यूपी : कैदियों के रेडियो ने जेलों में दबा दी कोरोना के कोहराम की आवाज (आईएएनएस इंटरव्यू)

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लखनऊ, 20 मई (आईएएनएस) यूपी की जेलों में कोरोना काल के कोहराम की चीख-पुकार को जमींदोज करने के वास्ते यहां बंद कैदियों ने नायाबा फामूर्ला खोजा है। सूबे की 71 में से फिलहाल यह फामूर्ला 26 जेलों में खूब फल-फूल रहा है। फामूर्ला है ‘जेल-रेडियो’ का। जिसे कैदियों ने खुद ही तैयार किया है। खुद ही एनाउंसर (उदघोषक) हैं, खुद ही वाचक और श्रोता। मतलब जेलों में चल रहे इन सभी जेल-रेडियो प्रसारण केंद्रों का संचालन पूरी तरह से कैदियों के ही हाथों में है।

जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 71 जेल हैं। इनमें हाल-फिलहाल 90 हजार से ज्यादा कैदी बंद थे। कोरोना काल शुरू होते ही भीड़ कम करने के उद्देश्य से 2251 सजायाफ्ता और 13453 विचाराधीन यानि कुल करीब 15704 कैदी अस्थाई रुप से कुछ समय के लिए जमानत पर छोड़ दिये गये। फिर भी करीब 75 हजार कैदी इन जेलों में अभी भी बंद हैं। इन तमाम तथ्यों की पुष्टि आईएएनएस से विशेष बातचीत में उत्तर प्रदेश जेल महानिदेशालय प्रवक्ता संतोष वर्मा ने भी की।

तादाद से ज्यादा कैदी जिन जेलों में भरे हुए हैं उनकी संख्या सूबे में 10 गिनी जाती है। ओवर क्राउडिंग प्रतिशत के नजरिये से मुरादाबाद जेल सबसे ज्यादा ओवर क्राउडिड है। जबकि सबसे ज्यादा कैदी बंद किये जाने के नजर से देखा जाये तो वो प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) जेल में सबसे ज्यादा कैदी हैं। प्रयागराज जेल की क्षमता सिर्फ 2060 कैदी बंद करके रखने की है। लेकिन यहां बंद हैं 4 हजार से भी ज्यादा कैदी। मतलब दोगुनी संख्या में। जबकि सूबे की मोस्ट पॉपलेटिड 10 जेलों पर नजर डालें तो उनमें मुरादाबाद से शुरू होकर जौनपुर, ललितपुर,सहारनपुर,गाजियाबाद, देवरिया, मथुरा, वाराणसी, शाहजहांपुर और इटावा इत्यादि प्रमुख हैं।

उत्तर प्रदेश जेल महानिदेशक आनंद कुमार के मुताबिक, “कोरोना को लेकर लॉकडाउन मार्च में जब लागू हुआ, मैंने उससे पहले ही यानि 12 मार्च 2020 के आसपास जेलों को अलर्ट जारी कर दिया था। ताकि कोरोना का प्रकोप जेल में बंद कैदी और उनकी सुरक्षा में जुटे अफसरों सुरक्षा कर्मियों पर न पड़े। उसी वक्त से राज्य की हर जेल में थर्मल स्कैनिंग इत्यादि की उपलब्धता सुनिश्चित करा दी गयी थी।”

इतना ही नहीं कोरोना के कोहराम को बेअसर करने के लिए यूपी की जेलों में 12 मार्च के आसपास ही मास्क, साबुन, सेनेटाइजर का निर्माण भी शुरू कर दिया गया था। बकौल जेल महानिदेशक आनंद कुमार, “7 मई 2020 तक हमारी जेलों में मौजूद कैदी 11 लाख 49 हजार के करीब मास्क बनाकर तैयार कर चुके थे। इनमें से करीब 8 लाख मास्क सरकारी गैर-सरकारी संगठनों को उपलब्ध करा दिये गये। इसके अलावा हमारे कैदियों और स्टाफ ने भी इन्हीं मास्क को इस्तेमाल करना शुरू किया। आज की तारीख में हमारे हर जेल अधिकारी -कर्मचारी व कैदी के पास कम से कम दो-दो मास्क तो हैं ही। बहैसियत डीजी जेल मेरे लिए यह संतुष्टि की बात है। मास्क इत्यादि का निर्माण कार्य निरंतर जारी है।”

