लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को आचार संहिता उल्लघंन मामले में चुनाव आयोग से लगातार क्लीन चिट मिलने पर पहले ही विपक्ष हमलावर है। अब इन क्लीन चिट पर असहमति जताने वाले चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अपना विरोध खुलकर जाहिर कर दिया है। खबरों के अनुसार हाल ही में उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त को एक पत्र लिखकर कहा है कि जब तक उनके असहमति वाले मत को ऑन रिकॉर्ड नहीं किया जाएगा तब तक वे आयोग की किसी मीटिंग में शामिल नहीं होंगे।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ शिकायत की जांच के लिए गठित समिति में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, अशोक लवासा और सुशील चंद्रा शामिल थे। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की राय दोनों से अलग थी और वह उन्हें आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में मान रहे थे लेकिन इसमें अशोक लवासा की राय को शामिल नहीं की गई। बाकी के दोनों मुख्य चुनाव आयुक्त ने पीएम के भाषण में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया। लवासा चाहते थे कि उनकी राय को रिकॉर्ड पर लाया जाए। जिसके चलते विरोधस्वरूप 4 मई से उन्होंने आयोग की मीटिंग से उन्होंने खुद को अलग रखा।
3 मई को आयोग के सदस्यों की मीटिंग में पीएम मोदी और शाह को लेकर चुनाव आयुक्त लवासा ने आलोचना की थी लेकिन उनकी असहमति को आदेश में रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। खबर के मुताबिक अशोक लवासा का स्पष्ट रूप से कहना है कि वे बैठकों में तभी आएंगे जब बहुसंख्यक फैसले में अल्पसंख्यक राय यानी एक सदस्य की राय को भी रिकॉर्ड पर लाया जाएगा। लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त को इसके लिए इसके लिए कई रिमांडर भेजे जिसमें कहा कि वह उनकी असहमति को आदेशों में शामिल करें लेकिन चुनाव आयोग ने उनकी असहमति को आदेशों में शामिल नहीं किया बल्कि उन पर उल्टे स्पष्टीकरण नहीं देने का आरोप लगा दिया।
लवासा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की आचार संहिता की शिकायतों पर पैनल के दो सदस्यों से अलग राय रखी थी। वह चाहते थे कि मोदी को शिकायतों पर नोटिस दिया जाए जिसे स्वीकार नहीं किया गया। मोदी के खिलाफ छह शिकायतें थी जिनमें उन्हें क्लीन चिट दी गई जबकि राहुल को एक मामले में छोड़ा गया।
गौरतलब है कि पीएम मोदी के खिलाफ आचार संहिता के कई शिकायतें थी जिसमें एक में उनका पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ‘भ्रष्टाचारी नंबर 1’ कहने वाला भाषण है। यह शिकायत अभी भी लंबित है।
अब जब अशोक लवासा ने खुद को मीटिंग से अलग रखने का फैसला ले लिया है तो ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि क्या आयोग बिना लवासा के मीटिंग करेगा और क्या बिना उनकी मौजूदगी के यह बहुमत का फैसला माना जाएगा। चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, अगर किसी मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयक्त की राय अलग है तो बहुमत के आधार पर फैसला लिया जाएगा। सभी सदस्यों को समान रूप से अपनी राय देने का अधिकार है।
चुनाव आयुक्त लवासा की राय शामिल न करने को लेकर चुनाव आयोग का तर्क था कि यह अर्ध न्यायिक फैसला नहीं था जबकि एक पूर्व चुनाव आयुक्त का कहना था कि किसी भी परिस्थिति में राय को रिकॉर्ड पर लाया जाना चाहिए।
आपको बता दें कि 2017 मे तत्कालीन चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल के सवाल उठाने के बाद आम आदमी पार्टी से जुड़े मामले से खुद को अलग कर लिया था। क्या इस बार मुख्य चुनाव आयुक्त सुनिल अरोड़ा कोई कदम उठा पाएंगे इस मामले में ये देखना होगा।
This post was last modified on May 18, 2019 12:06 PM
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