हिंदू धर्म में ‘योगिनी एकादशी’ (Yogini Ekadashi) का बहुत महत्व माना जाता है। प्रत्येक वर्ष आषाढ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को ‘योगिनी एकादशी’ के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 29 जून 2019 यह व्रत मनाया जाएगा।
पुराणों में इस एकादशी के महत्व का व्याख्यान किया गया है। इस एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना की जाती है। इसके साथ ही पीपल के पेड़ की भी पूजा करने से भी लाभ होता है।
योगिनी एकादशी हिन्दुओं के लिए काफी मायने रखती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार, योगिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि ‘योगिनी एकादशी का व्रत करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना फल मिलता है। इस व्रत को श्रद्धा से करने से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं।’
मान्यता है कि इस एकादशी की रात में जागरण करना चाहिए। दिन में विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने और रात में जागरण करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।
व्रत एवं पूजा की विधि
योगिनी एकादशी को सबसे लोकप्रिय एकादशी माना जाता है। इस व्रत के नियम एक रात पहले से ही लागू हो जाते हैं। इस एकादशी का व्रत दशमी की रात्रि से शुरू होता है और एकादशी की प्रातःकाल दान-पुण्य की विधि निभाने के साथ ही व्रत सम्पन्न होता है।
इस व्रत के नियमों के अनुसार दशमी की तिथि से ही तामसी भोजन एवं नमक का परित्याग करना होता है। एकादशी की सुबह को स्नान-ध्यान के बाद व्रत शुरू करने का संकल्प लिया जाता है। इस योगिनी एकादशी से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार इस दिन स्नान के लिए धरती माता की रज यानी मिट्टी का इस्तेमाल करना शुभ होता है। इसके अलावा स्नान के पूर्व तिल के उबटन को शरीर पर लगाना चाहिए।
इस व्रत की पूजा के लिए स्नान के बाद मिट्टी का एक कलश स्थापित करें। कलश में पानी, अक्षत और मुद्रा रखकर उसके ऊपर उसी आकार का दीया रख उसमें चावल डालें। इसके बाद उसके ऊपर भगवान विष्णु की पीतल की प्रतिमा स्थापित करें। प्रतिमा को रोली या सिंदूर का टीका लगाएं और अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद कलश के सामने शुद्ध देशी घी का दीप प्रज्जवलित करें। अब तुलसी का पत्ता एवं फल-फूल का प्रसाद चढ़ाकर विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें।
पुराणों के अनुसार, अलकापुरी नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था, जो भगवान शिव का अनन्य भक्त था। हेम नामक माली उसके यहां पूजा के लिए फूल लाता था। हेम की पत्नी विशालाक्षी बहुत सुंदर थी। एक दिन हेम मानसरोवर से पुष्प लाकर राजा के पास पहुंचाने के बजाय अपनी पत्नी के साथ व्यस्त हो गया। राजा ने दोपहर तक उसकी प्रतीक्षा करने के पश्चात अपने सेवकों को आज्ञा दी कि पता किया जाए कि माली क्यों नहीं आया। सेवकों ने राजा को बताया कि वह अपनी पत्नी के साथ हंसी-मजाक कर रहा होगा। सेवकों की बात सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे दरबार में बुलवाया।
राजा कुबेर ने क्रोध में कहा, ‘अरे पापी! नीच! तूने मेरे परम पूजनीय शिवजी जी का अनादर किया है।’ यह कहते हुए राजा ने उसे स्त्री वियोग में मृत्यु और अगले जन्म कोढ़ी बनने का श्राप दे दिया। शापित होकर माली की मृत्यु हो गयी और वह कोढ़ी बनकर पृथ्वी पर आ गया। यहां उसे तमाम कष्ट उठाने पड़े। एक दिन भटकते-भटकते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम पहुंच कर उनके पैरों पर गिर पड़ा। उसने मार्कण्डेय ऋषि को सारी बात बता दी। इसके बाद ऋषि ने उसे ‘योगिनी एकादशी’ व्रत के बारे में बताया और कहा इसे करने से तुम सारे पाप से मुक्त हो जाओगे। व्रत करने के बाद माली को सभी परेशानियों से मुक्ति मिल गई।
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