झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assemby Election 2019) में अब गिनती के दिन बचे हैं। चुनाव करीब आते ही राज्य के कई नेताओं ने पाला बदल लिया है। भाजपा के खिलाफ पहली बार चुनाव मैदान में उतरकर अपनी राजनीतिक पारी शुरु करने वाले सुखदेव भगत ने हाल ही में बीजेपी का दामन थाम लिया। भाजपा के खिलाफ साल 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लड़ते हुए सुखदेव भगत ने भाजपा से लोहरदगा की सीट छीनी थी। मुमकिन है कि इस बार वह भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में किस्मत आजमाते दिखें।
सुखदेव भगत का सियासी सफर किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है। राज्य प्रशासनिक सेवा का त्याग कर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़कर उस समय के कैबिनेट मंत्री रहे सधनू भगत को चुनाव हराया था। 14 साल के राजनीतिक सफर में सुखदेव भगत ने विधायक से लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तक की जिम्मेदारी संभाली। झारखंड चुनाव से पहले आइये नज़र डालते हैं उनके राजनीतिक जीवन पर…
सुखदेव भगत के पिता गंधर्व भगत स्वतंत्रता सेनानी थे। इसलिए घर में शुरू से ही एक अलग माहौल रहा था। सुखदेव भगत की प्रारंभिक शिक्षा नेतरहाट आवासीय विद्यालय में हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातकोत्तर के साथ एमफिल किया। इसके बाद वह बैंक के अधिकारी भी बने। बाद में उन्होंने इस नौकरी को छोड़ दिया और बिहार राज्य प्रशासनिक सेवा में चले गए। तब बिहार और झारखंड का बंटवारा नहीं हुआ था।
झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद साल 2005 में राज्य प्रशासनिक सेवा से डिप्टी कलेक्टर का पद का त्याग कर कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ने का फैसला किया। तब लोहरदगा के विधायक भाजपा के सधनू भगत थे। सधनू भगत लगातार दो बार से लोहरदगा के विधायक रहते हुए सरकार में मंत्री भी थे। ऐसे में सुखदेव भगत के लिए राजनीतिक पारी आसान नहीं थी।
भाजपा के गढ़ में सेंधमारी करने के लिए उनके समक्ष एक बड़ी चुनौती थी। फिर भी लोगों ने सुखदेव भगत को हाथों हाथ ले लिया। कांग्रेस पार्टी से विधायक चुने जाने के बाद भाजपा सरकार में ही सुखदेव भगत वर्ष 2006 में कॉमनवेल्थ में 53 देशों के बीच विदेश में भारत का प्रतिनिधित्व किया और संसदीय प्रणाली के बारे में अपना विचार रखा। वर्ष 2009 के चुनाव में महज 594 वोटों के मामूली अंतर से आजसू के केके भगत से चुनाव हारने के बाद सुखदेव भगत वर्ष 2013 में कांग्रेस पार्टी के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए। वर्ष 2015 के उप-चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के रहते आजसू-बीजेपी गठबंधन के खिलाफ 23228 मतों से सुखदेव भगत विजयी हुए।
इस दौरान साल 2009 और 2014 में भले ही आजसू के कमल किशोर भगत से हार मिली हो, परंतु एक बड़े और मजबूत नेता के रूप में सुखदेव भगत की पहचान बनी रही। इनके वोट प्रतिशत में भी बड़ा इजाफा हुआ। आजसू के विधायक कमल किशोर भगत जब डा. केके सिन्हा पर हमला केस में सजायाफ्ता हो गये तो उनकी विधायकी चली गई थी। उपचुनाव में उन्होंने अपनी पत्नी को खड़ा किया था, जो हार गई थी। उस वक्त सुखदेव भगत कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी थे।
सुखदेव के बढ़ते कद का परिणाम लोकसभा चुनाव 2019 में सबके सामने था। कांग्रेस में मचे अंतर्कलह और भितरघात की संभावनाओं के बीच सुखदेव भगत ने बीजेपी प्रत्याशी सुदर्शन भगत को कड़ी टक्कर दी। लोगों को लग रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोहरदगा में चुनावी सभा के बाद सुखदेव भगत अपनी जमानत भी नहीं बचा पाएंगे। लेकिन राजनीतिक विश्लेषणों को धता बताते हुए सुखदेव भगत ने सुदर्शन भगत को जबरदस्त टक्कर दी। इस चुनाव में सुखदेव भगत की कुछ हजार मतों से हार भले ही हुई, लेकिन झारखंड की सियासत में उनका प्रभाव अभी भी कायम है। संभव है कि सुखदेव भगत के भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस को आगामी चुनाव में भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
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