बचपन की वो बाली उम्र जब लड़कियाँ सजने-संवरने और अपने आने वाली ज़िंदगी के सपने संजोती हैं। वहीं एक ऐसा समुदाय भी है जहाँ 15 से 16 साल की उम्र में लड़कियों की शादी कर उन्हें परंपरा के नाम पर जिस्मफरोशी के दलदल में धकेल दिया जाता है। पेरना समुदाय 1964 में राजस्थान से पलायन कर रोज़ी-रोटी की तलाश में दिल्ली पहुंचा था, लेकिन अपना घर छोड़ने के बावजूद इनकी परिस्तिथियां नहीं बदली। हालात ने इन्हें इतना मजबूर कर दिया की पेट की आग बुझाते-बुझाते उस आग में इस समुदाय की महिलाओं की ज़िंदगियां जलकर ख़ाक हो गयीं।
राजधानी दिल्ली में रहता है समुदाय
देश की राजधानी दिल्ली की भाग-दौड़ भरी जिंदगी के बीच नजफगढ़ इलाके के धरमपुरा और प्रेमनगर में रहता है ये पेरना समुदाय। जो घर की मान सम्मान बनने वाली अपनी बहुओं को इस नरक में उतारते हैं। इन लड़कियों को या तो शादी के बाद या बच्चा होने के बाद भी जिस्मफरोशी में उतारा जाता है।
शादी के नाम पर लड़कियों का सौदा
जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही इस समुदाय की लड़कियों को हैवानों के हाथ बेच दिया जाता है। अगर कोई लड़की देह व्यापार के दल-दल में उतरने से इनकार कर देती है तो उसको प्रताड़ित किया जाता है। यहां पर शादी के नाम पर लड़कियों का शोषण किया जाता है। ससुराल वालों के लिए भी लड़कियां पैसा कमाने का जरिया होती हैं। मसलन उन्हें देह व्यापार में उतरना पड़ता है। चौंकाने वाली बात ये है कि इन लड़कियों या औरतों के लिए ग्राहक कोई और नहीं बल्कि उनका पति ही
ढूंढ कर लाता है। समुदाय की लड़कियां चौथी या पांचवीं तक पढ़ती हैं। यहां पर लड़कियों को छोटी कक्षाओं तक पढ़ाई की इजाजत दी जाती है। जब तक वो कुछ समझने लायक होती हैं, तब तक शादी के नाम पर उनका सौदा कर दिया जाता है।
पंचायत में तय होते हैं लड़कियों के रेट
पेरना समुदाय की लड़कियों को शादी से पहले पंचायत में लाया जाता है। खूबसूरती के हिसाब से उनके दाम तय होते हैं। शादी के बाद ससुराल वाले पहला बच्चा होने के साथ ही लड़कियों से देह व्यापार का काम कराना शुरू कर देते हैं।
दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ
रिपोर्ट्स के मुताबिक यहाँ की महिलाओं को दिन भर में कम से कम पांच ग्राहकों के साथ सोना पड़ता है। ग्राहकों को खुश करने के बाद वो वापस घर आकर अपनी घरेलू जिम्मेदारियां भी निभाती हैं. जैसे खाना बनाना और घर के बाकी काम करना।
पुलिस भी करती है शोषण
खबरों के अनुसार इस इलाके की कानून व्यवस्था भी चरमराई हुई है। कई बार पुलिस वाले लड़कियों को गिरफ्तार करने के बदले उनका शोषण भी करते हैं। साथ ही उनके पैसे भी ले लेते हैं। आखिर कब इस समुदाय की महिलाओं की ज़िन्दगी से अंधकार मिटेगा ? परंपरा के नाम पर चल रहा रोज़गार का ये विकल्प कब ख़त्म होगा? इस समुदाय की महिलाएं कब सम्मान से सर उठाकर जी पाएंगी?
This post was last modified on March 8, 2019 12:09 PM