प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एससीओ (SCO) अर्थात शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (Shanghai Cooperation organisation) की बैठक में हिस्सा ले रहे हैं। ये बैठक किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में 13 और 14 जून को आयोजित हो रहा है। ऐसे में आपको जानना चाहिए कि आखिर ये एससीओ क्या है और इसकी बैठक में भाग लेने से भारत को क्या हासिल होगा? तो आइये जानते हैं:
23 साल पहले, अप्रैल 1996 में चीन की पहल पर शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रूस, कज़ाकस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान आपस में एक-दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निबटने के लिए सहयोग करने पर राज़ी हुए थे। तब इसे शंघाई-फ़ाइव के नाम से जाना जाता था। शंघाई में हुई इसकी पहली बैठक में इसका गठन हुआ।
लेकिन मूल रूप से एससीओ का जन्म 15 जून 2001 को हुआ। तब चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देशों कज़ाकस्तान, किर्ग़िस्तान, ताजिकिस्तान और उज़बेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निबटने के साथ-साथ आपस में व्यापार-निवेश बढ़ाना था। माना जाता है कि एससीओ (SCO) अमरीकी प्रभुत्व वाले नाटो (NATO) का रूस और चीन की ओर से जवाब था। एससीओ को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है।
फौरी तौर पर इस संगठन का लक्ष्य सेंट्रल एशिया के नए आज़ाद हुए मुल्कों के साथ लगती रूस और चीन की सीमाओं पर व्याप्त तनावों को रोकना था। ये मक़सद सिर्फ़ तीन साल में ही हासिल कर लिया गया। इसकी वजह से ही इसे काफ़ी प्रभावी संगठन माना जाता है। फिर 2001 में इसे नया स्वरूप दिया गया, जिसे शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन कहा गया। इस नए संगठन में उजबेकिस्तान को भी जोड़ लिया गया। अब उसमें आर्थिक सहयोग और व्यापार बढाने पर भी जोर दिया गया। एससीओ के नए उद्देश्यों में ऊर्जा आपूर्ति से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देने और आतंकवाद से लड़ाई जैसे विषयों को जोड़ा गया।
आने वाले समय में जब एससीओ का और विस्तार हुआ तो भारत के साथ कई अन्य देश भी इसमें शामिल हो गए। 2005 में भारत को इस संगठन में पर्यवेक्षक देश का दर्जा हासिल था। साल 2017 में एआयोजित 17वीं शिखर बैठक में भारत एससीओ का पूर्णकालिक सदस्य बना। इस संगठन के विस्तार की प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण चरण के तहत भारत के अलावा पाकिस्तान को सदस्य देश का दर्जा दिया गया। मौजूदा समय में इसके सदस्यों की संख्या आठ हो चुकी है। देखा जाए तो शंघाई सहयोग संगठन में अब चीन और रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है. इस साल के शुरू में एससीओ की मीटिंग भारत में भी हो चुकी है।
आपको बता दें कि एससीओ का मुख्यालय चीन की राजधानी बीजिंग में है। फिलहाल एससीओ के आठ सदस्य चीन, कज़ाकस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान हैं। इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया इसके आब्जर्बर मेंबर (पर्यवेक्षक सदस्य) हैं। साथ ही छह डायलॉग सहयोगी अर्मेनिया, अज़रबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की हैं।
एससीओ को मौजूदा वक्त में दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है। इसलिए भारतीय हितों के लिहाज से आतंकवाद, ऊर्जा की आपूर्ति या प्रवासियों के मुद्दों से जुड़ी चुनौतियां एससीओ के लिए भी उतनी ही अहम हैं। इस संगठन के जरिये इन चुनौतियों के समाधान ढूंढ़ने की कोशिश हो रही है। ऐसे में भारत के जुड़ने से एससीओ और भारत दोनों का परस्पर भला होगा।
इस बैठक में भारत ने आतंकवाद को लेकर अपना कड़ा रुख़ बरकरार रखा है। प्रधानमंत्री मोदी की कोशिश है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत के कड़े रुख़ के साथ शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के सभी नेता लामबंद हों। इसलिए ये शिखर सम्मेलन भारत के दृष्टिकोण से काफ़ी अहम है।
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