नई दिल्ली | देश के अधिकांश किसानों को सरकार द्वारा तय फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं मिल पा रहा है और आपूर्ति ज्यादा होने से खाद्यान्नों के दाम में भारी गिरावट आई है, जिससे किसानों का संकट कम होने के बजाए बढ़ गया है।
कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि एमएसपी का लाभ काफी सीमित है और अधिकांश किसान अपनी फसलों की लागत की भरपाई भी नहीं कर पा रहे हैं।
किसानों की आमदनी नहीं बढ़ने से मोदी सरकार के उस वादे को पूरा करने की राह में भारी चुनौती खड़ी हो गई जिसमें सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया है।
कृषि बाजार विशेषज्ञ विजय सरदाना ने कहा, “एमएसपी महज राजनीतिक घोषणा है। अधिकांश किसानों को मंडी भाव पर अपनी फसल बेचनी पड़ रही है और वे एमएसपी से वंचित हैं। मंडियों में व्यापारियों द्वारा तय भाव पर ही आखिरकार किसानों को अपनी फसल बेचनी पड़ती है। इसके अलावा, उनके सामने कोई चारा नहीं है।”
प्रख्यात कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी ने कहा कि किसान संकट में है क्योंकि उनको फसलों की लागत भी नहीं मिल पा रही है।
सरकार ने जुलाई 2018 में प्रमुख फसलों के एमएसपी बढ़ाते हुए इसे ऐतिहासिक वृद्धि करार दिया था। फसल वर्ष 2018-19 के खरीफ सीजन की फसलों के एमएसपी की घोषणा करते समय एसरकार ने कहा था कि एमएसपी का निर्धारण उत्पादन लागत से कम से कम 150 फीसदी अधिक के सिद्धांत पर किया गया है।
सबसे ज्यादा बाजरे के एमएसपी में 525 रुपये प्रति क्विं टल की वृद्धि की गई थी।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी. के. जोशी का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में स्थिति बेहतर हो सकती है क्योंकि खाद्य पदार्थो की महंगाई में पिछले साल के मुकाबले वृद्धि हुई है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना: जानिए इसके उद्देश्य और कैसे उठाएं लाभ
This post was last modified on September 16, 2019 10:58 AM
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