ग्वालियर, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)| आम तौर पर जेल (कारागार) का जिक्र होते ही डरावनी तस्वीर नजरों के सामने आ जाती है, और इसके साथ ही कैदियों की भी गलत छवि हमारे मन-मस्तिष्क पर छा जाती है। लेकिन दशहरे के दिन यहां का नजारा बहुत अलग और खास था। बंदी अपने नियमित ड्रेस कुर्ता-पाजामा और सिर पर टोपी तो रखे थे, मगर उनके हाथ में श्रीमद्भागवत गीता की एक-एक प्रति भी थी। ग्वालियर परिक्षेत्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) राजा बाबू सिंह इन दिनों समाज में जागृति लाने के लिए श्रीमद्भागवत गीता वितरण अभियान चला रहे हैं। इसी क्रम में केंद्रीय जेल परिसर में भी गीता वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
गीता वितरण समारोह में सभी बंदी अनुशासित तो थे ही, लेकिन गीता के दृष्टांतों को सुनकर उनकी आंखों में नजर आ रहे अपराध बोध को भी आसानी से पढ़ा जा सकता था। अधिकांश बंदी जहां बदलाव के रास्ते पर चलने को तैयार नजर आए, वहीं कुछ अपनी गलती पर पछतावा भी कर रहे थे।
जेल परिसर के सभागार में जमा हर बंदी गीता की प्रति हासिल करने के लिए लालायित था। वहीं जमीन पर बैठे एक-एक बंदी के पास पहुंचकर उन्हें गीता की प्रति सौंपी गई।
इस मौके पर एडीजी सिंह ने कहा, “इंसान अगर अपनी 10 कुवृत्तियों पर अंकुश लगा ले तो उसका जीवन सुधर जाए। यहां जेल में जो लोग हैं, वे किसी न किसी एक कुवृत्ति के उदाहरण हैं। वे खुद को गीता का पाठ कर बदल सकते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “आज दशहरे का दिन है, अगर 10 कुवृत्तियों को त्यागने का संकल्प लें तो जीवन ही बदल जाएगा। हर बंदी को गीता का सार समझ में आ जाए, इसके लिए भोजनशाला में अगर रोज पांच श्लोक को भावार्थ के साथ कागज पर अंकित किया जाए तो बेहतर परिणाम मिलेंगे। एडीजी के इस बात पर जेल अधीक्षक मनोज कुमार साहू ने भी अपनी सहमति जताई।”
इस मौके पर उपस्थित आनंदारेश्वर चैतन्य का मानना है कि गीता इंसान के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है, क्योंकि उसके श्लोक में जीवन का दर्शन छिपा हुआ है।
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