द्रमुक ने पूछा, तमिल भारत की वैश्विक पहचान क्यों नहीं हो सकती

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चेन्नई, 19 सितम्बर (आईएएनएस)| केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हिंदी की भारत की पहचान की भाषा के तौर पर हाल में पैरवी किए जाने पर द्रमुक ने तर्क दिया कि तमिल इसके लिए ज्यादा मुनासिब है।

अमित शाह ने 14 सितम्बर को हिंदी के ज्यादा इस्तेमाल की वकालत की थी। उन्होंने कहा था, “यह बहुत जरूरी है कि पूरे देश की एक भाषा हो, जो दुनिया में अपनी पहचान बनाए।”

अमित शाह की टिप्पणी का द्रमुक व दूसरी तमिल पार्टियों ने विरोध शुरू कर दिया। इस पर अमित शाह ने बुधवार को स्पष्टीकरण दिया कि वह किसी पर हिंदी को थोपना नहीं चाहते, इस तरह से इस विवाद को शांत किया गया।

द्रमुक सांसद व प्रवक्ता टी.के.एस.एलंगोवन ने कहा कि अगर भारत सरकार एक भारतीय भाषा को वैश्विक पहचान के लिए चुनना चाहती है तो तमिल इसके लिए योग्य है, हिंदी नहीं।

एलंगोवन ने आईएएनएस से कहा, “विविधता में एकता भारत की पहचान है, जिसका हम समर्थन करते हैं। अगर भारत की वैश्विक पहचान के लिए एक भारतीय भाषा की जरूरत है तो तमिल ज्यादा उपयुक्त है।”

उन्होंने कहा, “तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है। यह श्रीलंका, सिंगापुर और भारत की आधिकारिक भाषा है। इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है और साहित्यिक रूप से संपन्न है। तमिल संस्कृति कई दक्षिण एशियाई राष्ट्रों में फैली हुई है। तमिल लोग कई शताब्दियों पहले अपने देश से दूर चले गए थे।”

उन्होंने कहा कि यह सच हो सकता है कि भारत में बड़ी संख्या में लोग हिंदी बोलते हैं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि हिंदी नहीं बोलने वाले भी काफी ज्यादा हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि हिंदी भारत की वैश्विक पहचान नहीं हो सकती।

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए यह गैर हिंदी भाषी भारतीय राज्य हैं जो अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी व सामाजिक कारकों जैसे कई क्षेत्रों में उन्नत है, जबकि हिंदी भाषी राज्य इन मामलों में काफी पीछे हैं।”

एलंगोवन ने कहा, “हिंदी को पूरे देश पर थोपना आरएसएस की विचारधारा है।”

उन्होंने कहा कि द्रमुक किसी भाषा के खिलाफ नहीं है।

उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी हिंदी को भारत की वैश्विक पहचान बनाने के राय का विरोध करती है, जिसे हिंदी के थोपने के तौर पर देखा जाता है।

उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एच.राजा की टिप्पणियों का भी जवाब दिया। राजा ने अपनी टिप्पणी में द्रमुक के हिंदी विरोधी रुख पर सवाल उठाया था और कहा था कि इसके पदाधिकारियों/संबंधियों द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में सीबीएसई के तहत हिंदी पढ़ाई जाती है।

इस पर एलंगोवन ने जवाब दिया, “विरोधी इस पर बहस कर सकते है। हम सिर्फ हिंदी को थोपने का विरोध करते हैं, भाषा के तौर पर नहीं।”

 

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