बिहार के साढ़े तीन लाख से ज्यादा नियोजित शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने नियोजित शिक्षकों की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। अपने 10 मई के फैसले पर पुनर्विचार से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये याचिका खारिज की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फैसले में कोई गलती नहीं है इसलिए इस पर कोई पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट के इस फैसले का असर साढ़े तीन लाख से भी ज्यादा शिक्षकों के भविष्य पर पड़ेगा।
आपको बता दें, 10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के बराबर वेतन देने का आदेश देने से इनकार किया था। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की याचिका मंजूर करते हुए पटना हाई कोर्ट का आदेश भी रद्द कर दिया था। इसके बाद ही शिक्षकों की ओर से रिव्यू पिटीशन दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रिव्यू पिटीशन पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि पुराने फैसले को बदलने की कोई जरूरत नहीं है।
गौरतलब है कि उक्त मामले में 31 अक्टूबर 2017 को पटना हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि नियोजित शिक्षकों को भी नियमित शिक्षकों के जितना ही वेतन दिया जाए। इसके बाद बिहार सरकार की ओर से इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गयी थी।
इस पूरे मामले में बिहार सरकार की दलील थी कि हाई कोर्ट के इस आदेश से बिहार सरकार पर 9500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। केंद्र सरकार ने भी इस मामले में बिहार सरकार का समर्थन किया था। कोर्ट में केंद्र सरकार ने 36 पन्नों के हलफनामे में कहा था कि इन नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जा सकता।
सरकार का कहना था कि समान कार्य के लिए समान वेतन के कैटेगरी में ये नियोजित शिक्षक नहीं आते। यदि इन्हें इस कैटेगरी में लाया गया तो सरकार पर प्रति वर्ष करीब 36998 करोड़ का अतिरिक्त भार आएगा। फिर ये भी कहा जा रहा था कि अगर इनकी मांग मानी गई तो दूसरे राज्यों से भी ऐसे मामले आएंगे।
बिहार में तकरीबन 3.7 लाख नियोजित शिक्षक बहाल हैं। शिक्षकों के वेतन का 70 प्रतिशत पैसा केंद्र सरकार और बाकी 30 फीसदी पैसा राज्य सरकार देती है। मौजूदा समय में नियोजित शिक्षकों (प्रशिक्षित) को 20 से 25 हजार रुपए तक तनख्वाह मिलती है। शिक्षक समान कार्य के बदले समान वेतन की मांग कर रहे थे। अगर उनकी ये मांग मानी जाती तो शिक्षकों का वेतन 35 से 44 हजार रुपए हो सकता था।
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