हिंदू धर्म में पूजा के समय धूपबत्तियों का बहुत महत्व होता है। कहा जाता है कि देवी- देवताओं को खुशबू बहुत पसंद होती है, इसलिए पूजा के समय अगरबत्ती या धूपबत्ती का प्रयोग जरूर किया जाता है। ये धूपबत्तियां खुशबू फैलाने के साथ वातावरण को शुद्ध करती हैं।
सनातन धर्म में यज्ञ में अलग- अलग धूपबत्तियों का उपयोग किया जाता है, ताकि वातावरण को सुगंधित बना कर देवी- देवताओं को प्रसन्न किया जा सके। धर्म ग्रंथों में भी धूपों और उनकी शक्तियों का उल्लेख किया गया है।
पूजा में कैसे देते हैं धूप?
धूप या अगरबत्तियां घरेलू वातावरण को पवित्र तो बनाती ही हैं। साथ ही पित्तरों और देवी- देवताओं को प्रसन्न भी करती हैं। इन्हें आम की लकड़ी या गोबर के उपले पर रखकर जलाया जाता है। इसके अलावा गुग्गुल के साथ कर्पूर और गुड़ के साथ घी मिलाकर भी जलते उपले पर रख कर धुप दी जाती है।
क्या हैं धूप से लाभ?
घर में धूप बत्ती का धुआं दिव्य शांति और सुख का संचार करता है। इन्हें जलाने से घर में सकारात्मकता आती है और रोग खत्म हो जाते हैं। धूप बत्ती के धुएं के साथ घर में किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती। इन सब के अलावा धूप दिखाने से देवी-देवता और पित्तर प्रसन्न होते हैं।
क्या हैं धूप दिखाने के नियम?
पूजा-अर्चना के समय प्रतिदिन धूपबत्ती जलानी चाहिए, लेकिन किसी वजह से रोज धूप नहीं दे सकते तो कृष्णपक्ष के तेरस, चौदस और अमावस्या तथा शुक्लपक्ष के तेरस, चौदस और पूर्णिमा के दिन धूप अवश्य देनी चाहिए। मान्यता के अनुसार, सुबह दी जाने वाली धूप देवताओं के लिए और शाम में दी जानेवाली धूप पित्तरों को प्रसन्न करती है। बहुत से पूजा-पाठ में सायंकाल को देवताओं के लिए भी धूप देने का नियम होता है। घर की साफ-सफाई और स्वयं के नहाने के बाद ही घर में धूप जलानी चाहिए। आमतौर पर धूप केवल ईशान कोण में ही जलाना चाहिए।
गुग्गुल की धूप
गुग्गुल की महक मिठास के लिए होती है। इसका उपयोग सुगंध, इत्र व औषधि आदि में किया जाता है। गुग्गल का धुंआ सिर दर्द एवं दूसरे शारीरिक विकारों में मुक्ति दिलाता है। वहीं, ह्रदयाघात और दर्द में लाभदायक होता है। सुबह घर की साफ-सफाई कर पीपल के पत्ते का दोना बनाकर उसमें गौमूत्र रखें और पूरे घर में छिड़काव करें। इसके बाद शुद्ध गुग्गल की धूप जलाएं।
गुड़-घी की धूप
गुड़ और घी की धूप का बहुत महत्व होता है। इसे बनाने के लिए समान मात्रा में गुड़ और घी लें। इसके बाद एक उपले को जला कर इस मिश्रण को उस उपले पर रख दें। अब उपले के चारों तरफ दायें हाथ की तीन अंगुलियों से जल अर्पित करें। देवी- देवताओं को जल अर्पित करने से पहले ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ध्यान करें। वहीं, पित्तरों को जल अर्पित करते समय अपने पित्तरों का ध्यान करें।
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