महाराष्ट्र में बड़ा राजनीतिक उलटफेर करते हुए भाजपा और राकांपा के एक धड़े ने मिलकर सरकार बना ली है। भाजपा के देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री और राकांपा के अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। मगर आगे की राह अभी इतनी आसान नहीं है। बताया जा रहा है कि अजित पवार के पास कुल 20 से 25 विधायकों का समर्थन है। वहीं दूसरी ओर राकांपा सुप्रीमो शरद पवार ने साफ कर दिया है कि इस फैसल से उनकी सहमति नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि राकांपा इसका विरोध दर्ज करा सकती है।
अजित पवार राकांपा विधायक दल के नेता हैं। ऐसे में विधायक दलों के हस्ताक्षर वाला समर्थन पत्र भी उन्हीं के पास था। ऐसे में उन्होंने शरद पवार सहित तमाम एनसीपी नेताओं को पीछे छोड़ते हुए भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया है। गौरतलब है कि आधिकारिक तौर पर विधायक दल के नेता का समर्थन पत्र ही मान्य होता है। कानूनी रूप से किसी पार्टी को समर्थन जब दिया जाता हैं तो विधायक दल के नेता की तरफ से दिया जाता हैं। अब अगर विश्वास मत के दौरान जो राकांपा के विधायक सरकार का समर्थन नहीं करता है तो दल-बदल कानून उस विधायक पर लागू होगा।
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अगर पार्टी के विधायकों के टूटने को लेकर राकांपा कोर्ट का रुख करती है तो क्या ये मामला दल-बदल कानून में फंस सकता है? बीते विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की 54 सीटें आई थीं। सीटों की संख्या और मौजूदा कानून के मुताबिक अगर अजित पवार को भाजपा के साथ मिलना है तो कुल 41 विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। लेकिन मौजूदा दावे तो सिर्फ 20 से 25 विधायकों का ही किया जा रहा है। सदन में बहुमत साबित करने के लिए 30 नवंबर तक का समय दिया गया है।
भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची को दल बदल विरोधी कानून कहा जाता है। इसे 1985 में 52वें संशोधन के साथ संविधान में शामिल किया गया था। इस कानून के तहत-कोई सदस्य सदन में पार्टी व्हिप के विरुद्ध मतदान करे/ यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से त्यागपत्र दे/ कोई निर्दलीय, चुनाव के बाद किसी दल में चला जाए/ यदि मनोनीत सदस्य कोई दल ज्वाइन कर ले तो उसकी सदस्यता जाएगी।
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1985 में कानून बनने के बाद भी जब अदला बदली पर बहुत ज्यादा शिकंजा नहीं कस पाया तब इसमें संशोधन किए गए। इसके तहत 2003 में यह तय किया गया कि सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं, अगर सामूहिक रूप से भी दल बदला जाता है तो उसे असंवैधानिक करार दिया जाएगा। इसके अलावा इसी संशोधन में धारा 3 को भी खत्म कर दिया गया जिसके तहत एक तिहाई पार्टी सदस्यों को लेकर दल बदला जा सकता था। अब ऐसा कुछ करने के लिए दो तिहाई सदस्यों की रज़ामंदी की जरूरत होगी।
यही अहम प्रावधान महाराष्ट्र की मौजूदा स्थिति पर भी लागू होता है, जो सदन में किसी भी पार्टी के दो तिहाई से कम विधायकों को तोड़ने से रोकता है। अब यह राकांपा प्रमुख शरद पवार पर निर्भर करता है कि वो इस मामले पर क्या रुख अपनाते हैं।
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This post was last modified on November 23, 2019 12:31 PM
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