Navratri 2019: नवरात्रि के पहले दिन होती है मां शैलपुत्री की पूजा, जानें देवी दुर्गा की पहली शक्ति की कथा

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Navratri 2019: हिंदू धर्म में नवरात्रि का काफी महत्व है। नवरात्रि का पर्व देशभर में बड़ी आस्था और धूम धाम से मनाया जाता है। यह पर्व शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित है, जिसमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल हैं। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की भक्ति से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इस साल रविवार 29 सितंबर 2019 से शारदीय नवरात्रि शुरू हो गए हैं जो 7 अक्टूबर तक चलेंगे। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। मां दुर्गा के पूजन के साथ नवरात्रि में भक्त व्रत भी रखते हैं।

हिंदू धर्म में मान्यता है कि जो व्यक्ति नवरात्रि में पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से मां दुर्गा का पूजन करता है और व्रत रखता हैं, माता रानी उसके सारे दुख हर लेती हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह आश्विन के महीने में होता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है। इस शुभ अवधि के दौरान, भक्त उपवास, संयम, पूजा, नियम और भजन का अभ्यास करते हैं।

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा

देवी दुर्गा के प्रथम रूप में मां शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। देवी पार्वती ने भगवान हिमाचल (हिमालय) की बेटी के रूप में पुनर्जन्म लिया और शैलपुत्री के रूप में जानी गईं। संस्कृत में शैल का अर्थ पर्वत होता है और इसलिए, देवी पार्वती को शैलपुत्री (पहाड़ की बेटी) के रूप में जाना है। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित होता है।

माता शैलपुत्रीअपने पूर्व के जन्म में ये दक्ष प्रजापति के यहां कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम सती था और इनका विवाह शंकर जी के साथ हुआ था। मां सती का कहानी इस प्रकार है- एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला लिया उन्होंने सभी देवी-देवताओं को न्योता भेजा, लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। देवी सती आश्वस्त थी कि उनको भी पिता के यहाँ से बुलावा आएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर भी देवी सती अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहती थी।

उन्होंने किसी तरह शिव जी को अपने पिता के यहां जाने के लिए मना लिया। जब वह अपने पिता के यहां गई तो देखा कि उनका कोई स्वागत-आदर नहीं कर रहा है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।

वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।

अगले जन्म में राजा हिमालय के पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री के रूप में प्रसिद्द हुईं। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भगवान शिव के साथ ही हुआ। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनंत हैं। नवरात्रि पूजा में पहले दिन माता शैलपुत्री का ही पूजा और उपासना की जाती है। इनकी पूजा करने से ‘मूलाधार चक्र’ जाग्रत होता है, जिससे आपको अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।

माँ शैलपुत्री का मंत्र

माँ शैलपुत्री की पूजा इस मंत्र के उच्चारण से की जानी चाहिए-

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥


Shardiya Navratri 2019 : 29 सितंबर से शुरू होंगे नवरात्र, जानें कलश स्थापना, दुर्गा अष्टमी और दशहरा की तारीख

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