कांग्रेस चलेगी आदिवासी कार्ड, प्रयोगशाला छत्तीसगढ़

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 रायपुर, 27 दिसंबर (आईएएनएस)| कांग्रेस ने देश की सियासत पर अपना दबदबा फिर से कायम करने के लिए आदिवासी कार्ड चलने का मन बना लिया है और इसकी प्रयोगशाला छत्तीसगढ़ बन रहा है।

 इस राज्य में विधानसभा और नगरीय निकाय चुनाव में मिली कामयाबी से उत्साहित कांग्रेस को लगने लगा है कि आदिवासियों के जरिए वह अपना जनाधार बढ़ा सकती है, क्योंकि देश में इस समुदाय की आबादी लगभग आठ फीसदी है।

छत्तीसगढ़ राज्य वर्ष 2000 में अस्तित्व में आया, उसके बाद हुए विधानसभा के तीन चुनावों में भाजपा को भारी सफलता मिली और सत्ता हासिल की। इसके चलते यह राज्य भाजपा के गढ़ के तौर पर पहचाना जाने लगा, मगर बीते साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद से यहां की तस्वीर बदलने लगी। पहले विधानसभा और फिर नगरीय निकाय चुनावों में जीत दर्ज कर कांग्रेस ने यह दिखा दिया है कि आदिवासी बहुल इस राज्य में अभी भी उसकी जड़ें मजबूत हैं।

यहां राजनीतिक तौर पर पहले विधानसभा चुनाव, इसके बाद उपचुनाव और फिर नगरीय निकाय चुनावों में मिली सफलता से कांग्रेस को लगने लगा है कि छत्तीसगढ़ को देश में आदिवासी राजनीति के केंद्र के तौर पर खड़ा करके वह अपना जनाधार बढ़ा सकती है। हाल ही में उसे आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में भी संतोषजनक नतीजे मिले हैं।

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों की कमान मध्यप्रदेश के आदिवासी नेता उमंग सिंघार को सौंपी थी, जिसका लाभ पार्टी को मिला। पार्टी अब छत्तीसगढ़ से समूचे देश को व्यापक संदेश देने की रणनीति पर काम कर रही है।

रायपुर पहुंचे पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इशारों-इशारों में आदिवासी महोत्सव के जरिए देशभर से जुटे आदिवासी कलाकारों के बीच यह संदेश तो दे ही दिया है कि छत्तीसगढ़ की सरकार सभी वर्गो को साथ लेकर चल रही है। यही कारण है कि यहां नक्सली हिंसा कम हुई और अर्थ व्यवस्था में सुधार आया है।

देश की राजनीतिक स्थिति पर गौर करें तो आदिवासी आबादी आठ फीसदी है और छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 32 प्रतिशत है। कांग्रेस इसी के चलते छत्तीसगढ़ में आ रहे बदलाव को देशव्यापी प्रचारित करना चाहती है। यहां के बस्तर इलाके में आदिवासियों को जमीन वापस दिलाई गई, उनके देवस्थलों को सुरक्षित रखने के साथ अन्य विकास योजनाएं भी चलाई जा रही है।

हालांकि भाजपा के मीडिया पैनलिस्ट संदीप शर्मा का दावा है कि भाजपा का जनाधार अभी भी कम नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि सम्मिलत राज्य मध्यप्रदेश में यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, मगर अलग राज्य बनने के तीन साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज कर लगातार 15 साल तक सरकार चलाई। वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा को हार मिली, यह हार सिर्फ जनता में बदलाव के भाव के कारण मिली, लोग भाजपा के काम से नाराज नहीं थे।

उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा जीती, नगरीय निकाय चुनाव में भी ज्यादा अंतर नहीं है। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि भाजपा का जनाधार कम हो रहा है। एक साल में कांग्रेस का जनाधार नौ प्रतिशत कम हुआ है, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 12 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले, मगर नगरीय निकाय में यह आंकड़ा तीन प्रतिशत ही रहा।

राजनीतिक विश्लेषक रुद्र अवस्थी राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर गौर करते हुए कहते हैं कि जब एकीकृत मध्यप्रदेश था, तब छत्तीगसढ़ क्षेत्र पर पूरी तरह कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था। उस समय कई बड़े नामी नेता भी यहां थे, मगर राज्य बनने के बाद अजीत जोगी पर फर्जी आदिवासी होने का आरोप लगने से कांग्रेस के हाथ से आदिवासी वर्ग छिटका गया, मगर कई आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रभाव बना रहा, जिसे फिर से खड़ा करने में सफलता मिल गई।

उन्होंने कहा, “वर्तमान की बात की जाए तो कांग्रेस पिछड़े वर्ग के साथ आदिवासी को अपने में समाहित कर रही है। पहले भूपेश बघेल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे और मुख्यमंत्री बनते ही उनके स्थान पर आदिवासी चेहरे मोहन मरकाम को जगह दी गई। वहीं विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासियों की अस्मिता की बात की, जिसका उसे लाभ मिला। चुनाव जीतने पर कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों के हित में फैसले लिए, जिसका लाभ उसे नगरीय निकायों में मिला।”

कांग्रेस ने रायपुर में हुए तीन दिवसीय महोत्सव के जरिए अपनी बात देश के सभी आदिवासियों तक पहुंचाने की रणनीति बनाई है, इसलिए पार्टी के बड़े नेता यहां आएंगे और राज्य सरकार की योजनाओं को उनके बीच साझा कर यह संदेश देंगे कि कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाया है। दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस सत्ता में आती है तो वहां के आदिवासियों की जिंदगी में बदलाव आएगा।

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