Shab-e-Qadr 2020: कब है शब-ए-कद्र? इस रात इबादत की खास अहमियत, जानिए घर बैठे कैसे मनाएं लैलातुल कद्र

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Shab-e-Qadr 2020 : आज रमजान के पाक महीने की 27वीं तारीख है। आज की रात को शब-ए-कद्र (Shab-e-Qadr 2020) कहा जाता है। इस्लाम में इस रात का बहुत बड़ा महत्व है। शब ए कद्र हजार रातों से अफजल है। इस शब में इबादत का बड़ा सवाब है। इसी रात में कुरआन पाक नाजिल हुआ था। इसे लैलातुल कद्र भी कहा जाता है। दीन में अल्लाह और उसके पैगंबर (स.) ने शब ए कद्र का खुलासा नहीं किया। बस इतना ही बताया कि इसे रमजान के आखिरी अशरे (10) दिन की ताक रातों में तलाश करो। इस हवाले से रोजेदार 19वीं, 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं शब को रात भर इबादत करते हैं। रमजान के तीसरे अशरे (10 दिन-रात) की पांच पाक रातों में शब-ए-कद्र तलाश किया जाता है।

शब-ए-कद्र की फजीलत हजार महीनों से बढ़कर

अरबी में शब के मानी रात के होते हैं और कद्र का अर्थ होता है इज्जत। इस तरह आज की रात को इज्जत की रात यानी सम्मान वाली रात कहा जाता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार नए दिन की शुरुआत सूर्यास्त के साथ होती है। शब-ए-कद्र पर मुसलमान खुदा से गुनाहों की माफी तलब करते हैं। मान्यता है कि इस रात खुदा अपने बंदों की नेक और जायज तमन्नाओं को पूरी फरमाता है। इस रात में अल्लाह की इबादत करने वाले के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।

वैसे तो पूरे रमजान बरकतों और रहमतों का सिलसिला जारी रहता है और एक नेकी का बदला 70 गुना बढ़कर मिलता है मगर शब-ए-कद्र की फजीलत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है ये हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है। इस रात सच्चे दिल से इबादत करने वालों की दुआ कबूल होती है। रमजान का आखिरी अशरा जहन्नम से मुक्ति का होता है।

पैगंबर ने शब-ए-कद्र के बारे में क्या कहा?

अल्लाह के आखिरी दूत मुहम्मद साहब का फरमान है कि शब-ए-कद्र सिर्फ उनके मानने वालों के लिए है। शब-ए-कद्र में रातभर मुख्तलिफ इबादतें की जाती हैं। इसमें निफिल नमाजें पढ़ना, कुरआन पढ़ना, तसबीह (जाप) पढ़ना आदि। मुसलमान यह इबादत इसलिए करते हैं ताकि सारे गुनाह धुल जाएं और खुदा राजी हो जाए। वहीं, पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने भी शब-ए-कद्र की अहमियत बताई। पैगंबर ने अपने एक साथी के पूछने पर इस बारे में बताया था। पैगंबर ने बताया कि शब-ए-कद्र रमजान के आखिर अशरे (दस दिन) की ताक (विषम संख्या) रातों में है। उन्होंने इसके लिए एक खास दुआ भी बताई, जिसका मतलब है ‘ऐ अल्लाह तू बेशक माफ करने वाला है और पसंद करता है माफ करने को, इसलिए मुझे माफ कर दे।’

इस बार कोरोना लॉकडाउन के चलते मस्जिदों में इबादत सामूहिक रूप से नहीं हो रही है। कुरआन की तिलावत, तरावीह और अफ्तार का सामूहिक आयोजन भी मस्जिदों से गायब है। मगर इसका ये मतलब नहीं कि इस रात की फजीलत सिर्फ मस्जिदों में ही हासिल की जा सकती है। लॉकडाउन के दौरान घर पर पूरी रात जागकर भी इस रात को तलाश किया जा सकता है। इस रात को पा लेनेवाले के लिए बेशुमार नेकियों का मौका मिल जाता है।


Shab-e-Qadr 2020: शब-ए- कद्र 2020 की तारीख कब है, जानें लैलतुल-क़द्र की अहमियत और पहचान

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