नई दिल्ली। दिल्ली की सत्ता से 21 साल से दूर भाजपा ने यहां एक बार फिर प्रयोग किया है। पार्टी ने गायक और भोजपुरी फिल्मों के सिनेस्टार रहे सांसद मनोज तिवारी को हटाकर अब एक अनजान से नेता आदेश गुप्ता पर दांव लगाया है। आदेश को न केवल पार्टी की दिल्ली इकाई में नई जान फूंकनी होगी, बल्कि भाजपा के सातों सांसदों को साधकर पार्टी के सभी दिग्गज नेताओं को साथ लेकर चलना होगा।
आदेश गुप्ता वैसे तो भाजपा में संगठन के नेता माने जाते हैं, लेकिन उनकी सियासी पारी ज्यादा पुरानी नहीं है। आदेश पहली बार 2017 में पार्षद चुने गए थे और एक साल बाद नॉर्थ एमसीडी के मेयर बनाए गए थे। केंद्रीय नेतृत्व के वह करीब रहे हैं। साफ-सुथरी छवि और मृदुभाषी होना उनके हक में गया है।
अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने सशक्त चुनौती खड़ी करने की है। खास तौर पर तब, जब दिल्ली नगर निगम का चुनाव दो साल से भी कम समय में होना है। लेकिन उससे पहले आदेश गुप्ता के सामने नई टीम बनाने की चुनौती होगी। टीम बनाते समय उनको भाजपा के सभी गुटों के साथ सामंजस्य बनाना होगा, ताकि दिल्ली की जनता में पार्टी की पैठ फिर से बन सके।
गौरतलब है कि बड़े पूर्वाचली वोटबैंक को साधने के लिए मनोज तिवारी को दिल्ली का भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन विधानसभा चुनाव में भाजपा का पूर्वाचल वाला दांव नहीं चला। उलटे इससे नुकसान उठाना पड़ा।
आदेश गुप्ता उत्तर प्रदेश के कन्नौज से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में उनको पार्टी के पारंपरिक वोटबैंक और पूर्वाचलियों के बीच सामंजस्य बैठाना होगा। साथ ही, अन्य लोगों को भी साथ रखना होगा।
भाजपा सांसद रमेश विधूड़ी कहते हैं, “आदेश गुप्ता पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं। भाजपा कार्यकर्ता आधारित पार्टी है। कोई भी कार्यकर्ता यहां अध्यक्ष हो सकता है।” लेकिन यह भी कहा कि अकेला एक आदमी पार्टी में कुछ नहीं कर सकता, इसलिए उसे सभी को साथ लेकर चलना पड़ता है। पूरी टीम को मिलकर काम करना होगा।
उन्होंने कहा, “भाजपा नेतृत्व ने बदलाव किया है, तो हमलोग मिलकर दिल्ली में बदलाव लाएंगे।”
नए अध्यक्ष को दिल्ली के सातों सांसदों और दिग्गजों को भी साधने में खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। संगठन और पार्टी के सभी छोटे-बड़े नेताओं का विश्वास जीतना होगा।
दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेता आशीष सूद कहते हैं, “एक पुराने कार्यकर्ता को जिम्मेदारी दी गई है। आशा है कि वह सबको साथ लेकर चलेंगे, तभी हम दिल्ली को केजरीवाल की गलत नीतियों से छुटकारा दिला पाएंगे।”
आदेश सियासत में नए हैं। यह उनके लिए सियासी तौर पर फायदेमंद भी हो सकता है। खुले मन से वह अगर सबको साथ ले पाए तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।
गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय राजधानी की सियासत में ये सबसे बड़ा बदलाव है। फरवरी में हुए चुनाव में भाजपा को लगातार दूसरी बार आम आदमी पार्टी से मुकाबले में करारी हार झेलनी पड़ी। हार के बाद से ही पार्टी में समीक्षा बैठकों का दौर चला था, जिसमें बतौर प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के कामकाज पर कई नेताओं ने उंगली उठाई थी। सबसे बड़ा आरोप तालमेल न बनाने का था। कई नेताओं ने आरोप लगाए थे कि तिवारी बतौर अध्यक्ष न तो पार्टी के प्रत्याशियों को जीत दिला पाए और न ही वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर काम कर पाए।
This post was last modified on June 3, 2020 7:23 PM
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