नागरिकता कानून 2019 (Citizenship Amendment Act) के विरोध में देश के कई राज्यों में जबरदस्त प्रदर्शन हुए। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में भड़की हिंसा के बाद पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई/PFI) का नाम प्रमुखता से सुर्खियों में आ गया है। केंद्रीय एजेंसियों के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से साझा किए गए खुफिया इनपुट और गृह मंत्रालय के मुताबिक, यूपी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान शामली,मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, वाराणसी, आजमगढ़ और सीतापुर क्षेत्रों में पीएफआई सक्रिय रहा है।
अब सवाल है कि ये पीएफआई क्या है और इसका इतिहास क्या रहा है? उत्तर प्रदेश के अलावा ये संगठन देश के और किन-किन राज्यों में सक्रिय है? सीएए 2019 पर उत्तर प्रदेश में भड़की हिंसा में पीएफआई की क्या भूमिका रही? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए आगे पढ़ें।
बता दें, चरमपंथी इस्लामी संगठन पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया 2006 में केरल में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) के मुख्य संगठन के रूप में शुरू हुआ था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। पीएफआई खुद को न्याय, आजादी और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले नव-समाज के आंदोलन के रूप में बताता है। इस संगठन की कई अलग-अलग शाखाएं भी हैं। जैसे महिलाओं के लिए – नेशनल वीमेंस फ्रंट (NWF – National Women’s Front) और विद्यार्थियों/युवाओं के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI – Campus Front of India)। गठन के बाद से ही इस संगठन पर कई समाज विरोधी व देश विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं। साल 2012 में केरल सरकार ने एक मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट से कहा था कि पीएफआई की गतिविधियां देश की सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं।
खुफिया रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट, मनिथा नीति पासराई, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और अन्य संगठनों के साथ मिलकर कई राज्यों में पहुंच हासिल कर ली है और वह पिछले दो साल से उत्तर प्रदेश में अपना आधार फैला रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तत्कालीन मायावती सरकार की ओर से शुरू किए गए सख्त उपायों ने पीएफआई सदस्यों को उत्तर प्रदेश छोड़ने के लिए मजबूर किया था, लेकिन उन्होंने पिछले दो साल में राज्य में पैठ बनानी शुरू कर दी है।
नागरिकता कानून के विरोध में फैली हिंसा के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के शामली से विगत 19 दिसंबर को पुलिस ने 28 लोगों को गिरफ्तार किया था। शामली के एसपी विनीत जायसवाल ने बताया कि ‘इनमें से 14 पीएफआई के हैं। संस्था का अहम सदस्य मोहम्मद शदाब भी गिरफ्तार होने वालों में शामिल है। वहीं दो और सदस्यों का नाम पुलिस की वॉन्टेड लिस्ट में हैं।’
पीएफआई के बारे में लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने कहा, ‘लखनऊ हिंसा के मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी में बड़ी कामयाबी मिली है। इनके नाम हैं वसीम, नदीम और अशफाक। ये तीनों पीएफआई से जुड़े हैं। वसीम पीएफआई का प्रदेश प्रमुख है जबकि वसीम खजांची है और नदीम इसी संस्था का सदस्य है।’
समाचार एजेंसी पीटीआई ने भी सूत्रों के हवाले से बताया कि उत्तर प्रदेश पुलिस को पीएफआई सदस्यों द्वारा कैराना और शामली में हिंसा फैलाए जाने की योजना बानने की खबर मिली थी। इसके बाद पीएफआई के कुछ सदस्यों को हिरासत में भी लिया गया था। बाद में पता चला कि उन्होंने केरल जाकर कुछ संदिग्ध लोगों से मुलाकात की थी। फिलहाल उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर और मेरठ में नागरिकता कानून पर विरोध के दौरान फैली हिंसा में पीएफआई की संलिप्तता की जांच की जा रही है।
इस बीच नई जानकारी सामने आई है कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार अब इस संगठन के खिलाफ सख्त कदम उठा सकती है। बताया जा रहा है कि योगी सरकार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर प्रतिबंध लगा सकती है।
This post was last modified on December 29, 2019 7:04 PM
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