Happy Vat Purnima 2020 Wishes: आज वट पूर्णिमा (Vat Purnima) व्रत है। इस व्रत को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। वट सावित्री व्रत जहां ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है, वहीं वट पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है।
यह व्रत वट सावित्री व्रत की तरह ही होता है। कई लोग इस दिन पूर्णिमा (Purnima) का व्रत भी रखते है, जिसमें भगवान विष्णु की उपासना करते हैं। आज वट पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण लग रहा है। हालांकि चंद्र ग्रहण रात के समय में लगेगा, इसलिए पूर्णिमा की पूजा शाम से पहले कर लेना श्रेष्ठ रहेगा।
ज्योतिषियों की मानें तो चंद्र ग्रहण के 9 घंटे पहले सूतक लग जाते हैं। इसलिए इस समय पूजा करना वर्जित होता है। लेकिन आज पूर्णिमा के दिन लगने वाला ग्रहण आंशिक उपच्छाया चंद्र ग्रहण होगा, इसलिए इस ग्रहण का भारत में प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए पूर्णिमा की पूजा शाम तक करना ही श्रेष्ठ रहेगा।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कि वट पूर्णिमा के दिन सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों को वापस लेकर आई थीं, इसलिए इस व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना से करती हैं। इस दिन एक-दूसरे को बधाई भी दी जाती है।
Vat Purnima Vrat 2020: 5 जून को रखा जायेगा वट पूर्णिमा व्रत, जानिये पूजा का महत्व और शुभ मुहूर्त
आप भी वट पूर्णिमा के इस मौके को खासे बनाने के लिए सुंदर विशेज, फोटोज, वॉट्सऐप स्टेटस, जीआईएफ ग्रीटिंग्स, इमेज, फेसबुक मैसेज और वॉलपेपर्स के जरिए हैप्पी वट पूर्णिमा (Happy Vat Purnima Wishes) कह सकती हैं।
इस व्रत को रखने वाली महिलाओं को चतुर्दशी के दिन से यानी व्रत के एक दिन पहले से तामसी प्रवृति का त्याग कर देना चाहिए। व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर आराध्य देव का स्मरण करना चाहिए। इसके बाद घर की साफ-सफाई कर गंगाजल मिला हुए पानी से स्नान करना चाहिए।
इसके उपरान्त साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार धारण करें। इस दिन पीला वस्त्र (साड़ी ) धारण करना शुभ माना जाता है। सूर्य देव और वट वृक्ष को जल का अर्घ्य दें। इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विधान है। वट वृक्ष की पूजा फल, पूरी-पकवान, धूप-दीप, अक्षत, चंदन और दूर्वा से करें।
पूजा के बाद रोली यानी रक्षा सूत्र की मदद से वट वृक्ष का 7 या 11 बार परिक्रमा करें। वट वृक्ष के नीचे ही स्त्रियां सत्यवान सावित्री की कथा भी सुनती Happy Vat Purnima 2020 Wishes: हैं। इसके पश्चात किसी योग्य ब्राह्मण या फिर किसी गरीब जरूरतमंद को श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा दी जाती है। प्रसाद के रूप में चने व गुड़ को चढ़ाया जाता है।
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