आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) कहा जाता है। शरद पूनम के दिन वाल्मीकि जयंती (Valmiki Jayanti) बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि को वैदिक काल का महान ऋषि कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, वाल्मीकि ने कठोर तपस्या कर महर्षि का पद प्राप्त किया था। महर्षि वाल्मीकि एक कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। परमपिता ब्रह्मा के कहने पर इन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित रामायण नामक महाकाव्य लिखा। इनके द्वारा रचित आदिकाव्य श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण संसार का सर्वप्रथम काव्य माना गया है। इसलिए उनको आदि कवि भी कहा जाता है। वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की थी। महर्षि वाल्मीकि संस्कृत के अलावा और भी कई भाषाओं के मर्मज्ञ थे। शरद पूर्णिमा इस बार 13 अक्तूबर को है। इसी दिन महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाएगी।
वाल्मीकि जी के जन्म के संबंध में कहा जाता है कि वो कश्यप और अदिति के नौंवे पुत्र प्रचेता की पहली संतान हैं। उनकी माता का नाम चर्षणी और भाई का नाम भृगु था। किंवदंती है कि बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहां का भील समुदाय वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म करते थे। इस पर महर्षि नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो? इस पर रत्नाकर ने उत्तर दिया कि अपने परिवार के लिए। ये अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए लूट-पाट करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले। जब रत्नाकर ने उन्हें लूटना चाहा, तो उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि- यह काम तुम किसलिए करते हो? तब रत्नाकर ने जवाब दिया कि- अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए।
नारद ने प्रश्न किया कि इस काम के फलस्वरूप जो पाप तुम्हें होगा, क्या उसका दंड भुगतने में तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारा साथ देंगे? नारद मुनि के प्रश्न का जवाब जानने के लिए रत्नाकर अपने घर गए। परिवार वालों से पूछा कि- मेरे द्वारा किए गए काम के फलस्वरूप मिलने वाले पाप के दंड में क्या तुम मेरा साथ दोगे? रत्नाकर की बात सुनकर सभी ने मना कर दिया।
रत्नाकर ने वापस आकर यह बात नारद मुनि को बताई। तब नारद मुनि ने कहा कि- जिन लोगों के लिए तुम बुरे काम करते हो यदि वे ही तुम्हारे पाप में भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों तुम यह पापकर्म करते हो? नारद मुनि की बात सुनकर इनके मन में वैराग्य का भाव आ गया। अपने उद्धार के उपाय पूछने पर नारद मुनि ने इन्हें तमसा नदी के तट पर ‘राम-राम’ नाम जप कर अपने पापों को प्रायश्चित करने का सुझाव दिया। लेकिन वाल्मीकि नारद मुनि के बताए राम-राम को भूल गए और उसकी जगह ‘मरा-मरा’ का जप करते हुए भक्ति में डूब गए। हालाँकि, लगातार ‘मरा-मरा’ का उच्चारण करने से यह ‘राम-राम’ ही सुनाई देता। इसलिए उनके बारे में तुलसीदास ने लिखा –
उलटा नाम जपत जग जाना। वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।
कई सालों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर दीमकों ने घर बना लिया था, इसी वजह से इनका वाल्मीकि पड़ा। कालांतर में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।
क्रोंच पक्षी की हत्या करने वाले एक शिकारी को इन्होंने शाप दिया था तब अचानक इनके मुख से श्लोक की रचना हो गई थी। फिर इनके आश्रम में ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर कहा कि मेरी प्रेरणा से ही ऐसी वाणी आपके मुख से निकली है। इसलिए आप श्लोक रूप में ही श्रीराम के संपूर्ण चरित्र का वर्णन करें। इस प्रकार ब्रह्माजी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की।
महर्षि वाल्मीकि को भगवान राम का समकालीन माना जाता है। पिता राजा दशरथ का वचन पूरा करने के लिए भगवान राम वनगमन के क्रम में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रुके थे और वाल्मीकि ने नवधा भक्ति (नौ प्रकार की भक्ति) का ज्ञान दिया था। कहा जाता है कि भगवान राम के दोनों पुत्र लव-कुश का जन्म भी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही हुआ था। भगवान राम द्वारा सीता के परित्याग के बाद माँ जानकी जंगल में वाल्मीकि के आश्रम में ही रहती थीं।
This post was last modified on October 13, 2019 7:37 AM
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