पूर्व केंद्रीय मंत्री और किसान नेता राजेश पायलट (Rajesh Pilot) की आज पुण्यतिथि है। कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे राजेश पायलट का मूल नाम राजेश्वर प्रसाद बिधूरी था। 10 फरवरी 1945 को उत्तर प्रदेश के जिला गौतमबुद्धनगर (तब जिला-गाजियाबाद) के गांव वेदपुरा में एक गुर्जर परिवार में जन्मे राजेश्वर प्रसाद के राजनीति में आने और राजेश पायलट (Rajesh Pilot) बनकर छाने की कहानी बड़ी दिलचस्प है।
राजेश पायलट का बचपन काफी संघर्षपूर्ण बीता। दरअसल, राजेश के पिता एक सैनिक थे। उनकी उम्र जब 11 वर्ष थी, तभी उनके पिता का आकस्मिक देहांत हो गया और खेलने-कूदने के दिनों में ही परिवार की जिम्मेदारी उनके नाजुक कंधों पर आ गई थी। जिम्मेदारी के चलते राजेश ने दिल्ली की ओर कदम बढ़ाए और यहां आकर मंत्रियों के बंगलों में दूध बेचा करते थे। इसके बाद समय निकालकर लैंप पोस्ट के नीचे पढ़ाई करते। इनकी माली हालत बहुत खराब थी। वह लोगों से कपड़ा लेकर पहनते थे। बावजूद इसके उन्होंने म्यूनिसिपल बोर्ड स्कूल से पढ़ाई जारी रखी। जीवन की तमाम दुरभसंधियों के बीच राजेश ने भारतीय वायुसेना के लिए क्वालिफाई किया और उनकी जिन्दगी यहां से बदली। उन्होंने कड़े संघर्ष के बाद पायलट की नौकरी हासिल की।
राजेश पायलट इंडियन एयरफोर्स के एक जांबाज पायलट थे। उन्होंने आसमान की ऊंचाइयों को चुनौती दीं। कामयाबी की नई इबारत लिखी। कामयाबी के इस सफर में उन्होंने हमेशा इस बात का ख्याल रखा कि उनके कदम जमीन पर रहें। राजेश ने 1971 की जंग में पाकिस्तानी फौज के कई ठिकानों पर बम बरसाए। लेकिन कुछ सालों बाद उन्हें लगने लगा कि अगर उन्हें अपने समाज और परिवेश में बदलाव लाना है, तो उन्हें राजनीति में उतरना होगा। तभी 1980 के लोकसभा चुनाव आ गए और उन्होंने मन बनाया कि वो वायुसेना छोड़ कर लोकसभा का चुनाव लड़ें।
ये साल 1979 का चुनावी दौर था। राजेश ने फैसला कर लिया था कि वे पायलट की नौकरी छोड़कर राजनीति में हाथ आजमाएंगे। मगर उस समय आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध इंदिरा गाँधी ने उन्हें सलाह दी कि राजनीति में कोई स्थायित्व नहीं होता, इसलिए नौकरी न छोड़ें, क्योंकि आपके बच्चे भी अभी छोटे हैं। इस पर राजेश ने कहा, ‘मैं श्रीमती गांधी का आशीर्वाद लेने आया हूँ सलाह नहीं!’
बकौल रमा पायलट (राजेश पायलट की पत्नी), “पहले तो वायु सेना राजेश का इस्तीफ़ा ही नहीं स्वीकार कर रही थी। फिर हम लोग बेगम आबिदा के पति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के पास गए जो उस समय भारत के राष्ट्रपति और सेना के सर्वोच्च सेनापति थे। उनके मन में पता नहीं क्या आया कि उन्होंने राजेश की अर्ज़ी पर लिख दिया कि उन्हें वायुसेना छोड़ने की इजाज़त दी जाए।”
बहरहाल, निर्भीक युवा स्क्वार्डन लीडर राजेश पायलट से प्रभावित होकर इंदिरा गांधी ने उन्हें कांग्रेस का टिकट दे दिया। उन्होंने सबसे पहला लोकसभा चुनाव राजस्थान की भरतपुर सीट से लड़ा था। इस दौरान ही संजय गांधी के कहने पर उन्होंने अपना नाम राजेश्वर सिंह विधूड़ी से बदलकर राजेश पायलट करा लिया था।
राजेश ने भरतपुर की सीट से वहां के राजपरिवार की सदस्य महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता और इसी के साथ राजनीति की दुनिया में पहला कदम रखा। साल 1984 में राजेश ने दौसा से चुनाव लड़ा। राजेश साल 1996, साल 1998, साल 1999 में दौसा से चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद उन्होंने कई चुनाव जीते और 1991 से 1993 तक टेलिकॉम मिनिस्टर रहे और 1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे। कहा जाता है कई बचपन में राजेश जिस कोठी पर दूध बेचने के लिए जाया करते थे बाद में वे उसी में मंंत्री बनकर रहे।
पायलट को जीप चलाने का शौक था, अपनी जीप वो अधिकतर खुद ही ड्राइव कर लेते थे। 11 जून 2000 को अपने चुनावी क्षेत्र दौसा से एक कार्यकर्ता सम्मलेन को संबोधित करके आते हुए जयपुर हाईवे पर उनकी जीप एक ट्राले से टकरा गई। इस हादसे में वो गंभीर रूप से घायल हो गये, जिन्हें इलाज के लिए सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती कराया। मगर शाम 7 बजे के करीब उनका दुखद निधन हो गया।
पिता राजेश पायलट के निधन के बाद सचिन ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। राजेश पायलट ने 1987 में ‘जय जवान जय किसान ट्रस्ट’ बनाया था, जिसका उद्देश्य गरीब किसानों और पिछडों की मदद करना रहा है। राजेश के निधन के बाद परिवार में उनकी धर्मपत्नी रमा पायलट, पुत्री सारिका और पुत्र सचिन पायलट उनकी इस विरासत को संभाल रहे हैं। फिलहाल सचिन पायलट राजस्थान के डिप्टी सीएम हैं।
This post was last modified on June 11, 2020 12:54 PM
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