नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) एक महान बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार और निबंध लेखक थे। भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ रबीन्द्रनाथ टैगोर ने ही लिखा था। आज उनकी पुण्यतिथि है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) का जन्म 7 मई 1861 को पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल से पूरी की। उन्हें बचपन से ही साहित्य में रुचि थी। उन्होंने अपनी पहली कविता 8 साल की उम्र में लिखी थी। 1877 में जब वह 16 साल के थे, तब उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई। पिता ने 1878 में कानून की पढ़ाई के लिए उन्हें लंदन भेजा, लेकिन साहित्य में रुचि के चलते टैगोर 1880 में बिना डिग्री लिए भारत वापस आ गए। 1921 में उन्होंने शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल में ‘विश्व भारतीय यूनिवर्सिटी’ की नींव रखी।
भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के रचयिता रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) इकलौते ऐसे कवि हैं, जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत के अलावा बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ भी टैगोर ने ही लिखा था। वह इकलौते ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्हें अपनी रचना के लिए ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने क्यों लौटा दी थी ‘नाइट हुड’ की उपाधि?
रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने ब्रिटिश हुकुमत का विरोध करते हुए अपनी ‘नाइट हुड’ की उपाधि वापस लौटा दी थी। उनका यह उपाधि लौटने का कारण विश्व के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक ‘जलियावाला बाग हत्याकांड’ (1919) था।
वर्ष 1915 में ब्रिटिश प्रशासन ने टैगोर को ‘नाइट हुड’ की उपाधि दी थी। उस समय जिस व्यक्ति को यह उपाधि दी जाती थी, उसके नाम के साथ ‘सर’ लगाया जाता था। लेकिन बाद में टैगोर ने यह उपाधि लौटा दी थी। दरअसल, 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पर्व पर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला कर निहत्थे, शांत बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैंकड़ों लोगों को मार डाला था और हजारों लोगों को घायल कर दिया था। इसी की निंदा करते हुए टैगोर (Rabindranath Tagore) ने उपाधि लौटाई।
रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के विचार
रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) एक सफल साहित्यकार तो थे ही, साथ ही वह जीवन के प्रति अपने विचारों के लिए भी जाने जाते हैं। आप भी जानिए उनके कुछ विचारों के बारे में।
7 अगस्त 1941 को उन्होंने (Rabindranath Tagore) दुनिया को अलविदा कह दिया।
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