मेहदी हसन को कहा जाता है ‘गज़लों का राजा’, ये हैं उनकी कुछ मशहूर गज़लें

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मेहदी हसन एक मशहूर गज़ल गायक थे। उन्होंने अपनी ग़ज़लों से सभी के दिल में एक ऐसी जगह बनाई कि उन्हें ‘गज़लों का राजा’ माना जाता है। आज उनकी जयंती है।

शुरुआती जीवन

मेहदी हसन का जन्म 18 जुलाई, 1927 को राजस्थान के झुंझुनू में हुआ था। उन्हें ‘खां साहब’ के नाम से भी जाना जाता है। वह मशहूर कलावंत संगीत घराने के थे, इस तरह उन्हें संगीत विरासत में मिली थी। मेहदी हसन ने अपने पिता अज़ीम खां और चाचा उस्ताद इस्माइल खां से संगीत की शिक्षा ली। बंटवारे के बाद मेहदी हसन का परिवार पाकिस्तान चला गया था।

करियर

मेहदी हसन ने 8 साल की उम्र में ही ‘ध्रुपद’ और ‘ख़याल’ गाना शुरु कर दिया था। लेकिन घर की हालत देखते हुए उन्होंने पहले साइकिल की दूकान पर काम किया फिर कार के मैकेनिक के तौर पर भी काम किया। हालांकि इस दौरान भी उन्होंने संगीत का साथ नहीं छोड़ा।

एक गायक के तौर पर हसन को पहचान वर्ष 1957 में मिली। उन्होंने अपने गायकी करियर की शुरुआत इसी साल ‘रेडियो पाकिस्तान’ (Radio Pakistan) में ठुमरी गायक के तौर पर की। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने दुनिया भर में कई कार्यक्रम कर अपनी ग़ज़ल गायकी से जादू बिखेरा। 80 के दशक में तबीयत खराब होने के कारण हसन ने प्लेबैक सिंगिग छोड़ दी और काफी समय तक संगीत से दूर रहे।

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मेहदी हसन ने क़रीब 54,000 ग़ज़लें, गीत और ठुमरी गाईं। इन्होंने ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अहमद फ़राज़, मीर तक़ी मीर और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे शायरों की गज़लों को अपनी आवाज़ दी। उन्होंने अपनी आखिरी रिकॉर्डिंग एचएमवी के एल्बम ‘सरहदें’ के लिए की। इसमें उन्होंने मशहूर गायिका लता मंगेशकर के साथ गाना गाया। मेहदी हसन की गायकी में कुछ ऐसा जादू था कि लता भी उनकी फैन हैं और अकेले में उन्हीं की गज़ल सुनना पसंद करती हैं।

मेहदी हसन की मशहूर गज़लें

वैसे तो उन्होंने अपने जीवन में कई यादगार गज़लें गायी, जो आज भी सुनने वालो के दिलों को छू लेती हैं। लेकिन उनकी कुछ बेहद खास ग़ज़लें रही, जिन्होंने उनकी शख्सियत को और बड़ा बनाया। इन्हीं में से कुछ ग़ज़लें हैं-

  • ज़िंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं…
  • अब के हम बिछड़े तो शायद
  • बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी…
  • रंजिश ही सही…
  • यूं ज़िंदगी की राह में…
  • न किसी की आंख का नूर…
  • गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले…
  • शिकवा ना कर, गिला ना कर…
  • हमें कोई ग़म नहीं था…
  • रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गये…
  • मोहब्बत करने वाले कम ना होंगे…

सम्मान और पुरस्कार

ग़ज़ल की दुनिया में अपने महान योगदान के लिए मेहदी हसन को ‘शहंशाह-ए-ग़ज़ल’ की उपाधि से नवाजा गया था। उन्होंने कई सम्मान और पुरस्कार अपने नाम किए। पाकिस्तान में उन्हें ‘तमगा-ए-इम्तियाज़’, ‘प्राइड ऑफ़ परफ़ॉर्मेंस’ और ‘हिलाल-ए-इम्तियाज़’ से सम्मानित किया गया। ये सभी पाकिस्तान के सबसे बड़े सम्मान हैं। मेहदी हसन को उनकी बेहतरीन गायकी के लिए 1979 में भारत में ‘सहगल अवॉर्ड’ से नवाजा गया था।

निधन

मेहदी हसन लंबे समय से फेफड़ों की बीमारी के शिकार थे, जिस वजह से ही उन्होंने गायकी छोड़ दी थी। इसी के चलते उन्होंने 13 जून, 2012 को पाकिस्तान के करांची में दुनिया को अलविदा कह दिया था।

This post was last modified on July 18, 2019 11:10 AM

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