Happy Birthday Alka Yagnik: सुरों की मल्लिका कही जाने वाली सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका अलका याज्ञनिक ( Alka Yagnik) ने अपने करियर में काफी अच्छा जगह बनाई है। उन्होंने आकाशवाणी कोलकाता (AIR Kolkata) से अपने करियर की शुरूआत की थी।
अलका का जन्म कोलकाता (Kolkata) में 20 मार्च 1965 को एक मध्यम वगीर्य गुजराती (Moderate class Gujarati) परिवार में हुआ। उनकी मां शुभा याज्ञनिक शास्त्रीय संगीत गायिका (Shubha Yagnik Classical Music Singer) थी। घर में संगीत का माहौल होने के कारण अलका याज्ञनिक ( Alka Yagnik) की रूचि भी संगीत की ओर हो गयी और वह महज छह वर्ष की उम्र से ही अपनी मां से संगीत की शिक्षा लेने लगीं। अलका ने पार्श्वगायिका के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत महज छह वर्ष की उम्र में कोलकाता आकाशवाणी (AIR Kolkata) से की जहां वह भजन गाया करती थीं। जब वह महज 10 वर्ष की थीं तभी उनकी मां उन्हें लेकर मुंबई आ गयी। जहां उनकी मुलाकात महान निमार्ता निदेर्शक राजकपूर (Director Raj Kapoor) से हुयी।
राजकपूर ने अलका के गाने से प्रभावित होकर उन्हें संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से मिलने की सलाह दी। लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल भी अलका के पार्श्वगायन से काफी प्रभावित हुये और उनसे कहा कि अभी उनकी उम्र अभी काफी कम है। वह अभी बतौर डबिंग कलाकर काम कर ले बाद में वयस्क होने पर वे उन्हें पार्श्वगायिका के रूप में काम करने का मौका देंगे।
अलका ने पार्श्वगायिका के रूप में अपने सिने कैरियर की शुरूआत 1979 में प्रदर्शित फिल्म ‘पायल की झंकार’ से की। इस फिल्म में उन्हें एक गीत की कुछ पंक्तियां गाने का अवसर मिला। इसके बाद उन्हें फिल्म ‘हमारी बहू अलका’ में भी पार्श्वगायन का अवसर मिला लेकिन कमजोर पटकथा और दोयम दजेर् के संगीत के कारण यह फिल्म टिकट खिड़की पर असफल साबित हुयी।
लगभग दो वर्ष तक मुंबई में रहने के बाद अलका पार्श्वगायिका बनने के लिये संघर्ष करने लगीं। आश्वासन तो सभी देते लेकिन उन्हें काम करने का अवसर कोई नहीं देता था। इस बीच अलका याज्ञनिक को 1981 में प्रदर्शित फिल्म ‘लावारिस’ में पार्श्वगायन का मौका मिला। अमिताभ बच्चन अभिनीत इस फिल्म में अलका ने ..मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है ..गीत गाया जो श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इस गीत की सफलता के बाद अलका पार्श्वगायिका के रूप में कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गयी लेकिन उन्हें अब तक वह मुकाम हासिल नहीं हुआ था जिसके लिये वह सपनों के शहर मुंबई आई थीं।
लगभग आठ वर्ष तक मुंबई में संघर्ष करने के बाद 1988 में एन. चंद्रा की अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित अभिनीत फिल्म ‘तेजाब’ में अपने गीत …एक दो तीन… की सफलता के बाद वह पार्श्वगायिका के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गयीं। वर्ष 1989 में अलका के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ प्रदर्शित हुयी जिसमें उन्होंने उदित नारायण के साथ ..ऐ मेरे हमसफर, अकेले है तो क्या गम है और गजब का है दिन सोंचो जरा ..जैसे सुपरहिट युगल गीत गाये जो श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुये।
इन फिल्मों की सफलता के बाद अलका को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये। वर्ष 1994 उनके सिने कैरियर का अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी सुपरहिट फिल्म ‘हम है राही प्यार के’ प्रदर्शित हुयी। इस फिल्म के लिये उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके बाद 1999 में प्रदर्शित फिल्म ‘कुछ कुछ होता है’ के लिये भी उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
माधुरी दीक्षित, श्री देवी, काजोल और जूही चावला जैसी नामचीन अभिनेत्रियों की आवाज कही जाने वाली अलका ने तीन दशक से भी ज्यादा लंबे कैरियर में हिन्दी के अलावा अवधी, गुजराती, उड़िया, राजस्थानी, नेपाली, बंगला, भोजपुरी, पंजाबी, मराठी, तेलुगू, तमिल, मणिपुरी, अंग्रेजी और मलयालम फिल्मों के गीतों के लिये भी अपना स्वर दिया है। अलका याज्ञनिक अब तक लगभग 600 फिल्मों के लिये लगभग 20000 गीत गा चुकी हैं। अलका आज भी फिल्म और संगीत जगत को अपनी दिलकश आवाज के जरिये सुशोभित कर रही हैं।
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