डीजी जेल ने आईएएनएस को फोन पर हुई विशेष बातचीत में बताया, “जेल में बंद कैदियों ने इस दुख और मुसीबत की घड़ी में अपना वक्त खुशगवारी में काटने का भी साधन खुद ही जेल में तैयार किया है। यह हैरतंगेज साधन है जेल-रेडियो। जेल में रेडियो की बात सुनकर सब चौंक पड़ते हैं। मगर यही जेल रेडियो आज कोरोना की लड़ाई जितवाने में जेल के भीतर बंद कैदियों के बहुत काम आ रहा है।”

जेल रेडियो कांसेप्ट के बारे में पूछे जाने पर जेल महानिदेशालय प्रवक्ता संतोष वर्मा बताते हैं कि, ‘कैदी इस जेल-रेडियो के जरिये अपनी-अपनी बैरक में बंद रहकर ही मनोरंजन करते रहते हैं। फिलहाल यह जेल-रेडियो सूबे की गाजियाबाद, शाहजहांपुर, गोरखुपर, इटावा, आगरा, लखनऊ, नोएडा (गौतमबुद्ध नगर) आदि सहित 26 जेलों में बखूबी संचालित हो रहा है। हर जेल के कैदी जहां जेल रेडियो है, वहां मनोरंजन से लेकर समाचार-विचार तक इसी रेडियो के जरिये लेते-सुनते हैं। इस रेडियो संचालन में जेल स्टाफ का कोई दखल नहीं है। जेल रेडियो का पूरा संचालन कैदियों के ही हाथ में हैं।’

विशेष बातचीत के दौरान उत्तर प्रदेश जेल महानिदेशक आनंद कुमार ने कहा, “जेलों में कोरोना संक्रमण न फैले इसे ध्यान में रखते हुए हमने करीब 45 जिलों में 56 अस्थाई जेलों का निर्माण किया है। इन अस्थाई जेलो में करीब 783 बंदी एहतियातन कैद करके रखे जाते हैं। इन 783 कैदियों में 538 कैदी भारतीय और 245 विदेशी कैदी शामिल हैं। इन कैदियों को कुछ वक्त के लिए इसलिए अलग रखा जा रहा है ताकि, मुख्य और स्थायी जेलों में पहले से बंद स्वस्थ कैदियों तक कोरोना वायरस जाने-अनजाने न पहुंच सके।”

जेल महानिदेशालय प्रवक्ता संतोष वर्मा आगे बताते हैं, “मेरठ जेल में हम लोगों ने अब तक 100 पीपीटी किट तैयार की हैं। एक किट बनाने में औसतन 600 रुपये लागत आ रही है। इस पीपीटी किट में लगने वाला 95 रुपये वाला मास्क ही बाहर से पांच-छह गुनी कीमत पर मिल पा रहा है। फिर भी हमारी कोशिश है कि हम जितने ज्यादा पीपीटी किट बनाकर दे दें उतना अच्छा है। पीपीटी किट बनाने का काम लखनऊ आदर्श जेल में भी हो रहा है। अब तक हम 132 पीपीटी किट विशेष आग्रह पर बनाकर बलरामपुर अस्पताल को दे चुके हैं।”

बकौल राज्य जेल महानिदेशक आनंद कुमार, “हमारी कोशिश है रही है कि जिन जेलों में सिलाई मशीनें नहीं थीं। वहां भी सरकार ने सिलाई मशीने सिर्फ इसलिए मुहैया कराईं ताकि हम ज्यादा से ज्यादा मास्क बनाकर तैयार कर सकें।”

इन तमाम फुलप्रूफ इंतजामों के बाद भी आगरा व सूबे की कुछ अन्य जेलों में भी कोरोना पॉजिटिव केस क्यों आ रहे है? कुछ कैदी मर भी चुके हैं? पूछे जाने पर जेल महानिदेशक ने कहा, “आगरा जेल में एक कैदी की मौत का मामला सामने आया है। हम भरसक प्रयास कर रहे हैं कि, दिन-रात एहतियात बरत कर किसी भी कीमत पर जेलों को कोरोना के कहर से बचाना है। इंतजामों के साथ साथ हम लोगों मानवीय स्तर पर भी हरसंभव प्रयास करने में जुटे हैं।”

–आईएएनएएस

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