया है। भारत में भी इस संगठन को लेकर आम लोगों में जानकारी का या तो अभाव है या फिर वो आधी-अधूरी है। ऐसे में हम आपको इस संगठन के उदय, इसकी विचारधारा और इससे जुड़े सभी बातों को बताने जा रहे हैं।

आजादी के बाद भारत की राजनीति और समाज पर जिन घटनाओं का बड़ा असर रहा उनमें नक्सलबाड़ी (Naxalbari) आंदोलन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। आज भारत में जो नक्सली या माओवादी आंदोलन है या उसका जो हिंसक पक्ष है, उसकी जड़ें इसी आंदोलन से जुड़ी हुई हैं। किसानों के सवाल से जुड़े इस विद्रोह का असर इतना अधिक था कि देखते ही देखते यह भारत के अन्य हिस्सों में फैल गया। वैसे किसानों को उनका हक दिलाने के लिए जिस नक्सल आंदोलन की शुरूआत हुई थी, वहां अब उसके निशान नहीं मिलते।

क्या है नक्सलबाड़ी और नक्सली से क्या है इसका रिश्ता

दुनिया भर में अपनी चाय के लिए मशहूर दार्जिलिंग (Darjeeling) नेपाल से सटे पश्चिम बंगाल का एक जिला है। नक्सलबाड़ी (Naxalbari) इस जिले का एक कस्बा है। नक्सलवाद या नक्सली शब्द इसी नक्सलबाड़ी की देन है। बांग्ला में घर को बाड़ी कहते है। नक्सलबाड़ी यानि नक्सलियों का घर। यह आंदोलन जब चरम पर था तो बंगाल की गलियों में गूजने वाला एक नारा “आमार बाड़ी-तोमार बाड़ी, नक्सलबाड़ी-नक्सलबाड़ी” काफी चर्चित हुआ था। यानि हमारा घर-तुम्हारा घर, नक्सलबाड़ी-नक्सलबाड़ी।

क्या हुआ था नक्सलबाड़ी में

वह 1967 का साल था जब पश्चिम बंगाल में माकपा (CMI-M) के नेतृत्व में सरकार बनी थी। 1964 में जब CPI का विभाजन हुआ तो क्रांतिकारी कम्युनिस्टों का बड़ा हिस्सा CPI-M में शामिल हो गया। पहली संयुक्त मोर्चा सरकार कायम होते ही पार्टी मे हर जगह क्रांतिकारी जोश उमड़ पड़ा और बंगाल के विभिन्न हिस्सों में भूमि संघर्ष शुरू हो गए। मगर सरकार ने इन विद्रोहों का दमन करना शुरू किया। ऐसी ही एक घटना नक्सलबाड़ी में हुई।

घटनाओं का सिलसिला 1967 के मार्च से ही शुरू हो गया था जब विद्रोही नेताओं ने एकजुट होकर बड़े जमींदारों के खेतों व गोदामों पर कब्जा कर उन्हें लोगों में बांटना शुरू कर दिया था। इस तरह की घटनाओं के बाद जमींदारों और किसानों में टकराव बढ़ने लगे। पुलिस ने जमींदारों का पक्ष लिया। 23 मई 1967 को परंपरागत हथियारों से लैस किसानों का पुलिस से संघर्ष हुआ जिसमें एक पुलिस इंस्पेक्टर सुनाम वांगदी की जान चली गई। 25 मई को फिर किसानों और पुलिस में टकराव हुआ। इस बार पुलिस की गोली से 9 महिलाएं और दो बच्चे मारे गए। 25 मई की इस घटना ने निर्णायक भूमिका अदा की। हिंसा-प्रतिहिंसा का यह दौर अगले 52 दिन तक जारी रहा।

बड़े पैमाने पर आंदोलनकारियों की गिरफ्तारियां हुई जिनमें आंदोलन के नेता चारू मजुमदार (Charu Majumdar) और जंगल संथाल भी थे। 28 जुलाई को पेइचिंग रेडियो ने नक्सलबाड़ी के विद्रोह को ‘वसंत का वज्रनाद’ की संज्ञा दी। इसके बाद इस आंदोलन को एकजुट रखने के लिए ऑल इंडिया को-आर्डिनेशन कमेटी ऑफ कम्युनिस्ट रिवोल्यूशनरीज (AICCCR) का गठन किया गया जिसके बाद 22 अप्रैल, 1969 में नई पार्टी CPI-ML का गठन हुआ। चारू मजुमदार 1970 में पार्टी के पहले महासचिव चुने गए। बाद में इसके बढ़ते प्रभाव को देखते हुए सरकार आंदोलन के नेताओं के पीछे पड़ गई और चारू मजूमदार को गिरफ्तार कर लिया गया। जहां 28 जुलाई को कोलकाता के लाल बाजार पुलिस थाने के लॉकअप में उनकी मौत हो गई।

आंदोलन के बड़े नेता की मौत, व्यापक पैमाने पर गिरफ्तारियां और मजबूत केंद्रीय ढ़ांचा नहीं होने के कारण जल्द ही यह आंदोलन बिखर गया। अलग-अलग धड़े अलग-अलग जगहों पर स्वतंत्र तरीके से काम करने लगे। बाद में कुछ ग्रुप संसदीय राजनीति में शामिल हो गये व कुछ हथियारबंद संघर्ष चलाते रहे। संसदीय राजनीति में शामिल होने वाले में बड़ा नाम भाकपा-माले का है।

माओवाद

भारत में वामपंथी आंदोलन का जो अतिवादी स्वरूप है उसे ही माओवादी कहा जाता है। माओवाद (Maoism) शब्द दरअसल माओ-त्से-तुंग (Mao Zedong) से निकला है। माओ, चीनी क्रांतिकारी, मार्क्सवादी विचारक और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सबसे बड़े नेता थे। उनके नेतृत्व में 1949 में चीन में क्रांति हुई और चीन एक स्वतंत्र देश के तौर पर दुनिया के नक्शे पर आया। चीन की सरकार का वैचारिक आधार मार्क्सवाद था। माओ का मानना था कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है (Power comes from the barrel of a gun)। माओवाद को मोटे तौर पर कम्युनिस्ट विचारधारा का सैन्य रणनीतिक सिद्धांत माना जाता है।

नक्सलबाड़ी विद्रोह के बाद जब बाद में भाकपा-माले का गठन हुआ और चारू मजुमदार इसके पहले महासचिव बने तब आंदोलन को बरकरार रखने के तरीके पर कई धड़े बन गए। उनमें वैसी धारा जो सशस्त्र आंदोलन को बरकरार रखना चाहती थी, उन लोगों ने 1975 में माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) का गठन किया। इसका कामकाज मुख्य रूप से बंगाल और पूर्वी बिहार में रहा। इसी किस्म के एक और संगठन पीपुल्स वॉर ग्रुप (PWG) का जन्म 1980 में आंध्र प्रदेश में हुआ। बाद में इस संगठन का विस्तार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा तक हुआ। 21 सितंबर 2004 को MCC और PWG का विलय हो गया और Communist Party of India-Maoist (CPI-Maoist) का गठन हुआ। भारत सरकार ने इसे प्रतिबंधित संगठन की सूची में डाल रखा है।

माओवादियों का मकसद सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारतीय सत्ता पर कब्जा करना है। वे चुनावों का बहिष्कार करते हैं और भारत के मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को खारिज करते हैं।

This post was last modified on November 6, 2019 12:01 PM

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