मोहम्मद रफी: वो बेमिसाल गायक जिसने 18 भाषाओं में गाए हजारों गाने, आज भी करते हैं करोड़ों दिलों पर राज

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Mohammed Rafi Death Anniversary: हिंदी सिनेमा के सबसे यादगार और बेमिसाल गायक मोहम्मद रफी की आज पुण्यतिथि है। उनकी आवाज में कुछ ऐसा जादू था कि आज तक कोई भी सिंगर उनका मुकाबला नहीं कर पाया। उन्होंने बेशक चार दशकों तक हिंदी सिनेमा के लिए गाने गाये, लेकिन उनकी लोकप्रियता आज भी उतनी ही है।

सुरों के बेताज बादशाह मोहम्‍मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर में हुआ था। बचपन में वह राह चलते फकीरों को गाते सुन मग्न हो जाया करते थे। रफी साहब ने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी। उन्होंने 10 साल की उम्र से गाना शुरू किया और महज 13 साल की उम्र में के एल सहगल के गानों को गाकर पब्लिक परफॉर्मेंस से सबका दिल जीता। इसके बाद उन्होंने पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ के लिए भी एक गाना गाया। बॉलीवुड में उनके करियर की शुरुआत 1944 में आई फिल्म ‘गांव की गोरी’ के एक गाने से हुई और कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा।

18 भाषाओं में 26000 गानों को दी आवाज

अपनी आवाज से दुनिया को दीवाना करने वाले रफी साहब ने 18 भाषाओं में 26000 गाने गाये, लेकिन अबतक 7,405 गानों का ही पता चला है। हिंदी के अलावा असामी, कोंकणी, भोजपुरी, ओड़िया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, माघी, मैथिली, उर्दू, इंग्लिश, फारसी, अरबी और डच भाषाओं में भी उन्होंने अपनी आवाज का जादू चलाया। रफी के बारे में कहा जाता है कि उनकी आदत थी कि जब वह विदेश के किसी शो में जाते थे तो वहां की भाषा में एक गीत ज़रूर सुनाते थे।

आवाज जितना ही कोमल था रफी साहब का दिल

रफ़ी साहब एक बेहद शांत स्वाभाव के दयालु इंसान थे। उन्हें एक बड़ा दिल वाला सिंगर माना जाता था। रफी साहब ने कभी किसी को खाली हाथ नहीं लौटाया। आवाज के साथ- साथ उनका यह स्वभाव सभी को उनकी तरफ खींचता था। वह कभी भी फीस का जिक्र नहीं करते थे और कभी-कभी तो 1 रुपये में भी गीत गा दिया करते थे।

नहीं पसंद थी पब्लिसिटी

नंबर 1 सिंगर होने के बावजूद रफ़ी साहब ने कभी अपनी सहजता और सरलता को नहीं खोया। वह उम्र भर सरलता के साथ जिये। उन्हें पब्लिसिटी भी बिलकुल पसंद नहीं थी। रफी साहब ने कभी कोई इंटरव्यू नहीं दिया। उनके सभी इंटरव्यू उनके बड़े भाई अब्दुल अमीन संभालते थे। यहां तक कि वह किसी शादी में भी महज अपनी उपस्थिति दर्ज कराने जाते थे। वह अपने ड्राइवर को वहीं खड़े रहने के लिए कहते थे और दूल्हा- दुल्हन को दुआएं दे कर एकदम निकल जाते थे।

आखिरी पलों में भी गाया गाना

कहा जाता है रफी साहब ने अपने निधन से कुछ ही घंटों पहले फिल्म ‘आस- पास’ के लिए ‘शाम फिर क्यों उदास है दोस्त, तू कहीं आस- पास है दोस्त’ गाना गाया था, जिसके कुछ समय बाद उनका निधन हो गया। वहीं, यह बात भी सामने आती है कि उनका आखिरी गाना फिल्म ‘आस- पास’ का ही ‘शहर में चर्चा है’ था।

31 जुलाई 1980 को हार्ट अटैक के चलते उनका निधन हो गया था।


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This post was last modified on July 31, 2020 12:21 PM

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