नई दिल्ली, 15 सितम्बर (आईएएनएस)| सरकार उन कंपनियों की नॉन-कैप्टिव माइनिंग लीज को आगे बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज करने वाली है जिनकी लीज की अवधि 50 साल पूरे होने पर मार्च 2020 में समाप्त हो रही है।
यह देश के खनन उद्योग के लिए एक झटका साबित हो सकता है।
इस कदम से 10 राज्यों में टाटा स्टील, वेदांता लिमिटेड, एस्सेल माइनिंग, वी. एम. सलगांवकर और रूंगटा माइंस जैसी कंपनियों की करीब 334 खदानों पर असर पड़ेगा। इनका पट्टा (लीज) अगले साल मार्च में समाप्त हो रहा है और मौजूदा कानून के तहत इनके बंद होने की नौबत आ गई है। इनमें से 46 कार्यरत खनन पट्टे काफी अहम हैं जिनका देश में लौह-अयस्क, मैगनीज अयस्क और क्रोमाइट अयस्क उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है।
सूत्रों ने बताया कि इस क्षेत्र की चुनौतियों को चिन्हित करने और उनके प्रभाव को बेअसर करने के लिए नीति आयोग द्वारा गठित एक उच्चस्तरीय समिति ने सिफारिश की है कि जो कंपनियां 50 साल से खनन कार्य कर रही हैं उनके पट्टे की अवधि 31 मार्च 2020 को समाप्त हो जाएगी और जनवरी-मार्च के दौरान नीलामी के माध्यम से फिर से पट्टा आवंटन किया जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि सरकार इस सिफारिश को लागू करने वाली है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ” समिति ने पाया कि इन कंपनियों को मालूम है कि एमएमडीआर (संशोधन) अधिनियम 2015 के अनुसार, उनके पट्टे की अवधि 31 मार्च 2020 को समाप्त हो जाएगी। स्थानीय उद्योग को आपूर्ति में होने वाली किसी प्रकार की रुकावट को दूर करने के लिए कानून के तहत पहले पांच साल का समय दिया गया है। इसलिए इन खदानों को परिचालन में रखने के लिए पट्टे की अवधि बढ़ाना वांछित नहीं है।”
खनन उद्योग ने सभी चालू नॉन-कैप्टिव माइंस के पट्टे को 2020 के बाद और 10 साल के लिए और उसके बाद फिर 20 साल के लिए बढ़ाने की मांग की थी। उनका मानना है कि उत्पादन में बाधा से बचने के लिए यह आवश्यक है।
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