महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अब एक हफ्ता से भी कम समय रह गया है। चुनावी समर में उतरे तमाम राजनीतिक दल अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सब कुछ झोंक रहे हैं। आदित्य ठाकरे के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही शिवसेना अपनी परंपरागत राजनीति से पीछा छुड़ाती नज़र आ रही है। इसकी ताजा बानगी मंगलवार को देखने को मिली जब ‘उठाओ लुंगी, बजाओ पुंगी’ का नारा देने वाली शिवसेना के नए सरताज आदित्य ठाकरे चुनाव प्रचार के दौरान खुद लुंगी में नज़र आए।
बता दें कि मराठी मान-मर्यादा की हिमायत करने वाली शिवसेना की सियासत ही दक्षिण भारतीयों के विरुद्ध ‘उठाओ लुंगी, बजाओ पुंगी’ के नारे के साथ शुरू हुई थी। 1960 और 70 के दशक में बाल ठाकरे मुंबई में दक्षिण भारतीय लोगों की मौजूदगी के सख्त खिलाफ थे। मुंबई में दक्षिण भारत से आकर नौकरी करने वालों के नाम बाल ठाकरे अपनी मैगजीन में छाप दिया करते थे। ठाकरे की पार्टी के शिव सैनिक तमिल फिल्मों की स्क्रीनिंग का विरोध करते और रेस्टोरेंट में तोड़फोड़ कर देते थे। इस अभियान का असर हुआ कि बाल ठाकरे मराठियों के बड़े नेता बनकर उभरे थे। लेकिन आज उसी ठाकरे परिवार के चश्मोचिराग आदित्य ठाकरे दक्षिण भारतियों को लुभाने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते।
ये कोई पहला अवसर नहीं है जब शिवसेना अपने राजनीतिक अतीत से किनारा कर रही हो। चुनाव को देखते हुए शिवसेना गैर मराठियों के दरवाजे पर लगातार दस्तक दे रही है। आदित्य ठाकरे के चुनावी राजनीति में उतरने के फैसले के बाद ही मुंबई के वर्ली इलाके में मराठी के अलावा हिंदी, गुजराती, तेलुगू, तमिल, ऊर्दू और अंग्रेजी भाषा के पोस्टरों की बाढ़ आ गई थी।
आदित्य ठाकरे वर्ली से नामांकन भरने जा रहे थे, तो इस इलाके में बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर ‘केम छो वर्ली’ लिखा दिखाई दे रहा था। अपने स्थापनाकाल में शिवसेना गुजराती और दक्षिण भारतीय समुदायों पर कहर बरपाने के लिए जानी जाती थी।
शिवसेना में बह रही इस उलटी गंगा को देखकर विश्लेषकों का मानना है कि दक्षिण मुंबई में घटती मराठीभाषी आबादी और बढ़ती गुजराती भाषी आबादी को ध्यान में रखते हुए ही शिवसेना अब ‘केम छो ‘ कहने को मजबूर हो रही है। शिवसेना को यह भान हो चला है कि वो जमाना लद गया जब केवल मराठियों के हाथों में मुंबई में जीत की चाबी होती थी। क्योंकि हटाओ लुंगी, बजाओ पुंगी का नारा देने वाली शिवसेना को बदले हालात और बदले माहौल का बखूबी एहसास हो गया है।
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