स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक आध्यात्मिक योगी थे। उनका जन्म 18 फरवरी 1836 में बंगाल के छोटे से गांव हुगली में हुआ था। परमहंस जी का दूसरा नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। वो मां काली के अनन्य भक्त थे। हिंदू धर्म में परमहंस की उपाधि उसे दी जाती है, जो समाधि की अंतिम अवस्था में होता है। रामकृष्ण परमहंस ने दुनिया के सभी धर्मों के अनुसार साधना करके उस परम तत्व को महसूस किया था। उनमें कई तरह की सिद्धियां हासिल थीं। भारतीय वेदांत और दर्शन को दुनियाभर में प्रचारित करने वाले स्वामी विवेकानंद भी उनके शिष्य रह चुके थे।
स्वामी रामकृष्ण ने 1866 में आस्थाओं को जानने के क्रम में पहला प्रयोग इस्लाम से किया और अल्लाह-अल्लाह जपते हुए उन्होंने एक दिन मोहम्मद साहब को पा लिया। सात वर्ष बाद ईसाई साधना क्रम में इसी तरह के दूसरे अनुभव से उन्हें यीशु के दर्शन हुए। दरअसल हिन्दू, मुस्लिम धर्म हो या ईसाई या फिर वैष्णव वेदान्त- सभी धाराओं का रामकृष्ण ने अनुशीलन किया और असीम साधना के मूल को पहचानने के बाद ही दुनिया को यह सिद्धांत दिया, ‘उस एक ईश्वर को पहचानो, जानो, उसे जानने के बाद तुम सब कुछ जान जाओगे। यह समझो कि एक के बाद शून्य लगाते हुए सैकड़ों-हजारों की संख्या प्राप्त होती है, परन्तु एक को मिटाने से शून्यों का कोई मूल्य नहीं होता। एक ही के कारण शून्यों का मूल्य है। पहले एक बाद में बहु। पहले ईश्वर फिर जीव जगत।’
असलियत में रामकृष्ण के प्रयोग दर-प्रयोग ईश्वर प्राप्ति के निमित्त ही किये गए थे। सच तो यह है कि संपूर्ण आध्यात्मिक आदर्श के प्रतीक या परिचायक, आत्मशक्ति के पुजारी स्वामी रामकृष्ण ने अपने प्रयोगों और धर्मों के ऊपरी फर्क को पहचानने के बाद यह साबित किया कि धर्म कोई भी क्यों न हो, वह विभिन्न मार्गों के जरिये एक ही ईश्वर के पास ले जाता है। यही अंतिम सत्य है।
आज रामकृष्ण परमहंस जयंती पर हम आपको उनके कुछ प्रेरक उपदेश बता रहे हैं, जो आपके जीवन में नया सवेरा ला सकते हैं।
1) ज्ञान हमेशा एकता की ओर जाता है, लेकिन विविधता हमेशा अज्ञानता की ओर ले जाती है।
2) मन वो होता है जो किसी को बुद्धिमान, किसी को अज्ञानी और किसी को मुक्ति देता है।
3) धर्म पर बातें करना आसान होता है लेकिन उस पर अभ्यास करना उतना ही मुश्किल होता है।
4) ईश्वर को प्यार करने वाला भक्त किसी भी जाति का नहीं हो सकता है। क्योंकि भगवान किसी धर्म-जाति में विश्वास नहीं रखते, भगवान को केवल सच्चे मन से याद करना चाहिए।
5) हमेशा भगवान की सेवा निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको जीवन के सही समय का एहसास होता है। भगवान को अगर दिल से चाहो तो आप उससे बात कर सकते हो, जैसे मैं करता हूं।
6) भगवान से हमेशा यह प्रार्थना करनी चाहिए कि किसी के साथ कभी गलत न करें, हमेशा उनका भला सोचे।
7) भगवान के कई रूप होते हैं, जो उसे अलग-अलग रूप में आकर अपने भक्तों को प्रेरित करते है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस रूप में उसे देख रहे हैं। वह आपको उसी रूप में दिखाई देगा, जिस रूप में आपने उसे स्मरण किया है।
8) रामकृष्ण परमहंस ने सभी महिलाओं को शक्ति की प्रामाणिक मूर्ति बताया है।
9) रामकृष्ण परमहंस जी का मानना है कि कभी भी अपने विश्वास को सच्चा मत समझो। कभी ये मत समझो कि सामने वाला गलत है। यह निश्चित रुप से मान लेना चाहिए कि बिना रूप वाला भगवान वास्तविक है। जो भी तुम्हारे लिए विश्वास प्रकट करता है उसके लिए विश्वास रखो।
10) बारिश का पानी कभी ऊंचे स्थान पर नहीं रुकता, वो हमेशा नीचे स्थान आता है। इसलिए भगवान की दया हमेशा श्रद्धालुओं के दिल में बनी रहती है। मगर घमंडी और व्यर्थ लोगों के मन में उनके प्रति कोई दया नहीं होती।
This post was last modified on February 18, 2020 11:28 AM
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